ब्रेंट फ्रेजर "बिली" बोडेन (जन्म 11 अप्रैल,1963) न्यूजीलैंड से एक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट अंपायर है। गठिया वात से पीड़ित होने से पहले वे एक खिलाड़ी थे और इसीलिये उन्होंने अंपायरिंग शुरू कर दी। अपने नाटकीय संकेतन शैली के लिए वे विशेष रूप से जाने जाते हैं जिसमे आऊट के संकेत के लिए "कयामत की कुटिल उंगली" शामिल है।[1]
मार्च 1995 में बोडेन ने न्यूजीलैंड और श्रीलंका के बीच हैमिल्टन में पहला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच औपचारिक रूप से निभाया। मार्च 2000 में उन्हें एक मैदान पर अपने पहले टेस्ट मैच के अंपायर के रूप में नियुक्त किया गया और 2002 में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय अंपायर की अमीरात पैनल में शामिल कर लिया गया। एक साल बाद उन्हें दक्षिण अफ्रीका में क्रिकेट विश्व कप के अंपायर के लिए आमंत्रित किया गया और भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले जाने वाले फाइनल मैच में चौथे अंपायर के रूप में चुना गया। इसके फौरन बाद उन्हें आईसीसी (ICC) अंपायर के अमीरात के एलीट पैनल के सदस्य के रूप में विधिवत पदोन्नत कर दिया गया, जिसके वे अब भी सदस्य हैं। विश्व कप क्रिकेट 2007 के फाइनल में चौथे अंपायर के रूप में उन्होंने अपनी भूमिका दोहराई और गलत निर्णय के कारण मैच अनिश्चयता के अंधेरे में समाप्त हुआ।[2] बोडेन 2006 में हुए ब्रिस्बेन के एशेज टेस्ट में एक घटना में उलझ गए जब स्क्वेयर लेग क्षेत्ररक्षण की जगह पर खड़े गेरेंट जोन्स की एक गेंद की चोट से जमीन पर गिर पड़े.[3] जनवरी 2007 में, बोडेन हैमिल्टन में न्यूजीलैंड और श्रीलंका के बीच खेले जाने वाले मैच की औपचारिक अम्पायरिंग करते हुए 100 वें एकदिवसीय के सबसे कम उम्र के अंपायर बन गए, जो उनके 1995 में पहले वनडे के बिल्कुल अनुकूल था। कुछ दिनों के बाद साइमन टॉफेल का रिकॉर्ड इससे बेहतर हो गया।
अपनी गठिया संधिवात (disease)की वजह से, बोडेन के लिए किसी बल्लेबाज को पारंपरिक फैशन से सिर के साथ एक सीध में सूचकांक उंगली ऊपर उठा कर आउट का संकेत देना बहुत दर्दनाक था,[4] और इस कारण ही "कयामत की कुटिल उंगली" का प्रयोग होने लगा। अन्य कई संकेतों में भी उन्होंने अपने तिरछे संकेतो का प्रयोग किया है, जिसमे चौके के लिए झाड़ू से "कणों को बुहारने" जैसी बांहों को लहराकर संचालन एवं छक्के के लिए "दोनो हाथों की तर्जनियों को टेढ़ी कर छह चरण में फुदकाकर संकेत करना शामिल है। टेस्ट मैचों में उनके संकेत शांत और गंभीर, एकदिवसीय मैचों में आकर्षक और निश्चित तथा ट्वेंटी -20 में भड़कीले रहे हैं। उनके व्यवहार ने प्रशंसकों और आलोचकों दोनों को एक समान ही आकर्षित किया है। मार्टिन क्रो ने उन्हें मसख़रा बोजो के नाम से उन्हें आभूषित किया है[4] और कम से कम एक भाष्यकार ने कहा है कि उन्हें याद रखना चाहिए कि क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए हैं नकि अंपायर के लिए.[5] हालांकि उनके लिए यह सुझाव भी पेश किया गया है कि संधिवात की वजह से उन्हें अपनी ही संकेत शैली अपनाने की जरूरत है, क्योंकि उन्हें अपने शरीर के तरल पदार्थ को बरकरार बनाए रखना जरूरी है।[4]
4 मार्च 2011 तक:[6]
प्रथम | नवीनतम | कुल | |
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टेस्ट्स | ऑकलैंड में न्यूजीलैंड बनाम ऑस्ट्रेलिया, मार्च 2000 | सिडनी में ऑस्ट्रेलिया बनाम इंग्लैंड, जनवरी 2011 | 65 |
एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय | हैमिल्टन में न्यूजीलैंड बनाम श्रीलंका, मार्च 1995 | बंगलौर में इंग्लैंड बनाम आयरलैंड, मार्च 2011 | 152 |
टी-20 | ऑकलैंड में न्यूजीलैंड बनाम ऑस्ट्रेलिया, फ़रवरी 2005 | ऑकलैंड में न्यूजीलैंड बनाम पाकिस्तान, दिसंबर 2010 | 19 |
पुरस्कार
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में बाहरी कड़ी (मदद)
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में बाहरी कड़ी (मदद)