भुंई आमला Phyllanthus niruri | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Plantae |
विभाग: | Tracheophyta |
वर्ग: | Magnoliopsida |
गण: | Malpighiales |
कुल: | Phyllanthaceae |
वंश: | Phyllanthus |
जाति: | Phyllanthus niruri |
द्विपद नाम | |
Phyllanthus niruri L. | |
पर्यायवाची[1] | |
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भुंई आंवला (वानस्पतिक नाम: Phyllanthus niruri) अथवा भुंई आमला अथवा भूआमलकी एरन्ड कुल का लगभग 1.5 फीट से 2 फीट ऊंचा एक वर्षीय पौधा होता है जो बरसात के समय खेतों में खरपतवार के रूप में स्वयंमेव उगता दिखाई देता है। यद्यपि आंवला की तुलना में यह पौधा बहुत छोटा होता है परन्तु आवंला के पौधे जैसे पत्तों तथा पत्तों के पीछे छोटे-छोटे आंवला जैसे फल लगने के कारण संभवतया इसको जमीन का आंवला अथवा 'भुंई आमला' कहा जाता है। अधिकांशतः बंजर जमीनों के साथ-साथ खेतों में वर्षा ऋतु में खरपतवार के रूप में उगने वाले पौधे भुंई आमला का उत्पत्ति स्थल अमेरिका माना जाता है।
भुंई आमला का सम्पूर्ण पंचांग (जड़, तना, पत्ती, पुष्प, फल) औषधीय उपयोग का होता है। भारतवर्ष में यह लगभग सभी क्षेत्रों में बहुतायत में खरपतवार के रूप में मिलता जिसे लोक परंपराओं के अनुसार लीवर से संबंधित विकारों विशेषतया पीलिया तथा हैप्टीटाइटस-बी के उपचार हेतु प्रयुक्त किया जाता है। इसके पत्तों में पौटाशियम की काफी अधिक मात्रा (लगभग 0.83 प्रतिशत) होने के कारण यह काफी अधिक मूत्रल (Diuretic) है। लीवर संबंधी विकारों के साथ-साथ भुंई आमला बुखार, मधुमेह, घनोरिया, आंखों की बीमारियों, खुजली तथा चर्मरोगों, फोड़ों, पेशाब से संबंधित विकारों जैसे पेशाब में खून आना, पेशाब में जलन होना आदि के उपचार हेतु भी प्रयुक्त किया जाता है। इसकी जड़ों से उपयोगी टांनिक बनाया जाता है। इसकी जड़े कब्ज में प्रयुक्त की जाती हैं। इसके मुख्य घटक फाइलेन्थिन तथा हाईपोफाइलेन्थिन हैं तथा इसकी सूखी शाक में फाइलेन्थिल तत्व की मात्रा 0.4% से 0.5% तक होती है। निःसंदेह भुंई आवला काफी अधिक औषधीय उपयोग का पौधा है विशेष रूप से हैप्टीटाइस-बी जैसी जानलेवा बीमारियों के उपचार में प्रभावी सिद्ध होने के कारण इस पौधे की उपयोगगिता और भी बढ़ गई है।
यद्यपि अभी तक भुंई आवला प्राकृतिक रूप से ही काफी मात्रा में प्राप्त हो जाता रहा है तथा बड़े स्तर पर इसके कृषिकरण हेतु प्रयास नहीं किए गए हैं। परन्तु इसकी उपयोगिता तथा मांग को देखते हुए इसके कृषिकरण की आवश्यकता महसूस हो रही है क्योंकि अभी तक इसका बड़े स्तर तक कृषिकरण नहीं हो पाया है, इसका कृषिकरण काफी आसान है, यह काफी कम अवधि की फसल है, अतः इसकी खेती किसानों के लिए व्यवसायिक रूप से काफी लाभकारी सिद्ध हो सकती है। इसकी औषधीय उपयोगिता को देखते हुए इसके बाजार के निरंतर बढ़ते जाने की पर्याप्त संभावनाएं प्रतीत हो रही हैं।
विभिन्न भाषाओं में भुंई आमला के नाम