अर्थशास्त्र में बाज़ार विकृति (market distortion) जिसमें किसी माल या सेवा के बाज़ार में हस्तक्षेप करने से उस चीज़ (माल या सेवा) की ऐसी कीमत उत्पन्न होती है जो प्राकृतिक आर्थिक संतुलन द्वारा उत्पन्न कीमत से काफी भिन्न है। सरकारें किसी समाजिक,आर्थिक या अन्य ध्येय से कभी-कभी ऐसा हस्तक्षेप करने की नीतियाँ बनाती हैं। अधिक या बड़ी मात्रा में आर्थिक क्षेत्रों में बाज़ार विकृतियाँ करने से उस देश या राज्य की अर्थव्यवस्था में महंगाई, भ्रष्टाचार और अभाव अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिलता है।[1] बाज़ार विकृतियाँ कई प्रकार की हो सकती हैं, मसलन किसी चीज़ पर मूल्य छत लगाना (यानि यह कानून बनाना कि वह चीज़ किसी अधिकतम कीमत से अधिक नहीं बिक सकती) या सहायिकी (सब्सिडी) देना।[2]