भारत में मापन प्रणालियों का इतिहास

प्राचीन भारत में रत्ती द्रव्यमान (भार) मापने के काम आती थी।
समय-मापन की हिन्दू इकाइयाँ (लघुगणकीय पैमाने पर प्रदर्शित)

भारत में मापन प्रणालियों का इतिहास बहुत पुराना है। सिन्धु घाटी की सभ्यता में प्राप्त कुछ सबसे प्राचीन मापक नमूने ५वीं सहराब्दी ईसापूर्व के हैं।

संस्कृत कें 'शुल्ब' शब्द का अर्थ 'नापने की रस्सी' या डोरी होता है। अपने नाम के अनुसार शुल्ब सूत्रों में यज्ञ-वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनना तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है।

नीलकण्ठ सोमयाजि ने अपने 'ज्योतिर्मीमांसा' नामक ग्रन्थ में लिखा है कि ज्योतिष के ऐसे ग्रन्थ ही अनुसरण करना चाहिए जो वास्तविक प्रेक्षणों से मेल खाते हैं।

यः सिद्धान्तः दर्शनाविसंवादी भवति सोऽन्वेषनीयः

'प्रमाण' (=measure) के चार प्रकार थे- मान (धारिता), तुलामान (भार), अवमान (लम्बाई की माप) तथा कालप्रमाण (समय)। ये दैनिक जीवन में मापन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। लम्बाई के रैखिक मापन के लिये मानव शरीर के विभिन्न अंगों को मात्रक के रूप में प्रयोग किया जाता था (अंगुल, हस्त आदि)। धारिता के मापन के लिये 'प्रसृति' और 'अंजलि' का उपयोग किया जाता था।[1]

समय मापने के लिए वृक्षों की छाया को नापने चलन से लेकर कोणार्क के सूर्य मन्दिर के चक्र तक अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता रहा है।

भारत में विभिन्न कालों में नापतौल की विभिन्न पद्धतियाँ प्रचलित रही हैं। मनुस्मृति के 8वें अध्याय के 403वें श्लोक में कहा गया हैः

तुलामानं प्रतीमानं सर्वं च स्यात् सुलक्षितम्।
षट्सु षट्सु च मासेषु पुनरेव परीक्षयेत्॥

(अर्थ - राजा को प्रति छः माह पश्चात् भारों (बाटों) तथा तुला (तराजू) की सत्यता सुनिश्चित करके राजकीय मुहर द्वारा सत्यापित करना चाहिए।)

इससे स्पष्ट है कि भारत में अत्यन्त प्राचीनकाल से नापतौल की पद्धतियाँ रही हैं। प्रचलित जानकारी के अनुसार सिन्धु घाटी की पुरातात्विक खुदाई में मिले नापतौल के विभिन्न अवशेषों से ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व 3000-1500 में सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासियों ने मानकीकरण की एक परिष्कृत प्रणाली विकसित किया था। सिन्धु घाटी सभ्यता के इस नापतौल पद्धति को विश्व के प्राचीनतम पद्धतियों में से एक माना जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता की नापतौल प्रणाली कितनी परिष्कृत थी यह इसी से पता चलता है कि उस काल में भवन निर्माण के लिए प्रयोग की जाने वाली ईंटों की लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई की माप सुनिश्चित थी जो कि 4:2:1 के अनुपात में होती थीं।

आज से लगभग 2400 वर्ष पहले चंद्रगुप्त मौर्य काल में भी माप तथा नापतौल के लिए अच्छी प्रकार से परिभाषित पद्धति का प्रयोग किया जाता था तथा राज्य के द्वारा माप के भारों (बाटों) एवं तुला (तराजू) की सत्यता सत्यापिक करने की परम्परा थी। उस काल की प्रणाली के अनुसार भार की सबसे छोटी इकाई एक परमाणु तथा लंबाई की सबसे छोटी इकाई 'अंगुल' थी। लम्बी दूरी के लिए योजन का प्रयोग किया जाता था।

संस्कृत के बहुत से गणित एवं ज्योतिष ग्रन्थों का आरम्भ नापतौल की ईकाइयों के परिचय से ही हुआ है। उदाहरण के लिए गणितसारसंग्रह का संज्ञाप्रकरण विभिन्न इकाइयों की प्रणाली के परिचय से शुरू होता है। खगोलविदों एवं गणितज्ञों ने मापन के लिए आवश्यक यंत्रों (इंस्ट्रुमेन्ट्स) का भी विकास किया था जिनका परिचय यंत्रराज, यंत्रशिरोमणि, यंत्रार्णव इत्यादि ग्रन्थों में दिया गया है।

मध्यकाल में मुगल बादशाह अकबर ने भी नापतौल की एकरूप (uniform) प्रणाली विकसित किया था जिसका प्रयोग सम्पूर्ण देश में किया जाता था। अबुल फज़ल रचित आईने अकबरी के अनुसार उस काल में भूमि नापने की इकाई “इलाही गज” हुआ करती थी जो कि वर्तमान 33 इंच से 34 के बराबर थी। वजन नापने की इकाई “सेर” हुआ करता था।

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने भी देश भर में नापतौल की एकरूप (uniform) प्रणाली विकसित किया वजन की इकाइयाँ मन, सेर, छँटाक, तोला, माशा और रत्ती थीं। भूमि मापने के लिए मील, एकड़, गज, फुट, इंच का प्रयोग किया जाता था। अंग्रेजों के द्वारा विकसित उस प्रणाली का प्रयोग स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी सन् 1956 तक होता रहा। सन् 1956 में भारत सरकार ने नापतौल के नए मानक स्थापित किया और देश भर में नापतौल की मीटरी (मेट्रिक) पद्धति का चलन हो गया।

मापन से सम्बन्धित भारतीय ग्रन्थ

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  • ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त का २२वाँ अध्याय (यन्त्राधिकार)[2]
  • यन्त्रराज या यन्त्रराजागम -- १३७० में जैन मुनि महेन्द्र सूरि द्वारा रचित
  • यन्त्रप्रकाश -- सन १४२८ में नैमिषारण्य के रामचन्द्र वाजपेयी द्वारा रचित
  • यन्त्रशिरोमणि -- सन १६१५ में जम्मूसर के विश्राम द्वारा रचित
  • तुर्यतन्त्रप्रकाश -- सन १५७२ ई में काम्पिल्य के भूधर द्वारा रचित
  • यन्त्राधिकार -- पद्मनाभ
  • दिक्साधनायन्त्र -- पद्मनाभ
  • ध्रुवभ्रमाधिकार -- पद्मनाभ

कुछ भारतीय मापन यन्त्र

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  • ब्रह्मगुप्त ने अपने ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त के 'यन्त्राधिकार' नामक अध्याय में अनेकानेक यन्त्रों का विधिवत वर्णन किया है, जैसे- घटिका, शंकु, चक्र, धनुष, तुर्यगोल, याष्टि, पीठ, कपाल, और कर्तारी।
  • सम्राटयन्त्र
  • ध्रुवभ्रमयन्त्र[3][4]
  • दोलायन्त्र [5]
  • तिर्यक्पातनयन्त्र,
  • डमरूयन्त्र,
  • धुर्वभ्रमयन्त्र,
  • पातनयन्त्र,
  • राधायन्त्र,
  • धरायन्त्र,
  • ऊर्ध्वपातनयन्त्र,
  • स्वेदनीयन्त्र,
  • मूसयन्त्र,
  • कोष्ठियन्त्र,
  • यन्त्रमुक्त,
  • खल्वयन्त्र

मापन की इकाइयाँ

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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  1. Mensuration in Ancient India (शारदा श्रीनिवासन)
  2. "The Dhruvabhrama Yantra of Padmanabha" (PDF). Archived from the original (PDF) on 17 जुलाई 2015. Retrieved 7 मई 2018.
  3. "Quadrant, by Sonî Morârjî, Bhuj (Gujarat, India), 1815". Archived from the original on 30 जनवरी 2018. Retrieved 7 मई 2018.
  4. "The Dhruvabhrama Yantra of Padmanabha" (PDF). Archived from the original (PDF) on 17 जुलाई 2015. Retrieved 7 मई 2018.
  5. "Dolayantra, aka: Dola-yantra, Dolāyantra; 4 Definition(s)". Archived from the original on 8 मई 2018. Retrieved 7 मई 2018.