इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। स्रोत खोजें: "भारत में बंधुआ मजदूरी" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
भारत सरकार ने देश में बाध्य श्रम या बंधुआ मजदूरी के मुद्दे पर निरन्तर कठोर रुख अपनाया है। यह इस क्रूरता से प्रभावित नागरिकों के मौलिक मानवाधिकारों का हनन मानता है और यह इसके यथा संभव न्यूनतम समय में पूर्ण समापन को लेकर अडिग है। बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 को लागू करके बंधुआ मजदूरी प्रणाली को २५ अक्टूबर १९७५ से संपूर्ण देश से खत्म कर दिया गया। इस अधिनियम के जरिए बंधुआ मजदूर गुलामी से मुक्त हुए साथ ही उनके कर्ज की भी समाप्ति हुई। यह गुलामी की प्रथा को कानून द्वारा एक संज्ञेय दंडनीय अपराध बना दिया। इस अधिनियम को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, १९७६ बंधुआ मज़दूरी की प्रथा उन्मूलन हेतु अधिनियमित किया गया था ताकि जनसंख्या के कमज़ोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोका जा सके और उनसे जुड़े एवं अनुषंगी मामलों के संबंध में कार्रवाई की जा सके। इसने सभी बंधुआ मज़दूरों को एकपक्षीय रूप से बंधन से मुक्त कर दिया और साथ ही उनके कर्जो को भी परिसमाप्त कर दिया। इसने बंधुआ प्रथा को कानून द्वारा दण्डनीय संज्ञेय अपराध माना।
यह कानून श्रम मंत्रालय और संबंधित राज्य सरकारों द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है। राज्य सरकारों के प्रयासों की अनुपूर्ति करने के लिए मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास की एक केन्द्र प्रायोजित योजना शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत, राज्य सरकारों को बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिए समतुल्य अनुदानों (५०:५०) के आधार पर केन्द्रीय सहायता मुहैया कराई जाती है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:-
किसी भी क्षेत्र में बच्चों द्वारा अपने बचपन में दी गई सेवा को बाल मजदूरी कहते है। इसे गैर-जिम्मेदार माता-पिता की वजह से, या कम लागत में निवेश पर अपने फायदे को बढ़ाने के लिये मालिकों द्वारा जबरजस्ती बनाए गए दबाव की वजह से जीवन जीने के लिये जरुरी संसाधनों की कमी के चलते ये बच्चों द्वारा स्वत: किया जाता है। इसका कारण मायने नहीं रखता क्योंकि सभी कारकों की वजह से बच्चे बिना बचपन के अपना जीवन जीने को मजबूर होते है। बचपन सभी के जीवन में विशेष और सबसे खुशी का पल होता है जिसमें बच्चे प्रकृति, प्रियजनों और अपने माता-पिता से जीवन जीने का तरीका सीखते है। सामाजिक, बौद्धिक, शारीरिक, और मानसिक सभी दृष्टीकोण से बाल मजदूरी बच्चों की वृद्धि और विकास में अवरोध का काम करता है।
बाल श्रम प्रतिषेध व विनियमन अधिनियम १९८६ पर नजर डालें तो इसके अंतर्गत १८ व्यवसायों और ६५ प्रक्रियाओं में बच्चों से काम करवाना पूर्णतः प्रतिबंधित है। चाय की दुकानों, ढाबों, होटलों, सड़क किनारे खान-पान के ठिकानों और घरों में कराए जाने वाले काम भी इन खतरनाक व्यवसायों में शामिल हैं। घरेलू नौकर का काम इस सूची में १० अक्टूबर २००६ से लाया गया है। जो क्षेत्र इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते, वहां भी १४ वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम कराने के कुछ मानक तय किए गए हैं। जैसे तीन घंटे काम के बाद एक घंटा आराम, और शाम ७ बजे से सुबह ८ बजे के बीच कोई काम न लिया जाना। बच्चों से ओवरटाइम कराना बिल्कुल मना है। पर इन नियमों का पालन कितने मालिक करते होंगे, स्वयं समझा जा सकता है। घरेलू नौकरानियों के साथ मारपीट, खाना न देने, बंद करके रखने और शारीरिक शोषण के कई मामले पिछले दिनों मीडिया में छाए रहे।
सूचना अधिकार के तहत जब केंद्रीय श्रम मंत्रालय से यह जानने की कोशिश की गई कि पिछले पांच सालों में सड़क किनारे खानपान की दुकानों और घरों से देश भर में कितने बच्चे चिन्हित कर मुक्त करवाए गए, तो उसके पास आंकड़े नदारद थे। राजस्थान सरकार से यह जानकारी मांगी गई तो वहां के श्रम विभाग ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में पूरे प्रदेश से सिर्फ १० बच्चों से काम छुड़वाया गया। इन पांच सालों में केंद्रीय श्रम विभाग को मुंबई में सिर्फ ४, दिल्ली में ५५ और चेन्नई में १३ घरेलू बाल श्रमिक मिले। कोलकाता में एक भी नहीं। बाल श्रम के कारणों पर गौर करें तो गरीबी निश्चित ही इसका मुख्य कारण है। पर एक तरफ गरीबी की वजह से बाल मजदूरी है, तो दूसरी तरफ बाल श्रम के चलते भी गरीबी बढ़ती है। सस्ते मजदूर होने के कारण बच्चों से काम करवाया जाता है। बाल श्रमिक के स्थान पर वयस्क मजदूर से काम करवाकर उसे सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी दी जाए, तो शायद मां-बाप बच्चे को स्कूल भेजना शुरू करें।सरकार को यह सोचना चाहिए कि यदि सच में बंधुआ मजदूर व बलात् को रोकना है तो निम्न कदम उठाने चाहिए 1-बंधुआ मजदूर बच्चों के माता-पिता को रोजगार मुहैया कराये ताकि वे अपने बच्चों को विद्यालय भेज सकें। 2-जिन बच्चों के माता-पिता नहीं है, राज्य स्वयं कदम ।
बाल मजदूरों को काम से हटाने के साथ ही उनके पुनर्वास पर भी ध्यान देना जरूरी है। श्रम मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत चलाए जा रहे विशेष बाल श्रमिक विद्यालय ऐसे बच्चों के लिए ही हैं। पिछले तीन सालों में देश के २६० जिलों में चल रहे इन विद्यालयों में लगभग तीन लाख बाल मजदूरों को दाखिला दिया गया है। पर गैर सरकारी संगठनों की शोध रपटों से यह खुलासा हुआ है कि इन विद्यालयों में नामांकित अधिकतर बच्चे कभी बाल मजदूर नहीं रहे और उनका दाखिला पहले से भी सर्व शिक्षा अभियान में चल रहे स्कूलों में था। बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए पढ़ाई के साथ-साथ उनके परिवारों के आर्थिक प्रोत्साहन पर भी काम करना होगा। मालिक से वसूला गया जुर्माना बच्चे और उसके परिवार के आर्थिक पुनर्वास पर खर्च होना चाहिए, पर ऐसा हो नहीं रहा है। बाल श्रम प्रतिषेध व विनियमन अधिनियम 1986 में परिवर्तन का यह एकदम उपयुक्त समय है। १४ वर्ष तक के बच्चे का किसी भी तरह से काम करना पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, क्योंकि शिक्षा अब उसका कानूनी अधिकार है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि कहीं बच्चों से काम करवाया जा रहा हो तो कार्रवाई मालिक के साथ-साथ उस क्षेत्र के श्रम अधिकारी पर भी हो।