मुहम्मद मंज़ूर नोमानी (15 दिसंबर 1905 - 4 मई 1997) एक भारतीय इस्लामी विद्वान थे जिनकी पुस्तकों में मारीफुल हदीस, इस्लाम क्या है?, और खोमैनी और ईरानी क्रांति महत्वपुर्ण हैं।[1]
मंज़ूर ने साल 1927 में दारुल उलूम देवबंद से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां उन्होंने अनवर शाह कश्मीरी से हदीस की तालीम हासिल की। उन्होंने चार साल तक दारुल उलूम नदवतुल उलमा में शेख अल-हदीस का पद पर रहे और अबुल हसन अली नदवी के करीबी सहयोगीं में से थे। 1941 में जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक सदस्य, उन्हें समूह का डिप्टी अमीर चुना गया, जो अबुल आला मौदुदी के बाद दूसरे स्थान था। परन्तु 1942 में मौदुदी से असहमति के बाद उन्होंने संगठन से इस्तीफा दे दिया। बाद में वह तब्लीगी जमात से जुड़ गए। उन्होंने दारुल उलूम देवबंद की मजलिस-ए-शूरा और मजलिस-ए-अमिला में भी रहे सेवा की। वह मुस्लिम वर्ल्ड लीग के सदस्य थे। उनका खानदान आज भी ज्ञान और इस्लाम का प्रकाश फैलाने में लगा है।[2]