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इराक़ गणराज्य और भारत गणराज्य के बीच द्विपक्षीय संबंध पारंपरिक रूप से मित्रवत रहे हैं और दोनों देशों में परस्पर सहयोग रहा है। सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया के बीच 1800 ई.पू में भी सांस्कृतिक संपर्क और आर्थिक व्यापार होता था। [1] 1952 की मित्रता की संधि ने भारत और इराक के बीच संबंधों को स्थापित और मजबूत किया। [2] 1970 के दशक में, इराक को मध्य पूर्व में भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक माना जाता था। [3]
ईरान-इराक युद्ध, 1991 के खाड़ी युद्ध और 2003 के इराक युद्ध के दौरान भारत और इराक के बीच संबंधों में बाधा पड़ी। हालांकि, इराक में लोकतांत्रिक सरकार की पुनर्स्थापना के बाद द्विपक्षीय संबंध फिर से सामान्य हो गए।
पुस्तक: ईरान और इराक में उत्तर भारतीय शियावाद की जड़ें: अवध में धर्म और राज्य, जेआरआई कोल द्वारा 1722-1859 (Roots of North Indian Shi'ism in Iran and Iraq: Religion and State in Awadh, 1722–1859 by J.R.I. Cole. ) [4]
मीर जाफ़र नजफ़ से ताल्लुक़ रखने वाला एक इराकी शिया अरब था जो बाद में भारत चला गया और बंगाल का नवाब बना।
इराकी शिया लेखक और कवि मुजफ्फर अल-नवाब भारतीय मूल के हैं। [5][6][7][8]
इराक मध्य पूर्व के उन चुनिंदा देशों में से एक था, जिसके साथ भारत ने 1947 में अपनी स्वतंत्रता के तुरंत बाद दूतावास स्तर पर राजनयिक संबंध स्थापित किए थे।[9] दोनों देशों ने 1952 में "सतत शांति और मित्रता की संधि" पर हस्ताक्षर किए और 1954 में सांस्कृतिक मामलों पर सहयोग का एक समझौता किया।[9] भारत इराक़ की बाथ पार्टी-आधारित सरकार को मान्यता देने वाले पहले देशों में से था, और इसके चलते 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इराक तटस्थ रहा। किंतु इराक ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन करने में अन्य खाड़ी राज्यों का साथ दिया।[9] बहरहाल, इराक और भारत ने मजबूत परस्पर आर्थिक और सैन्य संबंध बनाए रखे। 1980 के दशक की शुरुआत में, भारतीय वायु सेना 120 से अधिक इराकी मिग -21 पायलटों को प्रशिक्षित कर रही थी।[10] 1975 में सुरक्षा संबंध का विस्तार किया गया, जब भारतीय सेना ने प्रशिक्षण दल भेजे और भारतीय नौसेना ने बसरा में एक नौसेना अकादमी की स्थापना की। भारत ईरान-इराक युद्ध के दौरान इराक को काफी सैन्य सहायता देता रहा। प्रशिक्षण के अलावा, भारत ने (फ़्रान्स की सहायता से) एक जटिल त्रिपक्षीय व्यवस्था के माध्यम से इराकी वायु सेना को तकनीकी सहायता प्रदान की।[11]
आठ साल लम्बा ईरान-इराक युद्ध दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य में भारी गिरावट का कारण बना। [9] 1991 के फारस के खाड़ी युद्ध के दौरान, भारत इराक के खिलाफ बल के इस्तेमाल का विरोध कर रहा था। भारत ने 1991 में युद्ध के दूसरे सप्ताह के बाद सैन्य विमानों की ईंधन भरने को रोक दिया। 1991 के युद्ध से पहले इराक भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजारों में से एक था।[9] भारत ने इराक पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का विरोध किया, लेकिन युद्ध की अवधि और इराक के अलगाव के चलते वाणिज्यिक और राजनयिक संबंधों में गिरावट आई।[9]
इराक ने 11 मई और 13 मई 1998 को भारत के पांच परमाणु हथियारों के परीक्षण के बाद परमाणु परीक्षण करने के अधिकार का समर्थन किया था। [9]
2000 में, इराक के तत्कालीन उपराष्ट्रपति ताहा यासीन रमज़ान ने भारत का दौरा किया और 6 अगस्त, 2002 को राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद को लेकर भारत को इराक के "अटूट समर्थन" से अवगत कराया। [9][12]भारत और इराक ने व्यापक द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त मंत्रिस्तरीय समितियों और व्यापार प्रतिनिधिमंडलों की स्थापना की। [13][14]
इराक पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के कारण इराक के साथ भारत के संबंध खराब हो गए, लेकिन भारत ने जल्द ही तेल के लिए खाद्य कार्यक्रम के भीतर व्यापार विकसित किया, जिससे भारत ने इराक को आवश्यक वस्तुओं के आयात के बदले में तेल निर्यात करने की अनुमति दी।[15] हालाँकि, 2005 के एक कार्यक्रम की जाँच से पता चला कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह और कांग्रेस पार्टी को संभवतः इराक़ी सरकार से रिश्वत मिली थी, जिस कारण मनमोहन सिंह ने उनसे इस्तीफ़ा देने का अनुरोध किया। [16]
इराक भारत के कच्चे तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। यह प्रति दिन 220,000 बैरल तेल का निर्यात इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन को करता है । [17] जून 2013 में, भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री, श्री सलमान खुर्शीद ने सुरक्षा और व्यापार के मुद्दों पर ज़ोर देने के लिए में इराक का दौरा किया, जो कि 1990 के बाद किसी भारतीय मंत्री द्वारा इराक़ का पहला ऐसा दौरा था। [18]
भारत और इराकी कुर्दिस्तान के बीच सीमित राजनयिक संबंध रहे हैं। भारत तुर्की कंपनियों के माध्यम से बेचे जाने वाले कुर्द कच्चे तेल की खरीदता है। इराकी कुर्दिस्तान में कई भारतीय नागरिक काम करते हैं। कई कुर्द लोग शैक्षिक या चिकित्सा उद्देश्य से भारत भी आते हैं। जुलाई 2014 में, कुर्दिस्तान डेमोक्रेटिक पार्टी के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विंग के प्रमुख हेमिन हौरानी ने द हिंदू को बताया कि उन्हें भारत के साथ गहरे राजनीतिक और आर्थिक संबंधों की इच्छा थी, और भारत को अपने देश का "एक महत्वपूर्ण भागीदार" बताया। हौरानी ने भारत सरकार से अर्बिल (कुर्दिस्तान की राजधानी) में वाणिज्य दूतावास खोलने का भी आग्रह किया, और भारतीय कंपनियों को कुर्दिस्तान में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया। [19]
नवंबर 2014 में, भारत सरकार ने विशेष दूत सुरेश के॰ रेड्डी को कुर्दिस्तान की यात्रा करने और कुर्द सरकारी अधिकारियों से मिलने के लिए भेजा गया। रेड्डी ने कहा कि भारत "इस कठिन समय के दौरान कुर्दिस्तान क्षेत्र का पूरी तरह से समर्थन करता है"। साथ ही उन्होंने क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कुर्द सरकार और पेशमर्गा सेनाओं पर विश्वास व्यक्त किया। राजदूत ने ISIS से लड़ने में पेशमर्गा सेना की भूमिका की भी प्रशंसा की, और घोषणा की कि भारत सरकार कुर्दिस्तान में अपना वाणिज्य दूतावास खोलेगी। [20]