भावविवेक या भाव्य (तिब्बती भाषा : slob-dpon bha-vya or skal-ldan/legs-ldan, 500 ई से 578 ई), बौद्ध धर्म के माध्यमक शाखा के स्वातंत्रिक परम्परा के संस्थापक दार्शनिक थे। वे भावविवेक, भाविवेक और भव्य - इन तीनों नामों से ये ख्यात थे । एम्स (Ames 1993: p. 210), का विचार है कि भावविवेक उन प्रथम तर्कशास्त्रियों में से हैं जिन्होने 'प्रयोग-वाक्य' के रूप में विधिवत उपपत्ति (formal syllogism) का प्रयोग किया।
इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना संस्कृत भाषा में की है । दुर्भाग्य से इनकी एक भी मूल रचना सम्प्रति उपलब्ध नहीं है, परन्तु तिब्बती और चीनी भाषा में इनका अनुवाद उपलब्ध है । इनकी चार रचनाएँ उपलब्ध हैं -
(1) माध्यमिककारिका व्याख्या - यह नागार्जुन के ग्रन्थों की व्याख्या है ।
(2) मध्यहृदयकारिका - माध्यमिक दर्शन पर मौलिक रचना।
(3) मध्यमार्थ संग्रह - तिब्बतीय भाषा में इसका अनुवादमात्र उपलब्ध है ।
(4) हस्तरत्न या करमणि : चीनी भाषा में अनुवादमात्र उपलब्ध । इसमें आत्मा का खण्डन और तथता एवं धर्मता की स्थापना की गई है ।
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