भारत में शराब पीने की कानूनी उम्र और शराब की बिक्री तथा खपत को नियंत्रित करने वाले कानून प्रत्येक राज्यों में अलग-अलग हैं।[1] भारत में मुख्य रूप से बिहार, गुजरात, नागालैंड,[2] और मिजोरम राज्यों के अलावा केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में शराब का सेवन प्रतिबंधित है। मणिपुर के कुछ जिलों में शराब पर आंशिक रूप से प्रतिबंध लगाया गया है।[3] इसके अलावा अन्य सभी भारतीय राज्य शराब की बिक्री की अनुमति देते हैं लेकिन शराब पीने की कानूनी उम्र को भी तय करते हैं, जो प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग उम्र में निर्धारित होती है। कुछ राज्यों में विभिन्न प्रकार के मादक पेय के लिए पीने की कानूनी उम्र अलग-अलग है।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन अंग्रेज़ी: OECD के आंकड़ों के अनुसार कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद भी भारत में शराब की खपत 20 वर्षों की अवधि में 55% से अधिक बढ़ोतरी हुई है। इसका कारण यह है कि आम तौर पर ग्राहकों द्वारा व्यापार संबंधों में कानूनी नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।[4][5]
शराब पर पहली बार प्रतिबंध बॉम्बे प्रांत के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने 1954 में लगाया था। यह प्रतिबंध वहाँ के कोली जाति के समुदाय पर लगाया गया था जहाँ महाराष्ट्र के धारावी में शराब की निर्माणशालाएँ स्थित थी। कोली समुदाय द्वारा जामुन, अमरूद, संतरा, सेब और चीकू इत्यादि फलों से शराब निर्माण का कार्य किया गया। 1954 में मोरारजी देसाई के शराब पर प्रतिबंध लगाने पर कोली समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया और दूर-दूर तक रैलियां निकाली गईं। उन्होंने देसाई पर आरोप लगाया कि 'यह दारू-बंदी नहीं है, यह देश-बंदी है' क्योंकि देसाई राज्य में विदेशी शराब बेचते हैं लेकिन हमारे घर की शराब पर प्रतिबंध लगाते हैं।[6][7] शराब पर प्रतिबंध से पहले, धारावी के कोली कानूनी रूप से शराब का निर्माण करते थे लेकिन बाद में शराबबंदी लागू होने पर व्यावसायिक शराब का उत्पादन बंद हो गया और कोली समुदाय का इस क्षेत्र में एकाधिकार हो गया।[8]