बीजगणित, भास्कर द्वितीय की रचना है और सिद्धान्तशिरोमणि का द्वितीय भाग है। सिद्धान्तशिरोमणि के अन्य भाग हैं - लीलावती, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय।
इस ग्रन्थ में भास्कराचार्य ने अनेक विषयों की चर्चा की है जो संक्षेप में नीचे दिए गए हैं। इसमें अनिर्धार्य द्विघात समीकरणों के हल की चक्रवाल विधि दी है। यह विधि जयदेव की विधि का भी परिष्कृत रूप है। जयदेव ने ब्रह्मगुप्त द्वारा दी गयी अनिर्धार्य द्विघात समीकरणों के हल की विधि का सामान्यीकरण किया था।
यह विश्व की पहली पुस्तक है जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि धनात्मक संख्याओं के दो वर्गमूल होते हैं।
इसमें बारह अध्याय हैं।
इस ग्रन्थ मे निम्नलिखित उपविषय हैं-