भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (अंग्रेज़ी: Competition Commission of India) भारत की एक संविधिक संस्था है। इसका उद्देश्य स्वच्छ प्रतिस्पर्धा को बढावा देना है ताकि बाजार उपभोक्ताओं के हित का साधन बनाया जा सके। २१ जून २०१२ को अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने 11 सीमेंट कंपनियों को व्यापार संघ बनाकर कीमत का निर्धारण करने का दोषी ठहराते हुए ६000 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया।[1]

बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर वस्तुओं और सेवाओं की विस्तृत श्रृंखला तक सुगम पहुंच को सुनिश्चित करती है। व्यावसायिक उद्यम अपने हितों की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की रणनीतियों और युक्तियों को अपनाते हैं। वे अधिक शक्ति और प्रभाव प्राप्त करने के लिए एक साथ मिल जाते हैं जो उपभोक्ताओं के हितों के लिए हानिकारक हो सकता है और कई बार उनके द्वारा गलत प्रकार से मूल्य निर्धारण, कीमत बढ़ाने के लिए जानबूझकर उत्पाद आगत में कटौती, प्रवेश के लिए अवरोध का निर्माण, बाजारों का आवंटन, बिक्री में गठजोड़, अधिक मूल्य निर्धारण और भेदभावपूर्ण मूल्य निर्धारण जैसी पद्धतियां अपनाई जाती हैं जिसका विभिन्न हित समूहों के समाजिक और आर्थिक कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए न केवल एकाधिकार अथवा व्यापारिक संयोजनों के गठन को रोकना आवश्यक है बल्कि एक निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना भी आवश्यक है ताकि उपभोक्ताओं को अपनी खरीद का बेहतर मोल प्राप्त हो सके।

  • अर्थव्यवस्था में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के सृजन और इस संदर्भ में ‘सबको समान अवसर प्रदान करने' के लिए भारतीय संसद द्वारा 13 जनवरी 2003 को प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 को लागू किया गया।
  • इसके उपरान्त 14 अक्टूबर 2003 से केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की स्थापना की गई।
  • इसके बाद प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
  • 20 मई 2009, को प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते और प्रमुख स्थितियों के दुरुपयोग से संबंधित अधिनियम के प्रावधानों को अधिसूचित किया गया। यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर के अलावा संपूर्ण भारत में लागू होता है।

एक अध्यक्ष और 6 सदस्यों के साथ भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग पूरी तरह से कार्यात्मक है। प्रतिस्पर्धा आयोग चार प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित करता है-

  • प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते,
  • प्रमुख स्थितियों का दुरुपयोग,
  • संयोजन विनियमन और
  • प्रतिस्पर्धा हिमायत।

प्रतिस्पर्धा की जांच के लिए अधिनियम व्यवहारजन्य दृष्टिकोण पर बल देता है। यह एमआरटीपी अधिनियम के दृष्टिकोण से अलग है जिसमें संरचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाया गया था।

उद्देश्य

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भारत के आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए प्रतिस्पर्धा अधिनियम में प्रतिस्पर्धा आयोग की स्थापना का प्रावधान है ताकि निम्नलिखित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके-

  • प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली पद्धतियों को रोकना
  • बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और इसे बनाए रखना
  • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना
  • भारतीय बाजार में अथवा इसके अलावा आनुषांगिक जुडे मामलों के लिए अन्य प्रतिभागियों द्वारा किए जाने वाले व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना


प्रतिस्पर्धा आयोग के कार्य

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  • भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग को जांच प्रक्रिया द्वारा प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते और एकाधिकार के दुरुपयोग को रोकने तथा संयोजनों (विलयन अथवा गठजोड अथवा अधिग्रहण) के नियामन का कार्य करना चाहिए।
  • किसी भी कानून (सांविधिक अधिकार) के तहत गठित प्राधिकरण/केन्द्र सरकार से प्राप्त संदर्भ के संबंध में प्रतिस्पर्धा मुद्दे पर अपना मत देना चाहिए।
  • सीसीआई को प्रतिस्पर्धा मुद्दों पर प्रतिस्पर्धा की हिमायत, जन जागरुकता और प्रशिक्षण भी प्रदान करने का अधिदेश है।

केन्द्र सरकार अथवा कोई राज्य सरकार अथवा किसी भी कानून के तहत गठित प्राधिकरण जांच के लिए संदर्भ दे सकता है। आयोग के द्वारा स्वंय अपनी जानकारी अथवा ज्ञान के आधार पर जांच शुरु की जा सकती है। प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते और प्रमुख स्थितियों के दुरुपयोग के मामलों में आयोग निम्नलिखित आदेश पारित कर सकता है-

  • जांच के दौरान आयोग एक पार्टी को प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते अथवा प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग से रोककर अंतरिम राहत प्रदान कर सकता है।
  • उद्यम के सकल कारोबार का अधिकतम 10 प्रतिशत जुर्माना और कार्टेल के संबंध में कार्टेल से प्राप्त लाभ की तीन गुना राशि अथवा उद्यम के सकल कारोबार का दस प्रतिशत, जो भी अधिक हो।
  • जांच के बाद आयोग दोषी उद्यम को प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते अथवा प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग से दूर रहने और इसमें दोबारा प्रवेश न करने का निर्देश दे सकता है।
  • मुआवजा प्रदान करवाना
  • समझौते में सुधार लाना
  • यदि कोई उद्यम प्रभावशाली स्थिति का लाभ उठा रहा है तो केन्द्र सरकार को इसके विभाजन की संस्तुति करना।

सन्दर्भ

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  1. "आइबीएन". मूल से 25 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जून 2012.

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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