महाकवि भूषण | |
---|---|
1080p | |
जन्म | १६१३ तिकवांपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश |
मौत | १७०५ |
पेशा | कविता |
भाषा | हिन्दी |
काल | रीतिकाल |
विधा | रीतिग्रंथ |
विषय | वीर रस का काव्य |
उल्लेखनीय कामs | शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसालदशक |
महाकवि भूषण (१६१३ - १७१५)[1] रीतिकाल के तीन प्रमुख हिन्दी कवियों में से एक हैं, अन्य दो कवि हैं बिहारी तथा शृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया। 'भूषण' की उपाधि उन्हें चित्रकूट के राजा हृदयराम के पुत्र रुद्रदत्त ने प्रदान की थी। ये मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, छत्रपती शिवाजी महाराज और छत्रसाल आदि के आश्रय में रहे, परन्तु इनके पसंदीदा नरेश छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराजा छत्रसाल थे।
महाकवि भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। वे मूलतः टिकवापुर गाँव के निवासी थे जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के घाटमपुर तहसील में पड़ता है। उनके दो भाई चिन्तामणि और मतिराम भी कवि थे। उनका मूल नाम क्या था, यह पता नहीं है। 'शिवराज भूषण' ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार 'भूषण' उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी -
कहा जाता है कि भूषण कवि मतिराम और चिंतामणि के भाई थे। एक दिन भाभी के ताना देने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कई आश्रम में गए। यहाँ आश्रय प्राप्त करने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के आश्रम में चले गए और अन्त तक वहीं रहे।
पन्ना नरेश छत्रसाल से भी भूषण का संबंध रहा। वास्तव में भूषण केवल छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल इन दो राजाओं के ही सच्चे प्रशंसक थे। उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया है-
संवत 1772 तदनुसार ईस्वी 1715 में भूषण परलोकवासी हो गए।
भूषण के जन्म, मृत्यु, परिवार आदि के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता परन्तु सजेती क़स्बा में श्री शिवमोहन तिवारी का कवि भूषण जी का एक परिवार रहता है जो इस बात का दावा करता है कि वो ही कवि भूषण के वंशज हैं व उनके पूर्वज अग्रेजों के शासनकाल में टिकवापुर गाँव छोड़कर यहाँ बस गए। आज भी उनकी जमीने टिकवापुर गाव में पड़ती है। कवि भूषण की बाद की पीढ़ी का सति माता का एक मंदिर टिकवापुर में बना है जिसे यह परिवार अपनी कुलदेवी मानता है व् हर छोटे मोटे त्यौहार में उनकी पूजा अर्चना करता है।
विद्वानों ने इनके छह ग्रंथ माने हैं - शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसालदशक, भूषण उल्लास, भूषण हजारा, दूषनोल्लासा। परन्तु इनमें शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक व शिवा बावनी ही उपलब्ध हैं। शिवराजभूषण में अलंकार, छत्रसाल दशक में छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम, दानशीलता व शिवाबवनी में छत्रपति शिवाजी महाराज के गुणों का वर्णन किया गया है।
शिवराज भूषण एक विशालकाय ग्रन्थ है जिसमें 385 पद्य हैं। शिवा बावनी में 52 कवितों में छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। छत्रशाल दशक में केवल दस कवितों के अन्दर बुन्देला वीर छत्रसाल के शौर्य का वर्णन किया गया है। इनकी सम्पूर्ण कविता वीर रस और ओज गुण से ओतप्रोत है जिसके नायक छत्रपति शिवाजी महाराज हैं और खलनायक औरंगजेब। औरंगजेब के प्रति उनका जातीय वैमनस्य न होकर शासक के रूप में उसकी अनीतियों के विरुद्ध है। [2]
भूषण रीति युग था पर इन्होंने ने वीर रस में कविता रची। उनके काव्य की मूल संवेदना वीर-प्रशस्ति, जातीय गौरव तथा शौर्य वर्णन है।[3] निरीह हिन्दू जनता अत्याचारों से पीड़ित थी। भूषण ने इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई तथा निराश हिन्दू जन समुदाय को आशा का संबल प्रदान कर उसे संघर्ष के लिए उत्साहित किया। इन्होंने अपने काव्य नायक शिवाजी व छत्रसाल को चुना। छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता के विषय में भूषण लिखते हैं :
इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्धवीरता, दानवीरता, दयावीरता व धर्मवीरता का वर्णन किया है। भूषण के काव्य में उत्साह व शक्ति भरी हुई है। इसमें हिंदू जनता की भावनाओं को ओजमयी भाषा में अंकन किया गया है। भूषण ने कहा कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज न होते तो सब कुछ सुन्नत हो गया होताः
भूषण के काव्य में सर्वत्र उदारता का भाव मिलता है। वे सभी धर्मों को समान दृष्टिकोण से देखते हैं। इनके साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं का यथार्थवादी चित्रण मिलता है। इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को धर्मरक्षक के रूप प्रशंसा की है तो जसवंत सिंह, करण सिंह आदि की आलोचना भी की है। भूषण ने सारा काव्य ब्रजभाषा में रचा था। ओजगुण से परिपूर्ण ब्रजभषा का प्रयोग सर्वप्रथम इन्होंने ही किया था। इन्होंने प्रशस्तियाँ भी लिखी है।
भूषण ने मुक्तक शैली में काव्य की रचना की। इन्होंने अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। कवित्त व सवैया, छंद का प्रमुखतया प्रयोग किया है। वस्तुतः भूषण बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे कवि व आचार्य थे।
भूषण वीर रस के श्रेष्ठ कवि हैं भूषण का वीरकाव्य हिन्दी साहित्य की वीर काव्य परंपरा में लिखा गया है। इनकी कविता का अंगीरस वीर रस है। इनकी रचनाएँ शिवराज भूषण, शिवाबावजी और छत्रसाल दशक वीर रस से ओतप्रोत है। ये तीनों कृतियाँ भूषण की वीर भावना की सच्ची निर्देशक है। यह काव्य अपने युग के आदर्श नायकों के चरित्र को प्रस्तुत करने वाला है। इनमें छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल के शौर्य-साहस, प्रभाव व पराक्रम, तेज व ओज का जीवंत वर्णन हुआ है। भूषण के वीरकाव्य की मुख्य विशेषता यह है कि उसमें कल्पना और पुराण की तुलना में इतिहास की सहायता अधिक ली गई है। काव्य का आधार ऐतिहासिक है। इसके अतिरिक्त, इस वीरकाव्य में देश की संस्कृति व गौरव का गान है। भूषण ने अपने वीरकाव्य में औरंगजेब के प्रति आक्रोश सर्वत्र व्यक्त किया है।
भूषण की वीरभावना का वर्णन बहुआयामी है। इसे हम युद्धमूलक, धर्ममूलक, दानमूलक, स्तुतिमूलक आदि रूपों में देख सकते हैं।
वीर रस के स्थायी भाव उत्साह का उत्कृष्ट रूप युद्धभूमि में शत्रु को ललकारते हुए उजागर होता हैं छत्रपति शिवाजी महाराज स्वंय वीर थे और उनकी प्रेरणा से हिन्दू सैनिकों के मन में वीरता का भाव उत्पन्न हुआ था। भूषण ने उन सैनिकों की वीरता का वर्णन करते हुए कहा हैः
भूषण का युद्ध वर्णन बड़ा ही सजीव और स्वाभाविक है। युद्ध के उत्साह से युक्त सेनाओं का रण प्रस्थान युद्ध के बाजों का घोर गर्जन, रण भूमि में हथियारों का घात-प्रतिघात, शूर वीरों का पराक्रम और कायरों की भयपूर्ण स्थिति आदि दृश्यों का चित्रण अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है। छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना का रण के लिए प्रस्थान करते समय का एक चित्र देखिए -
कवि ने छत्रपति शिवाजी महाराज को धर्म व संस्कृति के उन्नायक के रूप में अंकित किया है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुसलमानों से टक्कर ली तथा हिंदुओं की रक्षा की। उन्होंने शिवराज और छत्रसाल की महिमा का वर्णन किया है।
कवि ने शिवाबावनी में कहा है :-
वीर रस के कवियों ने अपने नायक को अत्यधिक दानवीर दिखलाया है। भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज की दानवीरता का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन किया है। याचक को अपनी इच्छा से ज्यादा दान मिलता है। शिवास्तुति में कवि ने छत्रपति शिवाजी महाराज की अपूर्व दानशीलता का वर्णन किया है।
भूषण के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज दया के सागर हैं। वे शरणागत पर दया करते थे। उन्होंने अपने सैनिकों को स्त्रियों व बच्चों को तंग न करने का निर्देश दिया हुआ था। वस्तुतः भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम, शौर्य व आतंक का प्रभावशाली वर्णन किया है। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के धर्मरक्षक, दानवीर व दयावान, रूप को प्रकट किया है। इनके वीररस से संबंधित पद मुक्तक हैं। इनमें ओजगुण का निर्वाह है। हिन्दी के अन्य वीर रस के कवि शृंगार का वर्णन भी साथ में करते हैं। जबकि भूषण का काव्य शृंगार भावना से बचा हुआ है। अतः कहा जा सकता है कि भूषण वीररस के श्रेष्ठ कवि हैं।
भूषण ने अपने काव्य की रचना ब्रज भाषा में की। वे सर्वप्रथम कवि हैं जिन्होंने ब्रज भाषा को वीर रस की कविता के लिए अपनाया। वीर रस के अनुकूल उनकी ब्रज भाषा में सर्वत्र ही आज के दर्शन होते हैं।
भूषण की ब्रज भाषा में उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों की भरमार है। जंग, आफ़ताब, फ़ौज आदि शब्दों का खुल कर प्रयोग हुआ है। शब्दों का चयन वीर रस के अनुकूल है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग सुन्दरता से हुआ है।
व्याकरण की अव्यवस्था, शब्दों को तोड़-मरोड़,
वाक्य विन्यास की गड़बड़ी आदि के होते हुए भी भूषण की भाषा बड़ी सशक्त और प्रवाहमयी है। हां, प्राकृत और अपभ्रंश के शब्द प्रयुक्त होने से वह कुछ क्लिष्ट अवश्य हो गई है।
भूषण की शैली अपने विषय के अनुकूल है। वह ओजपूर्ण है और वीर रस की व्यंजना के लिए सर्वथा उपयुक्त है। अतः उनकी शैली को वीर रस की ओज पूर्णशैली कहा जा सकता है। प्रभावोत्पादकता, चित्रोपमता और सरसता भूषण की शैली की मुख्य विशेषताएं हैं।
भूषण की कविता की वीर रस के वर्णन में भूषण हिंदी साहित्य में अद्वितीय कवि हैं। वीर के साथ रौद्र भयानक-वीभत्स आदि रसों को भी स्थान मिला है।
भूषण ने शृंगार रस की भी कुछ कविताएं लिखी हैं, किन्तु शृंगार रस के वर्णन ने भी उनकी वीर रस की एवं रुचि का स्पष्ट प्रभाव दीख पड़ता है -
भूषण 105 अलंकार कृत हैं
भूषण की छंद योजना रस के अनुकूल है। दोहा, कवित्त, सवैया, छप्पय आदि उनके प्रमुख छंद हैं।
रीति कालीन कवियों की भांति भूषण ने अलंकारों को अत्यधिक महत्व दिया है। उनकी कविता में प्रायः सभी अलंकार पाए जाते हैं। अर्थालंकारों की अपेक्षा शब्दालंकारों को प्रधानता मिली है। यमक अलंकार का एक उदाहरण देखिए-
महाकवि भूषण राष्ट्रीय भावों के गायक है। उनकी वाणी पीड़ित प्रजा के प्रति एक अपूर्व आश्वसान हैं। इनका समय औरंगजेब का शासन था। औरंगजेब के समय से मुगल वैभव व सत्ता की पकड़ कमजोर होती जा रही थी। औरंगजेब की कटुरता व हिन्दुओं के प्रति नफरत ने उसे जनता से दूर कर दिया था। संकट की इस घड़ी में भूषण ने दो राष्ट्रीय पुरूषों - छत्रपति शिवाजी महाराज व छत्रसाल के माध्यम से पूरे राष्ट्र में राष्ट्रीय भावना संचारित करने का प्रयास किया।[4] भूषण ने तत्कालीन जनता की वाणी को अपनी कविताओं का आधार बनाया है। इन्होंने स्वदेशानुराग, संस्कृति अनुराग, साहित्य अनुराग, महापुरुषों के प्रति अनुराग, उत्साह आदि का वर्णन किया है।
भूषण का अपने देश के प्रति गहरा लगाव था। उनकी दृष्टि पूरे देश पर थी। उन्होंने देखा कि औरंगजेब देवालयों को नष्ट कर रहा है तो उनका मन विद्रोह कर उठा। छत्रपति शिवाजी महाराज के माध्यम से उन्होंने अपनी वाणी प्रकट की -
भूषण ने संस्कृति का उपयोग हिंदुओं को खोया हुआ बल दिलाने के लिए किया। इन्होंने अनेक देवी-देवताओं के कार्यों का उल्लेख किया तथा उन महान् कार्यों की कोटि में छत्रपति शिवाजी महाराज के कार्यों की गणना की है। शिवाजी काे धर्म व संस्कृति के उन्नायक रूप में अंकित किया गया है-
भूषण ने वेदशास्त्रों का गहन अध्ययन किया है। इन्होंने प्राचीन साहित्य के आधार पर ही अपने काव्य की रचना की उनका साहित्य प्रेम उनकी राष्ट्रीय भावना का परिचायक है।
भूषण ने अतीत व वर्तमान के महापुरुषों व जननायकों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है। इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल बुन्देला या अन्य कोई पात्र सभी का उल्लेख केवल उन्हीं प्रसंगों में किया है जो राष्ट्रीय भावना से संबंधित थे। जैसे :
राष्ट्रीय साहित्य में चेतना का भाव होता है। भूषण के साहित्य में सजीवता, स्फूर्ति व उमंग का भाव है। मुगलों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष का कवि उत्साहपूर्ण शैली में वर्णन किया हैः-
निस्संदेह, भूषण का काव्य राष्ट्रीय चेतना से ओत-प्रोत है। वे सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय भावना के कवि हैं।
महाकवि भूषण का हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान हैं। वे वीर रस के अद्वितीय कवि थे। रीति कालीन कवियों में वे पहले कवि थे जिन्होंने हास-विलास की अपेक्षा राष्ट्रीय-भावना को प्रमुखता प्रदान की। उन्होंने अपने काव्य द्वारा तत्कालीन असहाय हिंदू समाज की वीरता का पाठ पढ़ाया और उसके समक्ष रक्षा के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। वे निस्संदेह राष्ट्र की अमर धरोहर हैं।