मकरविलक्कु, भारत के केरल राज्य में मकर संक्रांति के अवसर पर सबरिमलय मंदिर में आयोजित होने वाला एक वार्षिक उत्सव है। सबरिमलय केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से १७५ किमी की दूरी पर पम्पा है और वहाँ से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत शृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग १००० मीटर की ऊंचाई पर शबरीमला मंदिर स्थित है। इस उत्सव में थिरुवभरणम जुलूस शामिल होता है, जिसमें देवता अय्यप्पन के पवित्र आभूषणों को धारण किया जाता है तथा सबरिमलय के पहाड़ी मंदिर में एक सभा होती है। अनुमान है कि इस दिन हर साल पाँच लाख भक्त इस अनुष्ठान को देखने के लिए सबरिमलय आते हैं। यह मंदिर स्थापत्य के नियमों के अनुसार से तो खूबसूरत है ही, यहां एक आंतरिक शांति का अनुभव भी होता है। जिस तरह यह 18 पहाडि़यों के बीच स्थित है, उसी तरह मंदिर के प्रांगण में पहुंचने के लिए भी 18 सीढि़यां पार करनी पड़ती हैं। मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं उत्सव के दौरान अयप्पन का घी से अभिषेक किया जाता है। मंत्रों का जोर-जोर से उच्चारण होता है।
मकरसंक्रम पूजा उस संक्रमण काल में होती है जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की शुरुआत में धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। संक्रमाभिषेक उस समय होगा जब सूर्य राशि परिवर्तन करेगा। त्रावणकोर राजवंश के कवडियार महल से एक विशेष दूत द्वारा लाया गया अय्यप्पा मुद्रा घी संक्रमावेला के दौरान अभिषेक किया जाता है।
मकरविलक्कु की परंपरा एक धार्मिक अनुष्ठान है जो मलयाराय जनजाति द्वारा सदियों से प्रचलित है, [1]जिनके बारे में माना जाता है कि वे पोन्नम्बलमेडु जंगल में मलयामन कारी के वंशज हैं। इसे बाद में त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (TDB) द्वारा गुप्त रूप से जारी रखा गया।[2] इस परंपरा से कोई अलौकिक तत्व जुड़े नहीं हैं। मकरविलक्कु का अर्थ है पोन्नम्बलमेडु के ऊपर तीन बार एक उज्ज्वल "विलक्कु" (दीपक) जलाना।[3]