भालचंद्र नेमाडे (पूर्ण नाव :भागवत वना नेमाडे ) | |
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जन्म | मई २७ १९३८ सांगवी, यावल, जळगाव जिला, महाराष्ट्र |
पेशा | मराठी लेखक |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
खिताब | ज्ञानपीठ पुरस्कार पद्मश्री – २०११, Maharashtra foundation |
भालचंद्र नेमाडे (जन्म-१९३८) भारतीय मराठी लेखक, उपन्यासकार, कवि, समीक्षक तथा शिक्षाविद हैं। १९६३ में केवल २५ वर्ष की आयु में प्रकाशित 'कोसला' नामक उपन्यास से उन्हें अपार सफलता मिली। सन १९९१ में उनकी टीकास्वयंवर इस कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष २०१४ का प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।[1]श्री नेमाडे की प्रमुख कृतियों में 'कोसला' और 'हिन्दू' उपन्यास शामिल हैं। उनके साहित्य में 'देशीवाद' (स्वदेशीकरण) पर बल दिया गया है।[2] वह 60के दशक के लघु पत्रिका आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे।
प्राध्यापक भालचंद्र नेमाडे मराठी के प्रसिद्ध लेखक वी.स. खांडेकर, वि.वा. शिरवाडकर, विं.दा. करंदीकर के बाद यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले चौथे मराठी लेखक हैं। प्रो. भालचन्द्र नेमाडे मराठी साहित्य में सर्वस्पर्शी तथा सर्वप्रतिष्ठित नाम है। उपन्यास, कविता एवं आलोचना में उनकी विरल ख्याति है। श्री नेमाड़े मराठी आलोचना में 'देसीवाद' के प्रवर्तक हैं। 1963 में प्रकाशित 'कोसला' उपन्यास ने मराठी उपन्यास लेखन में दिशा प्रवर्तन का काम किया। इस उपन्यास ने मराठी गद्य लेखन को पिछली आधी शताब्दी में लगातार चेतना और फॉर्म के स्तर पर उद्वेलित किया। उनके अन्य उपन्यास 'हिन्दू' में सभ्यता विमर्श उपस्थित है। यह कृति काल की आवधारणा की वैज्ञानिक दृष्टि से भाष्य करती है। ग्रामीण से आधुनिक परिसर तक की सामाजिक विसंगतियों को गहराई से अभिव्यक्त करने वाले श्री नेमाड़े मराठी साहित्य की तीन पीढ़ियों के सर्वप्रिय लेखक हैं।
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