बोइत (ओड़िया: ବୋଇତ) एक प्राचीन भारतीय पारंपरिक नौका है जो प्राचीन कलिंग क्षेत्र के समुद्री इतिहास के दौरान बनाई गई बड़ी नावें और जहाज थे। इनका भारतीय इतिहास, भारत के समुद्री इतिहास और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका है। यह नाव पूर्वी भारतीय साहित्य, संस्कृति और इतिहास में उल्लेखित है और इसे प्रमुखतः ओडिशा, उत्तर प्रदेश[1], बिहार, और बंगाल के क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता रहा। भुवनेश्वर के ब्रह्मेश्वर मन्दिर के पास पाई गई मूर्तियों में बोइता नौका का चित्रण मिला है, यह अब ओडिशा राज्य संग्रहालय में संरक्षित है।
तटीय ओडिशा सहित कलिंग के समुद्र तटीय क्षेत्रों में प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह थे, जिनके लिए बोइता नावों का उपयोग किया जाता था। प्राचीन साधब (समुद्री व्यापारी) व्यापार के लिए कलिंग से श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के दूर-दराज के क्षेत्रों में जाते थे, जिसमें भारतीय मुख्य भूमि और द्वीपीय दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र सम्मिलित थे।
ये व्यापारी जावा, सुमात्रा, बाली और इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ व्यापार करने के लिए इन बोइता नौका का उपयोग करते थे[2]। इन नावों के और समुद्रि यात्रा का सांस्कृतिक महत्व के रूप में आज भी बोइता बंदना समारोह भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है[3]। व्यापारी दक्षिण-पूर्व एशिया में समुद्र के पार दूर-दराज के इलाकों के लोगों के साथ व्यापार करने के लिए महीनों के लिए निकल पड़ते थे। कार्तिक पूर्णिमा को उनकी यात्रा शुरू करने के लिए शुभ माना जाता था। इसलिए यात्रा करने वाले नाविकों के परिवारों की महिलाएँ उनकी सुरक्षित यात्रा और वापसी के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा और अनुष्ठान करती थीं।[4]