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वैसे तो भारत सहित समूचा विश्व आतंकवाद नामक मानवजनित त्रासदी से पीड़ित हैं तथापि भारत बहुत लम्बे समय से आतंकवाद का शिकार होता रहा है। भारतीय राज्यों में प्रमुखता से जम्मू एवं कश्मीर, महाराष्ट्र , दिल्ली , पंजाब व उत्तर प्रदेश आतंकवाद से त्रस्त रहा है ।
आतंकवाद भारतीय उपमहाद्वीप का सर्वप्रमुख विकास अवरूद्ध करने वाला समस्या सिद्ध हुआ है जो समय समय पर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था व प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाते रहा है , और जान माल की अत्यधिक क्षति आतंकवादी घटनाओं से ही अब तक हुआ है , चाहे वह मुम्बई बम ब्लास्ट की घटना हो या बनारस संकटमोचन, रेलवे स्टेशन की आतंकी घटना या फिर दिल्ली की घटना हो या जम्मू कश्मीर पुलवामा अटैक सभी में असंख्य जाने गई है ।
जो क्षेत्र आज आतंकवादी गतिविधियों से लम्बे समय से जुड़े हुए हैं उनमें जम्मू-कश्मीर, मुंबई, मध्य भारत (नक्सलवाद) और आठ बहन राज्य (उत्तर पूर्व के आठ राज्य) (स्वतंत्रता और स्वायत्तता के मामले में) शामिल हैं। अतीत में पंजाब में पनपे उग्रवाद में आंतकवादी गतिविधियां शामिल हो गयीं जो भारत देश के पंजाब राज्य और देश की राजधानी दिल्ली तक फैली हुई थीं।
2006 में देश के 608 जिलों में से कम से कम 232 जिले विभिन्न तीव्रता स्तर के विभिन्न विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से पीड़ित थे।[1] अगस्त 2008 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन का कहना था कि देश में 800 से अधिक आतंकवादी गुट सक्रिय हैं।[2]
आतंक वाद के कारण 9/11 का विश्व का सबसे बड़ा आतंकवाद हमला हुआ था ।
भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले का घटनाक्रम (उलटे क्रम में) इस प्रकार है-
14 फरवरी 2019 जम्मू से कश्मीर जा रहे पुलवामा के पास CRPF काफिले पर फियादीन हमला किया गया जिसमें CRPF के 44 जवान शहीद हुए जिसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आंतकवादी संगठन जैश-ए-महमद ने ली
मुम्बई, १३ जून २०११ : तीन स्थानों पर बम विस्फोट. 49 से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल.
फरवरी, 2010: महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया। इसमें 16 लोग मारे गए, जिनमें से काफी विदेशी भी थे। एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेदार ठहराया गया।
मुंबई, 26 नवम्बर 2008 : भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादियों ने घुसकर तीन दिनों तक दहशत फैलाई. पांचसितारा होटलों और रेल्वे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए। भारत के ब्लैक कैट कमांडो की कार्रवाई में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को छोड़ कर सारे आतंकवादी मारे गए। हमले की साजिश पाकिस्तान में रचे जाने की पुष्टि हुई हैं।
असम, 30 अक्टूबर 2008 : असम में 81 आतंकवादी हमलों में कम से कम 470 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इंफाल, 21 अक्टूबर 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर के नजदीक शक्तिशाली विस्फोट में 17 लोग मारे गए।
मालेगाँव (महाराष्ट्र), 29 सितंबर 2008 : भीड़भाड़ वाले बाजार में मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटकों के विस्फोट होने से पाँच लोगों की मौत।
मोदासा (गुजरात), 29 सितंबर 2008 : एक मस्जिद के नजदीक कम तीव्रता वाले बम विस्फोट में एक की मौत, कई घायल।
नई दिल्ली, 27 सितंबर 2008 : महरौली के भीड़भाड़ वाले बाजार में बम फेंकने से तीन लोगों की मौत।
नई दिल्ली, 13 सितंबर 2008 : शहर के विभिन्न हिस्सों में छह बम विस्फोटों में 26 लोगों की मौत।
अहमदाबाद, 26 जुलाई 2008 : दो घंटे से कम समय के भीतर 20 बम विस्फोटों में 57 लोगों की मौत।
बेंगलुरु, 25 जुलाई 2008 : कम तीव्रता के बम विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत।
जयपुर, 13 मई 2008 : सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत।
रामपुर, जनवरी 2008 : रामपुर में सीआरपीएफ शिविर पर आतंकवादी हमले में आठ की मौत।
अजमेर, अक्टूबर 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में रमजान के समय दरगाह के अंदर विस्फोट में दो की मौत।
हैदराबाद, अगस्त 2007 : हैदराबाद में आतंकवादी हमले में 42 की मौत, 54 घायल।
हैदराबाद, मई 2007 : हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट में 11 की मौत।
फरवरी 2007 : भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोटों में कम से कम 70 यात्री जल मरे, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी थे।
मालेगाँव, सितंबर 2006 : मालेगाँव के एक मस्जिद में दोहरे बम विस्फोट में 40 लोगों की मौत और सौ लोग घायल।
मुंबई, जुलाई 2006 : मुंबई की ट्रेनों में सात बम विस्फोटों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और 700 अन्य घायल।
वाराणसी, मार्च 2006 : वाराणसी के एक मंदिर और रेलवे स्टेशन पर दोहरे बम विस्फोट में 28 लोगों की मौत।
अक्टूबर 2005 : दीवाली से एक दिन पहले नई दिल्ली के व्यस्त बाजारों में तीन बम विस्फोटों में 70 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग घायल।
मुंबई ज्यादातर आतंकवादी संगठनों का सबसे पसंदीदा लक्ष्य रहा है, मुख्य रूप से कश्मीर की अलगाववादी ताकतों का. पिछले कुछ वर्षों में जिन हमलों की शृंखलाओं को अंजाम दिया गया उनमें जुलाई 2006 में लोकल ट्रेनों में हुए विस्फोट और बिल्कुल हाल में 26 नवम्बर 2008 को हुए अभूतपूर्व हमले शामिल हैं जहां दो मुख्य होटलों और दक्षिण मुंबई में स्थित एक इमारत पर कब्जा कर लिया गया था।
मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों में शामिल हैं:*
जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह में अब तक 11 हजार से अधिक लोगों की जानें गयी हैं।[तथ्य वांछित] कश्मीर में उग्रवाद विभिन्न रूपों में मौजूद है। वर्ष 1989 के बाद से उग्रवाद और उसके दमन की प्रक्रिया, दोनों की वजह से हजारों लोग मारे गए। 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई. [10] [11] भारत द्वारा पाकिस्तान के इंटर इंटेलिजेंस सर्विसेज द्वारा जम्मू और कश्मीर में लड़ने के लिए मुज़ाहिद्दीन [12][13]का समर्थन करने और प्रशिक्षण देने के लिए दोषी ठहराया जाता रहा है। [14] [15] जम्मू और कश्मीर विधानसभा (भारतीय द्वारा नियंत्रित) में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार यहां लगभग 3,400 ऐसे मामले थे जो लापता थे और संघर्ष के कारण यथा जुलाई 2009 तक लगभग 47000 लोग मारे गए। बहरहाल, पाकिस्तान और भारत के बीच शांति प्रक्रिया तेजी से बढ़ने के क्रम में राज्य में उग्रवाद से संबंधित मौतों की संख्या में थोड़ी कमी हुई है। [16]
हालांकि राज्य में आतंकवाद को एक प्रमुख मुद्दे के तौर पर विचार नहीं किया है, जहां भाकपा-माले (CPI-ML), पीपुल्स वार, MMC, रणवीर सेना और बलबीर मिलिशिया जैसे कुछ समूह सक्रिय हैं और वे अक्सर स्थानीय पुलिस और नेताओं पर हमला करते हैं जो एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है।
बिहार में लचर प्रशासन और कानून और व्यवस्था की स्थिति ने मिलिशिया (नागरिक सेना या लड़ाके) के खतरों में वृद्धि में मदद की है। रणवीर सेना अगड़ी जाति और भूमि मालिकों की नागरिक सेना है जो इस क्षेत्र में शक्तिशाली नक्सलियों के प्रभाव से मुकाबले के लिए गठित की गयी है।
यह राज्य इन जातीय समूहों और अन्य समूहों द्वारा की गयी जवाबी कार्रवाई से हुई नरसंहार की कई घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। सभी नागरिक सेनाएं कुछ जाति समूहों के हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
इन समूहों की हिंसा का मुख्य शिकार असहाय लोग हुए हैं (महिलाएं, बूढ़े और बच्चे भी) जो जातिगत कारणों से हुए नरसंहार में मारे गये हैं। राज्य पुलिस की खस्ताहाली के कारण उसे आतंकवादियों के AK-47, AK-56 का मुकाबला अपनी पुरानी 303 राइफलों से करना पड़ता है। उग्रवादी पुलिस दलों को मारने के लिए घात लगाकर बारूदी सुरंगों का भी इस्तेमाल करते हैं।
राज्य में आतंकवादी गतिविधियों का मूल कारण विभिन्न जातीय समूहों के बीच भारी असमानता है। यह माना जाता था कि आजादी के बाद भूमि सुधारों को लागू किया जायेगा जिससे नीची जाति और गरीबों को उस ज़मीन में से हिस्सा मिलेगा जो उस समय तक ज्यादातर उच्च जाति के लोगों के पास थी।
हालांकि राज्य में जाति के आधार पर विभाजनकारी राजनीति के कारण भूमि सुधार को ठीक तरह से लागू नहीं किया गया। इससे निम्न जाति के बीच अलगाव की भावना बढ़ती गयी।
भाकपा-माले, MCC और पीपुल्स वार जैसे साम्यवादी समूहों ने इसका फायदा उठाया और निम्न जाति के लोगों को व्यवस्था के खिलाफ हथियार उठाने के लिए भड़काया जिसे अमीरों के हाथ के औजार के तौर पर देखा जाता था। उन्होंने ऊंची जाति के अमीरों की हत्या कर उनकी ज़मीनों को हथियाना शुरू कर दिया।
उच्च जाति के लोगों ने अपने बचाव व नक्सलियों से मुकाबले के लिए अपनी सेना रणवीर सेना का गठन किया। राज्य ने इन समूहों द्वारा अपनी श्रेष्ठता साबित करने की कोशिश में की गयी सामूहिक हत्याओं का खूनी दौर भी देखा. पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और इन हत्याओं की मूक साक्षी बनी रही।
लेकिन अब रणवीर सेना अपने शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी के बाद काफी हद तक कमजोर हो गयी है। अन्य समूह अभी भी सक्रिय हैं।
हाल ही में देश के विभिन्न भागों में कई गिरफ्तारियां हुई हैं, खास तौर पर दिल्ली और मुंबई पुलिस द्वारा, जिससे इस बात के संकेत मिले हैं कि अतिवादी/आतंकवादी संगठन राज्य में अपना नेटवर्क फैला रहे हैं। इस बात का भी बहुत अधिक संदेह है कि बिहार का इस्तेमाल छोटे हथियार, जाली मुद्रा और नशीले पदार्थों के डीलरों द्वारा नेपाल से प्रवेश के लिए पारगमन बिंदु के तौर पर किया जाता है और आतंकवादी कथित तौर पर नेपाल और बंगलादेश से घुसपैठ करते रहते हैं।
हालांकि, हाल के वर्षों में विभिन्न जातीय समूहों के हमले कम हुए हैं जो सरकार के बेहतर कामकाज का नतीजा है।
1970 के दशक के दौरान भारतीय हरित क्रांति से पंजाब के सिख समुदाय की आर्थिक समृद्धि में वृद्धि हुई। इस प्रवृत्ति ने सिख समुदाय के एक युग पुराने भय को भड़काया कि हिंदू समाज उनका शोषण कर रहा है, जिससे सिख आतंकवादिओं की संख्या में वृद्धि हुई।
1980 के दशक के दौरान उग्रवाद तेज हो गया, जब आंदोलन ने हिंसक मोड़ लिया और खालिस्तान नाम फिर प्रासंगिक हो उठा और भारतीय संघ से स्वतंत्र होने की मांग की गयी। जरनैल सिंह भिंडरांवाले के नेतृत्व में आंदोलन की मांगों की पूर्ति के लिए आतंकवाद का उपयोग शुरू किया गया, हालांकि वे खालिस्तान के निर्माण के न तो समर्थक थे और ना ही उसके विरोधी. जब भारत ने यह आरोप लगाया कि पड़ोसी देश पाकिस्तान इन आतंकवादियों को समर्थन दे रहा है, उसे 1983-4 में सिखों का व्यापक समर्थन हासिल हो गया और मामले ने खूनी मोड़ ले लिया।
1984 में भारत सरकार ने आंदोलन को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। स्वर्ण मंदिर परिसर में हमला किया गया, जिसकी संत भिंडरांवाले ने सेना के हमले के लिए किलेबंदी की तैयारी कर ली थी। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को आदेश दिया कि वह मंदिर पर धावा बोलें, जिसने अंततः टैंकों का इस्तेमाल किया था।
चौहत्तर घंटे की गोलीबारी के बाद सेना को मंदिर पर नियंत्रण करने में सफलता हाथ लगी। ऐसा करने में अकाल तख्त के कुछ हिस्से, सिख सन्दर्भ पुस्तकालय और स्वयं स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों में क्षति पहुंची. भारत सरकार के सूत्रों के अनुसार तिरासी सैन्य कर्मी इसमें मारे गये और 249 घायल हो गये। मारे गये आतंकवादियों की संख्या 493 थी और छियासी घायल हुए.
उसी वर्ष के दो सिख अंगरक्षकों द्वारा इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी जिसे स्वर्ण मंदिर मामले से उत्प्रेरित माना जाता है, जिसके व्यापक विरोध के परिणामस्वरूप सिख दंगे हुए, विशेष रूप से नयी दिल्ली में. उसके बाद 1988 में पंजाब पुलिस ने पहले जूलियो रिबेरो और उसके पश्चात KPS गिल के नेतृत्व में भारतीय थल सेना के साथ मिलकर ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया जिसने आंदोलन को भूमिगत होने के लिए मजबूर करने में सफलता अर्जित की।
1985 में सिख आतंकवादियों ने कनाडा से भारत आ रहे एयर इंडिया के विमान में बम विस्फोट किया जिससे एयर इंडिया उड़ान 182 में सवार सभी 329 यात्री मारे गये। यह कनाडा के इतिहास में सबसे ज्यादा भयावह आतंकवादी कार्रवाई है।
सिख आतंकवाद की समाप्ति और खालिस्तान की मांग के मुख्य स्रोत तब नष्ट हुए जब पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने एक सद्भावना संकेत के रूप में भारत सरकार को पंजाब के आतंकवाद से सम्बंधित सभी खुफिया सामग्री सौंप दी। भारत सरकार ने खुफिया जानकारियों का इस्तेमाल भारत में हो रहे आंतकवादी हमलों के पीछे सक्रिय लोगों का खात्मा करने में किया।
1993 में प्रत्यक्ष सिख आतंकवाद की समाप्ति के बाद अपेक्षाकृत शांत अवधि में आतंकवादी कृत्यों (उदाहरण है 1995 में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या) के लिए आधे दर्जन के आसपास लड़ाकू सिख संगठनों को चिह्नित किया गया। इन संगठनों में बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स शामिल हैं।
खालिस्तान को कनाडा और ग्रेटब्रिटेन के सिख समुदाय से अब भी व्यापक सहायता मिल रही है।
भारत की राजधानी नयी दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को तीन विस्फोट किये गये जिसमें 70 से अधिक लोग मारे गए और कम से कम 250 अन्य लोग घायल हो गए। विस्फोटों में 2005 में भारत में विस्फोटों से घातक हमलों में मारे गये लोगों की संख्या सर्वाधिक रही। उसके बाद 13 सितम्बर 2008 को 5 बम विस्फोट किये गये।
सुरक्षा पर दिल्ली शिखर वार्ता 14 फ़रवरी 2007 को हुई जिसमें चीन, भारत और रूस के विदेश मंत्रियों ने भारत के हैदराबाद हाउस, दिल्ली में भाग लिया। वार्ता में आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी, संयुक्त राष्ट्र में सुधार और अफगानिस्तान, ईरान, इराक तथा उत्तरी कोरिया में सुरक्षा की स्थिति पर चर्चा हुई। [3][4]
१३ दिसम्बर २००१ को आतंकवादियों ने भारतीय संसद पर हमला किया जिसमें ४५ मिनट तक गोलीबारी होती रही जिसमें ९ पुलिसकर्मी और संसद कर्मचारी मारे गए। सभी पांच आतंकवादी भी सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए और उनकी पहचान पाकिस्तानी नागरिकों के रूप में की गयी। हमला भारतीय समयानुसार सुबह ११:४० के आसपास हुआ जिसके कुछ ही मिनटों बाद संसद के दोनों सदनों को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया।
कमांडो की वर्दी पहने हुए संदिग्ध आतंकवादियों ने एक कार में सवार होकर VIP गेट से होकर संसद में प्रवेश किया था। संसद और गृह मंत्रालय के सुरक्षा स्टिकर दिखाकर वाहन ने संसद परिसर में प्रवेश किया था।
आतंकवादियों ने हमले के लिए एके ४७ राइफलों, विस्फोटकों और हथगोलों का उपयोग करते हुए जमकर विस्फोट किये। जिस समय हमला हुआ संसद के केन्द्रीय कक्ष में कई वरिष्ठ मंत्री और संसद के २०० से अधिक सदस्य थे। सुरक्षा कर्मियों ने पूरे परिसर को सील कर दिया था जिससे कई लोगों की जान बच गयी।
पंजाब की खुशहाली कुछ नेताओं को रास नहीं आरही जो ऐसे - ऐसे स्लोगन बना कर पंजाबी भाई चारा बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इन का तो लक्ष्य ही सत्ता को केसे भी हथियाना होता है।
लंबे अरसे से चल रहे अयोध्या विवाद का समापन अंततः 16 वीं सदी में बनाए गए बाबरी ढांचे स्थल पर भीड के हमले से हुआ और अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहा दिया गया। इसके बाद 5 जुलाई 2005 को पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैय्यबा आतंकवादियों और भारतीय पुलिस के बीच दो घंटे की गोलीबारी के बाद, जिसमें छह आतंकवादी मारे गये, देश के नेताओं ने हमले की निन्दा की और विपक्षी दलों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, ऐसा माना जाता है कि हमले के पीछे दाऊद इब्राहिम का दिमाग था।
हिन्दुओं के पवित्र शहर वाराणसी में 7 मार्च 2006 को शृंखलाबद्ध बम विस्फोट हुए. रिपोर्ट के अनुसार इसमें 28 लोग मारे गये और कम से कम 101 अन्य घायल हो गये। हमलों की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली लेकिन यह अनुमान लगाया जाता है कि ये बम विस्फोट वाराणसी में इस घटना से पहले फरवरी 2006 में लश्कर- ए-तैय्यबा के एजेंट की गिरफ्तारी की जवाबी कार्रवाई के तौर पर किया गया।
5 अप्रैल 2006 को भारतीय पुलिस ने छह इस्लामी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया जिसमें एक मौलवी भी शामिल है, जिसने बम विस्फोट की योजना बनाने में मदद पहुंचायी. माना जाता है कि मौलवी बांग्लादेश में प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी गुट हरकत-उल-जिहाद अल इस्लामी का एक कमांडर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस से जुड़ा हुआ है।[5]
पूर्वोत्तर भारत में 7 राज्य शामिल हैं (जिन्हें सात बहनों के नाम से भी जाना जाता है) आसाम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नगालैंड. इन राज्यों और केन्द्र सरकार तथा इस राज्य के मूल निवासी आदिवासियों और भारत के अन्य भागों से यहां आये प्रवासी लोगों के बीच तनाव होते रहते हैं।
राज्यों ने नयी दिल्ली पर आरोप लगाया है कि वह उनसे सम्बंधित मुद्दों की अनदेखी कर रही है। इस भावना के कारण इन राज्यों के निवासियों में शासन में अपनी भागीदारी अधिक रखने की मांग उठने लगी है। मणिपुर और नगालैंड के बीच क्षेत्रीय विवाद विवाद कायम है।
पूर्वोत्तर, खासकर आसाम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों में विद्रोही गतिविधियों और क्षेत्रीय आंदोलनों में वृद्धि हुई है। इनमें से अधिकांश संगठनों ने स्वतंत्र राज्य का दर्जा या क्षेत्रीय स्वायत्तता और संप्रभुता में वृद्धि की मांग की है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में तनाव खत्म करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें इस क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर को उठाने के ठोस प्रयास कर रही हैं। हालांकि, आतंकवाद भारत के इस क्षेत्र में अब भी मौजूद है, जिसे बाहरी स्रोतों से समर्थन प्राप्त है।
और शायद पहली बार सबसे महत्वपूर्ण उग्रवाद 1950 के दशक के में नगालैंड में प्रारम्भ में शुरू हुआ और उस पर अन्ततः 1980 के दशक की शुरूआत में दमन और सह-स्थापना के मिश्रण प्रयासों से काबू पा लिया गया। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड, इसाक मुइवा (NSCN-IM), ने एक स्वतंत्र नगालैंड की मांग है और इस क्षेत्र में भारतीय सेना के ठिकानों पर कई हमले किए। सरकारी अधिकारियों के अनुसार 1992 से 2000 के बीच 599 नागरिकों, 235 सुरक्षाबलों और 862 आतंकवादियों ने अपनी जान गंवाई है।
14 जून 2001 को भारत सरकार और NSCN-IM के बीच एक संघर्ष-विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये गये, जिसे नगालैंड में व्यापक स्वीकृति और समर्थन प्राप्त हुआ। नगा नेशनल काउंसिल-फेडरल (NNC-F) और नेशनल काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग (NSCN-K) जैसे आतंकवादी संगठनों ने भी विकास का स्वागत किया।
कुछ पड़ोसी राज्यों, खासकर मणिपुर ने संघर्ष विराम पर गंभीर चिंता जतायी. उन्हें डर था कि कहीं NSCN अपने राज्य में आतंकवादी गतिविधियों को न जारी रखे और नयी दिल्ली से युद्धविराम समझौते को रद्द करते हुए और सैन्य कार्रवाई का नवीकरण न कर दे। संघर्ष-विराम के बावजूद NSCN ने अपने विद्रोह को जारी रखा[तथ्य वांछित].
नगालैंड के बाद असम क्षेत्र का सबसे अधिक अस्थिर राज्य है। 1979 के प्रारम्भ में असम के स्थानीय लोगों ने मांग की कि उन अवैध आप्रवासियों को चिह्नित किया जाये और वापस भेज दिया जाये जो बांग्लादेश से असम आये थे। अखिल असम छात्र संघ के नेतृत्व में सत्याग्रह, बहिष्कार, धरना और गिरफ्तारी देकर अंहिसक ढंग से अपना आंदोलन शुरू किया गया।
जो लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे उन पर पुलिस कार्रवाई हुई। 1983 में एक चुनाव हुआ जिसका आंदोलन के नेताओं ने विरोध किया। चुनाव में व्यापक हिंसा हुई। आंदोलन अंतत: आंदोलन के नेताओं के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद समाप्त हुआ (जिसे असम समझौता कहते हैं) जो केन्द्र सरकार के साथ 15 अगस्त, 1985 को हुआ।
इस समझौते के प्रावधानों के अंतर्गत कोई ऐसा व्यक्ति जिसने राज्य में अवैध रूप से जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच प्रवेश किया है उसे रहने की अनुमति है लेकिन दस साल बाद उसे बेदखल होना पड़ेगा, जबकि जिन लोगों ने 1971 के बाद राज्य में प्रवेश किया है उन्हें निष्कासन झेलना पड़ेगा. नवम्बर 1985 में भारतीय नागरिकता कानून में संशोधन कर चुनाव में मतदान के अधिकार को छोड़कर शेष सभी नागरिकता अधिकार 10 वर्ष के लिए उन लोगों को दिये गये जिन्होंने 1961 से 1971 के बीच असम में प्रवेश किया था।
नयी दिल्ली ने भी राज्य में बोडो को विशेष प्रशासन स्वायत्तता दी। हालांकि, बोडो समुदाय के लोगों ने एक अलग बोडोलैंड की मांग की जिसके कारण बंगालियों, बोडो और भारतीय सेना के बीच संघर्ष छिड़ गया परिणामस्वरूप सैकड़ों की संख्या में लोग मारे गये।
कई संगठन हैं जो असम की स्वतंत्रता की वकालत कर रहे हैं। जिनमें से सबसे प्रमुख ULFA (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम) है। 1971 में स्थापित ULFA के दो मुख्य लक्ष्य हैं असम की स्वतंत्रता और समाजवादी सरकार की स्थापना.
ULFA ने 1971 में भारतीय सेना और असैनिकों को लक्ष्य करके क्षेत्र में कई आतंकवादी हमले किए हैं। इस समूह ने राजनैतिक विरोधियों की हत्या, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों पर हमले किये हैं, रेल पटरियों को उड़ाया है और अन्य बुनियादी सुविधाओं की स्थापनाओं पर हमले किये हैं। माना जाता है कि ULFA के नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN), माओवादियों और नक्सलियों के साथ मजबूत संबंध हैं।
यह भी विश्वास किया जाता है वे अपने ज्यादातर अभियानों को भूटान राज्य से संचालित करते हैं। ULFA के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार ने 1986 में समूह को गैरकानूनी और असम को एक अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया। नयी दिल्ली के दबाव में भूटान ने अपने क्षेत्र से ULFA उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया।
भारतीय सेना के समर्थन से थिम्पू एक हजार से अधिक आतंकवादियों को मारने में कामयाब रहा और अनेकानेक अपराधियों अपराधियों को भारत प्रत्यर्पित करने में कामयाब रहा जबकि अभियानपक्ष की ओर से केलव 120 लोग मारे गये। भारतीय सेना ने ULFA के भावी हमलों को विफल करने के उद्देश्य से कई सफल अभियान चलाया है लेकिन ULFA क्षेत्र में सक्रिय बना हुआ है। 2004 में ULFA ने असम में एक पब्लिक स्कूल को निशाना बनाया जिसमें 19 बच्चे और 5 वयस्क लोग मारे गए।
असम पूर्वोत्तर में एकमात्र राज्य है, जहां आतंकवाद अभी भी एक प्रमुख मुद्दा है। भारतीय सेना अन्य क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को खत्म करने में कामयाब हो गयी थी लेकिन आतंकवादियों से निपटने के लिए कथित रूप से कठोर तरीके का इस्तेमाल करने के लिए मानवाधिकार समूहों द्वारा आलोचना की गयी।
18 सितम्बर 2005 को एक सिपाही जिरीबाम, मणिपुर में मणिपुर-असम सीमा के निकट उल्फा के सदस्यों के हाथों मारा गया।
त्रिपुरा में 1990 के दशक में आतंकवादी गतिविधियों में काफी उथल पुथल देखी गयी। नयी दिल्ली ने विद्रोहियों को अपने क्षेत्र से विद्रोही कार्यकलापों के संचालन के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के लिए बंगलादेश को दोषी ठहराया. त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद के नियंत्रण के अधीन इस क्षेत्र में नयी दिल्ली, त्रिपुरा राज्य सरकार और परिषद के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता के बाद वृद्धि की गयी। सरकार ने उसके बाद आंदोलन पर नियंत्रण कर लिया है, हालांकि कुछ विद्रोही गुट अभी भी सक्रिय हैं।
मणिपुर में आतंकवादियों ने एक संगठन स्थापित किया है जिसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी कहते हैं। उनका मुख्य लक्ष्य बर्मा की जनजातियों मेइती लोगों को एकजुट करना और स्वतंत्र राज्य मणिपुर की स्थापना करना है। हालांकि माना जाता है कि आंदोलन 1990 के दशक के मध्य में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा भीषण संघर्ष के बाद दबा दिया गया।
18 सितम्बर 2005 को छह अलगाववादी विद्रोहियों छुरछंदपुर जिले में झूमी रिवोल्यूशनरी आर्मी और झूमी क्रांतिकारी मोर्चा के बीच संघर्ष में मारे गए।
कंगली यावोल कन्ना लूप (KYKL) क्षेत्रीय संगठन के AK-56 राइफल्स से लैस विद्रोहियों ने 20 सितम्बर 2005 को मणिपुर की राजधानी इंफाल से 22 मील दूर दक्षिण पश्चिम के नारिआंग गांव में 14 भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया और मार डाला. भारत सरकार के एक प्रवक्ता के अनुसार "अज्ञात विद्रोहियों ने स्वचालित हथियारों से हमला कर सड़क पर गश्त कर रहे सेना के गोरखा राइफल्स के आठ जवानों को मौके पर ही मार डाला।
मिजो नेशनल फ्रंट आजादी प्राप्त करने के लिए भारतीय सेना से 2 दशकों से अधिक अवधि से लड़ाई लड़ रहा है। अन्य पड़ोसी राज्यों की तरह यहां भी उग्रवाद पर सेना ने काबू पा लिया।
कर्नाटक ऐतिहासिक महत्व के अनेक स्थानों और भारत के आईटी हब (सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र), बेंगलुरू होने के बावजूद आतंकवाद से काफी कम प्रभावित है। हालांकि, पश्चिमी घाट में हाल में नक्सली गतिविधि बढ़ रही है। इसके अलावा कुछ हमले हुए हैं जिनमें 28 दिसम्बर 2005 को IISc पर हमला और बेंगलुरू में 26 जुलाई 2008 को हुए सीरियल बम विस्फोट प्रमुख हैं।
आंध्र प्रदेश आतंकवाद से प्रभावित कुछ दक्षिणी राज्यों में से एक है, हालांकि यह एक अलग तरह का और बहुत छोटे पैमाने पर है। आंध्र प्रदेश में आतंकवाद पीपुल्स वार ग्रुप या PWG की उपज है जो नक्सलाइट के नाम से जाना जाता है।
'PWG' भारत में दो दशक से अधिक अविध से सक्रिय है उसके ज्यादातर अभियान आंध्र प्रदेश के तेलंगाना में चलाये जाते हैं। यह दल उड़ीसा और बिहार में भी सक्रिय है। कश्मीरी आतंकवादियों और ULFA के विपरीत PWG एक माओवादी आतंकवादी संगठन है और साम्यवाद इसके प्राथमिक लक्ष्यों में से एक है।
चुनाव में व्यापक समर्थन पाने में नाकाम रहने के कारण वे अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। समूह साम्यवाद के नाम पर भारतीय पुलिस, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अन्य प्रभावशाली संस्थानों को अपना निशाना बनाता है। PWG ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को अपना निशाना बनाया है, जिसमें आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हत्या करने का प्रयास भी शामिल है।
कथित तौर पर इन सशस्त्र आतंकवादियों की संख्या 800 से 1000 है और इनका नेपाल के माओवादियों और श्रीलंका के LTTE (लिट्टे) के साथ घनिष्ठ संबंध माना जाता है। भारत सरकार के अनुसार औसतन 60 से अधिक नागरिक, 60 नक्सली विद्रोही और एक दर्जन पुलिसकर्मी हर साल PWG के नेतृत्व वाले उग्रवाद में मारे जाते हैं। इसके बड़े आतंकवादी हमलों में 25 अगस्त 2007 को हैदराबाद में हुआ हमला प्रमुख है।
तमिलनाडु में LTTE लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या होने तक सक्रिय रहा। LTTE ने तमिलनाडु राज्य में वेलुपिल्लई प्रभाकरन, तमिलसेल्वन और ईलम के अन्य सदस्यों के नेतृत्व में कई वक्तव्य दिये। तमिल टाइगर्स, जो अब एक प्रतिबंधित संगठन है, को अतीत में भारत में काफी चंदे और समर्थन प्राप्त हुए. भारत में एक आतंकवादी तमिल आंदोलन से जुड़े तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी का सम्बंध LTTE से है।
तमिलनाडु को मुस्लिम कट्टरपंथी आतंकवादी द्वारा किये गये हमलों का भी सामना करना पड़ता है। अधिक जानकारी के लिए देखें, 1998 कोयंबटूर बम विस्फोट.
एयर इंडिया फ्लाइट 182 एयर इंडिया की उडा़न थी जो मॉन्ट्रियल-लंदन-दिल्ली-मुंबई मार्ग पर संचालित थी। 23 जून 1985 को बोइंग 747-237B मार्ग पर उड़ना भर रहा था, उसी दौरान आयरिश हवाई क्षेत्र पर बम फेंका गया था, जिससे जहाज पर सवार सभी लोग मारे गए। 11 सितंबर 2001 के पहले तक एयर इंडिया बम विस्फोट सर्वाधिक लोगों के मारे जाने वाला एक ऐसा आतंकवादी हमला था जिसमें विमान शामिल हो, यह दिन अब तक कनाडा के इतिहास में सबसे बड़ी सामूहिक हत्या वाला दिन है। इस हमले की जिम्मेदारी बब्बर खालसा ने ली है जो एक कट्टर आतंकवादी समूह के रूप में जाना जाता है, जिस पर उस समय और अब भी कनाडा, संयुक्त राज्य अमरीका, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी और भारत में 1985 से प्रतिबंध लगा हुआ है।
घटना नारिता एयरपोर्ट पर बमबारी के एक घंटे के भीतर हुई। सम्राट कनिष्क नामके के बोइंग विमान 747-237B (c/n 21473/330, रेग VT-VT-EFO) में 31,000 फीट (9,500 मीटर) की ऊंचाई पर विस्फोट हुआ, जो दुघर्टनाग्रस्त होकर अटलांटिक महासागर में गिरा, जिससे उस पर सवार सभी 329 लोग मारे गए, जिनमें 280 कनाडा और 22 भारत के नागरिक थे।
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