भिलाला एक जनजाति है जो मध्य भारत में निवास करते हैं।
इतिहास के अनुसार मान्धाता ओंकारेश्वर का शासन भील शासकों के अधीन था | उसके पश्चात धार के परमार राजवंश, मालवा के सुलतान एवं ग्वालियर के सिंधिया घराने से होता हुआ १८२४ में अंग्रेज़ों के नियन्त्रण में चला गया | अन्तिम भील शासक नाथू भील का यहाँ के एक प्रमुख पुजारी दरियाव गोसाईं से विवाद हुआ, जिन्होंने जयपुर के राजा को पत्र द्वारा नाथू भील के ख़िलाफ़ सहायता मांगी तब राजा ने उनके भाई एवं मालवा में झालर पाटन के सूबेदार भरत सिंह चौहान को भेजा और इस समस्या का समाधान निकला। चौहान वंश का शासन अधिक समय तक नहीं रहा देवपाल ने चौहान राजा को मार दिया , उसके बाद ओम्कारेश्वर का शासन देवपल के पास आ गया , लेकिन देवपाल भी अधिक समय तक शासन नहीं कर पाया वह भील सेनापति द्वारा मार गया और एक बार पुनः ओम्कारेश्वर का शासन भीलों के पास आ गया[1], बाद में ब्रिटिश राज के दौरान ओंकारेश्वर जागीर के रूप में राव परिवार के पास रहा |[2]
राजपूताना के इतिहास में, भिल्लों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | मुगलों के ख़िलाफ़ हल्दीघाटी की लड़ाई में उदयपुर के महाराणा प्रताप को उनकी सैन्य सहायता प्रसिद्ध है। उनका गुरिल्ला युद्ध मेवाड़ की विजय में अकबर के लिए एक बड़ी चुनौती था। महाराणा प्रताप ने भोमट के राजा भीलराजा राणा पूंजा भील जी से सहयोग मांगा था। महाराणा प्रताप ने राज्य के प्रतीक में उन्हें एक प्रमुख स्थान देकर भिल्लों को सम्मानित किया जिसमें राणा प्रताप और भील योद्धा को मेवाड़ के राणा के शाही प्रतीक के दोनों तरफ खड़े दिखाया हैं। [3]
1) भरूड़पुरा : भौमिया राजा : ठाकुर उडीया सिंह (गद्दी - 1885) (भील- चौहान राजपूत से ) राजस्व- 6000, क्षेत्र - 56.98 Sq. Km.
2) मोटा बरखेरा : भूमिअ राजा : ठाकुर नयन सिंह (गद्दी - 1919) (भील- चौहान राजपूत से) राजस्व- 25,000, क्षेत्र - 113.96 Sq. Km.
3) निमखरा, भौमिया, राजा दरीआओ सिंह (गद्दी - 1889) (भील- चौहान राजपूत से, मूलतः मारवार से) राजस्व- 6000, क्षेत्र - 235.69 Sq. Km.
4) छोटा बरखेरा, भूमिअ राजा : ठाकुर मुगत सिंह (गद्दी - ?) (भील- चौहान राजपूत से) राजस्व- 18,000, क्षेत्र - 235.69 Sq. Km.
भील एक प्रमुख है और यह अनुसुचित जनजाति के अन्तर्गत आते हैं, क्योंकि भील शब्द की उत्पत्ति "बिल" से हुई है जिसकी उपजाति भिलाला , पटलिया है जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ होता हैं "धनुष" अर्थात धनुष चलाने वाला। यह एक हिन्द-आर्य भाषा है, ये लोग मुख्य रूप से खरगोन,खण्डवा,धार, झाबुआ बडवानी, निमाड कुछ मालवा अलिराजपुर/गुजरात छोटा उदयपुर, पंचमहल,दाहोद,/राजस्थान बांसवाड़ा,डोंगरपुर,चितोड़गड़ प्रतापगढ़ में भी रहते हैं।