यह लेख उत्तराखण्ड की मन्दाकिनी नामक नदी पर है। अन्य मन्दाकिनी लेखों के लिए देखें मन्दाकिनी
मन्दाकिनी नदी Mandakini River | |
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गुप्तकाशी के समीप मन्दाकिनी | |
![]() गंगा नदी के नदीशीर्ष | |
स्थान | |
देश |
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राज्य | उत्तराखण्ड |
मण्डल | गढ़वाल मण्डल |
भौतिक लक्षण | |
नदीशीर्ष | चाराबाड़ी हिमानी, केदारनाथ |
• स्थान | उत्तराखण्ड |
• निर्देशांक | 30°44′50″N 79°05′20″E / 30.74722°N 79.08889°E |
• ऊँचाई | 3,895 मी॰ (12,779 फीट) |
नदीमुख | अलकनन्दा नदी |
• स्थान |
रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड |
• निर्देशांक |
30°17′16″N 78°58′44″E / 30.28778°N 78.97889°Eनिर्देशांक: 30°17′16″N 78°58′44″E / 30.28778°N 78.97889°E |
लम्बाई | 81.3 कि॰मी॰ (50.5 मील) |
जलसम्भर आकार | 1,646 कि॰मी2 (636 वर्ग मील) |
जलसम्भर लक्षण |
मन्दाकिनी नदी (Mandakini River) भारत के उत्तराखण्ड राज्य में बहने वाली एक हिमालयाई नदी है। यह अलकनन्दा नदी की एक मुख्य उपनदी है, जो स्वयं गंगा नदी की एक स्रोतधारा है। इस नदी का उद्दगम स्थान उत्तराखण्ड में केदारनाथ के निकट है। मन्दाकिनी का स्रोत केदारनाथ के निकट चाराबाड़ी हिमनद है। सोनप्रयाग में यह नदी वासुकिगंगा नदी द्वारा जलपोषित होती है। रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी नदी अलकनन्दा नदी में मिल जाती है। उसके बाद अलकनन्दा नदी वहाँ से बहती हुई देवप्रयाग की ओर बढ़ती है, जहाँ बह भागीरथी नदी से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है।[1][2] भगवान शिव (केदारनाथ) ने स्वामी कार्तिकेय को इसी पबित्र नदीमे ढोल भीत्रर डालकर बगाई दि थि। कार्तिकेय यिसी पबित्र नदीमे बगते बगते रुद्र प्रयाग पहुँचे रुद्र प्रयाग मे पहुची मन्दाकिनी मे गोडिया ने जाल फेका उसी जाल मे कार्तिकेय देवता बन्द हुवा वाला ढोल गोडिया के जाल मे फसा। उस समय अयोध्या के सूर्यवंशी राजा कि तीर्थ सवार रुद्र प्रयाग मे हुवा था। राजाने गोडिया से उस कार्तिकेय को ले लिया यसका बाद कार्तिकेय राजाका कुलदेवता बनगया। यिसी कार्तिकेय के नामसे कार्तिकेयपुरा राज्य चला था। जिस राजवंशको कर्तिकेयापुरा राजवंश के रुप्मे जाने जता है।
उपसर्ग "मन्द" का अर्थ है "शिथिल" और "धीमा" और इसलिए मन्दाकिनी का अर्थ हुआ "वह जो शिथिलता से बहे"।
श्रीमद्भागवत में मन्दाकिनी का उल्लेख मोक्ष-प्रदायिनी नदियों में से एक के रूप में हुआ है।