बिहु नृत्य (असमिया: বিহু নৃত্য, हिन्दी: बिहू नृत्य) भारत के असम राज्य का लोक नृत्य है जो बिहु त्योहार से संबंधित है।[1]यह खुशी का नृत्य युवा पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है और इसकी विशेषता फुर्तीली नृत्य मुद्राएँ तथा हाथों की तीव्र गति है। नर्तक पारंपरिक रंगीन असमिया परिधान पहनते हैं।[2]
हालाँकि बिहु नृत्य का मूल अज्ञात है, लेकिन इसका पहला आधिकारिक सबूत तब मिलता है जब अहोम राजा रूद्र सिंह ने 1694[3] के आसपास रोंगाली बिहु के अवसर पर बिहु नर्तकों को रणघर क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया था।
बिहु एक समूह नृत्य है जिसमें पुरुष और महिलाएं साथ-साथ नृत्य करते हैं किन्तु अलग-अलग लिंग भूमिकाएं बनाए रखते हैं। आमतौर पर महिलाएं पंक्ति या वृत्त संरचना का सख्ती से पालन करती हैं। पुरुष नर्तक और संगीतकार नृत्य क्षेत्र में सबसे पहले प्रवेश करते हैं और वे अपनी पंक्ति को बनाए रखते हैं और समक्रमिक आकृतियां बनाते हैं। जब बाद में महिला नर्तकियां प्रवेश करती हैं तो पुरुष नर्तक महिला नर्तकियों, जो अपनी संरचनाओं तथा नृत्य क्रम को बनाए रखती हैं, के साथ मिलने के लिए अपनी पंक्तियां भंग कर देते हैं। आमतौर पर नृत्य की विशेषता निश्चित मुद्राएं, लय में कूल्हे, बाजू, कलाइयां हिलाना, घूमना, घुटनों को मोड़ना तथा झुकना है लेकिन इसमें छलांगें नहीं हैं। बहुत मामूली लेकिन सूक्ष्म अंतर के साथ पुरुष और महिलाओं की नृत्य मुद्राएं एक समान हैं।
यह नृत्य पारंपरिक बिहु संगीत के साथ पेश किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण संगीतकार ढोलकिये (ढुलिया) हैं, जो ढोल नामक दोनों और से बजाया जा सकने वाला ड्रम बजाते हैं, जो गर्दन से लटका होता है तथा एक लकड़ी तथा हथेली की सहायता से बजाया जाता है। आम तौर पर एक से अधिक ढुलिया प्रदर्शन करते हैं और वे प्रदर्शन के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग ताल बजाते हैं। ये तालबद्ध रचनाएं, जिन्हें सिउ कहा जाता है, पारंपरिक रूप से कूटबद्ध हैं। नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले, ढोलकिये एक छोटी तथा तेज गति वाली ताल बजाते हैं। सिउ में परिवर्तन होता है और आमतौर पर ढोलकिये पंक्ति बना कर नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। आम तौर पर शुरुआत में दर्दनाक मूल भाव देने के लिए एकल कलाकार द्वारा मोहोर ज़िंगोर पेपा बजाया जाता है तथा इससे नृत्य के लिए माहौल तैयार होता है। इसके बाद पुरुष नर्तक एक संरचना बना कर नृत्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तथा गायन, जिसमे सभी भाग लेते हैं, के साथ प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले कुछ अन्य वाद्ययंत्र हैं ताला -एक मंजीरा, गोगोना -एक प्रकार की बांसुरी और बांस के वाद्ययंत्र टोका -बाँस का टुनटुना, तथा ज़ुटूली -मिटटी की सीटी। अक्सर बाँस की बाँसुरियों का प्रयोग भी किया जाता है। नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत (बिहु गीत) कई पीढ़ियों से हस्तांतरित होते आ रहे हैं। गीतों के विषय असमिया नव वर्ष के स्वागत से ले कर एक किसान के दैनिक जीवन के वर्णन, असम पर आक्रमण के ऐतिहासिक सन्दर्भों से ले कर व्यंग्यपूर्ण सामयिक सामाजिक व राजनीतिक टिप्पणी तक विस्तृत हैं।
प्रदर्शन अपने आप में लंबा हो सकता है, ताल, माहौल, गति व एकाएक मुद्रा में परिवर्तन जैसे तीव्र बदलावों द्वारा इसे सजीव बनाया जाता है तथा नर्तकों तथा संगीतकारों को अपनी कलाप्रवीणता दिखाने के लिए अल्प अवसर दिए जाते हैं।
उत्तर पूर्व भारतीय समूहों के बीच इस नृत्य के कई प्रकार हैं, उदाहरण के लिए "देओरी बिहु नृत्य", "माइजिंग बिहु नृत्य" इत्यादि, हालाँकि नृत्य का मूल लक्ष्य एक ही रहता है: दर्द और खुशी दोनों को महसूस करने की इच्छा व्यक्त करना।
अप्रैल के मध्य में, वसंत की शुरुआत के साथ, बोहाग महीने के साथ स्थानीय कैलेंडर में नव वर्ष आरंभ होता है। आजकल, इस अवधि के दौरान, पूरे असम (साथ ही साथ उन प्रमुख स्थानों पर भी, जहाँ असमिया प्रवासी रहते हैं) में बिहु प्रतियोगिताएं होती हैं। ये प्रतियोगिताएं एक विशाल भीड़ के रूप में आगंतुकों और स्थानीय लोगों को समान रूप से आकर्षित करती हैं। बिहु नृत्य के अलावा, बिहु कुंवोरी (बिहु राजकुमारी) तथा कई गायन प्रतिभाओं को चुनने के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
बोहाग के महीने के अंत में, स्मरणोत्सव के रूप में कई बोहागी बिदाई कार्यक्रमों का आयोजन करके इस महीने का समापन किया जाता है।
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(मदद)