मलय रॉय चौधुरी | |
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चित्र:Image:Malay Roychoudhury in Holland.JPG मलय रॉय चौधुरी | |
जन्म |
29 अक्टूबर १९३९ Patna, Bihar, British India (now India) |
हस्ताक्षर |
मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी।
आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।
मलय रायचौधुरीका जन्म बिहार राज्यके पटना शहरमें एक ब्राह्मण परिवारमें हुया जो वहां पचास सालसे भी ज्यादा समयसे इमलितला (बाखरगंज) नामके बहुतही गरीब मुहल्ले में निम्नबर्गके हिन्दु और शिया मुसलमानोंके साथ रहते थे। यह परिवेशका प्रभाव उनके चिन्तन एवम लेखनमें पडा। भुखी पीढी का जन्म एक तरहसे उनके इस परिवेश का अवदान कहा जा सकता है। उनके पिता रंजित रायचौधुरी पटना शहरके काफि पुरानि फोटोग्राफि तथा चित्रकारी संस्था रायचौधुरी ऐन्ड कंके जानेमाने शिल्पी थे। पिताके बडे भाइ प्रमोद रायचौधुरी थे पटना मिउजियमके किपर ऑफ पेइनटिंस ऐन्ड स्कल्पचर। मलय रायचौधुरीके घरमें शास्त्रीय संगीत का आदर था क्यों कि उनके दोनों बडी बहने शस्त्रीय संगीत में माहिर थे। घरमें हर प्रकार के कला का आदर था। मलय रायचौधुरीके माता अमिता बन्द्योपाध्याय आये थे २४ परगणास्थित पानिहटि गांवके शिक्षित परिवार से, जिनके पुरुषोंमें ब्राह्मोसमाजका गभीर प्रभाव था। मलयका स्कुली शिक्षा पहले सेन्ट जोसेफ्स कान्वेन्ट और बादमें राममोहन राय सेमनरिमें हुया। पटना विश्वविद्यालयसे वे बिए अनर्स तथा एमए किये। एमए पढ्ते समयही वे उनका पहला किताब मार्कसवादेर उत्तराधिकार लिखना शुरु किया था। शक्ति चट्टोपाध्यायके साथ मतान्तरके कारण यह किताब प्रकाशित होनेके बाद एक कापि रख कर बाकि सब जला दिये गये थे। मध्यान्तरमें मलय कविता लिखना शुरु किये थे। कविता लिखते समय वह महसुस किये थे कि बांग्ला साहित्य उचितरूपसे उपनिवेशके बादका परिसर प्रतिबिम्बित नहीं कर पा रहा है एवम पुरे व्यवस्था को झक्झोर देनेके लिये एक साहित्यिक आंदोलन बहुतही जरुरि है। वह अप्ने बडे भाइ समीर रायचौधुरीके साथ आलोचनाके पश्चात अपने मित्र सुबिमल बसाक जो कि पटना निवासी थे और देबी रायको पुरे कार्यक्रम का ब्योरा दिया। बचपन से ही फणीश्वर नाथ 'रेणु' के साथ मलयके परिवार का परिचय था। वे उन्के पथप्रदर्शक रहें। कानवेन्टमे पढाइके कारण मलयको बाइबल, ओलड एवम निउ टेस्टामेन्ट के कहानियां काम आये जब वह कालेजमें अंग्रेजी पाठके समय ब्रिटिश कवि जिओफ्रे चौसर के काउनटरबेरि टेलससे भुखी पीढी आंदोलनके 'भुख अविधाका एक नया आयाम पाया। चौसरने ही कहा था इन दि सावर हंगरी टाइम। मार्कसवाद पर किताब लिखते समय मलय परिचित हुये थे जर्मन दार्शनिक आस्वल्ड स्पेंगलरके दि डिक्लाइन ऑफ दि वेस्ट ग्रन्थ से, जिस्के दर्शन, उनको लगा था, भारतीय उत्तरऔपनिवेशिक स्थितिको सही-सही व्याख्या करता है। उनहोने एक पन्ने का मैनिफेस्टो पटनामें ही १९६१के नवम्बर में निकाला और देबी रायको भेजा कोलकातामें वितरित करने के लिये। उसके बाद जो हुया वह तो केवल बांग्ला नहीं, भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण इतिहास है।
मलय रायचौधुरीका भूखी पीढी का दौर साठ के दशक तक ही चला। इसका प्रधान कारण यह है कि उनके खिलाफ जो मुकदमा चला था उसमें उनके आंदोलन के बन्धुगण, जैसे कि शैलेश्वर घोष, सुभाष घोष, उत्पलकुमार बसु, शक्ति चट्टोपाध्याय, सन्दीपन चट्टोपाध्याय उनके विरुद्ध सरकारी गवाह बन बैठे थे। कहा जा सकता है कि भूखी पीढी आंदोलन इन लोगों के सरकारी गवाह होने पर बिखर गया। मलय के लिये यह सचेत होने का पथ बना। वे अकेले अपने-आप में साहित्य का एक जगत बना कर चल दिये। उनके लेखनप्रक्रिया में भी परिवर्तन आया। उन्होंने करीब दस साल पढाई में बिताया और एक नवीण रूप में कोलकाता आये। उनकी कविता, कहानीयाँ, उपन्यास, इत्यादि सम्पूर्णत: अलग थे। इस नये दौर को लोगों ने अधुनान्तिक दौर कहा है। मलय अपने नये रूप में थे बहुसंस्कृतिवाद के कट्टर समर्थक जो उनके लेखन में पूरी तरह झलकता है और यह है उनके बचपन में बिताये हुए इमलितला के परिवेश की देन। कोलकाता के साहित्य बाजार में चलनेवाले बिकाउ-लेखन से एक अलग ही जगत है उनका। वह परवाह नहीं करते कि उनके किताबें हजारों की संख्या में बिके। परन्तु उनका एक पाठक-समाज बन गया है जो उनके पुस्तकों को ढून्ढ ही लेते हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय के बांग्ला भाषा विभाग के प्रधान डाक्टर तरुण मुखोपाध्याय का कहना है कि मलय अपने नये रूप में साहित्य में ताजे हवा को तूफान में बदलने वाले झोंके की तरह हैं।
चित्र परिचालक श्रीजित मुखर्जी बाइशे श्राबोण नामसे एक फिल्म बनायी हैं जिसमें कवि मलय रायचौधुरीको चित्रित किया गया है। मलयके चरित्र में अभिनय किया है जाने-माने परिचालक गौतम घोष।
भुखी पीढी आंदोलनकारियों के सृजनकर्मों का कापिराइट नहीं होता है। उन लोगों का कहना है कि भारत में यदि महाभारत, रामायण, गीता, रामचरितमानस आदि का कापिराइट कभी था ही नहीं तो हम क्यों यह उपनिवेशवादी अवधारणा को स्वीकारें। मलय रायचौधुरी के किताबों में यह घोषणा लिखा रहता है।
मलय रॉय चौधुरी से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |