महापौर-परिषद सरकार

सिएटल नगरपालिका परिषद की बैठक। दाएँ में निर्वाचित परिषद सदस्य हैं और बाएँ में नागरिक व पत्रकार हैं। नगरपालिका परिषद बैठकों में अक्सर आम नागरिक आकर उनकी गतिविधियाँ देख सकते हैं और नगर-संचालन से सम्बन्धित अपनी याचिकाओं की सुनवाई कर सकते हैं।

महापौर-परिषद सरकार (mayor–council government) एक प्रकार की स्थानीय सरकार प्रणाली होती है जिसमें स्थानीय नागरिक महापौर (मेयर) और नगरपालिका परिषद सदस्यों का अलग-अलग से चुनाव करते हैं।[1][2]

प्रणाली का लाभ

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इस प्रशासन-प्रणाली में महापौर के कार्यालय और नगरपालिका परिषद में शक्तियों का पृथक्करण करा जाता है, यानि उन्हें अलग-अलग प्रशासन शक्तियाँ दी जाती हैं, ताकि वे एक-दूसरे के कार्य पर निगरानी रख सकें और सरकारी गतिविधियाँ एक ही नेता या संगठन के अधीन गुप्त रूप से चलने कि बजाय पारदर्शिता से देखी जा सकें। इसमें नगर के लिए विधि (कानून) बनाने का काम परिषद को दिया जाता है लेकिन सरकार प्रबन्धन का काम महापौर को मिलता है। मसलन नगर में कूड़ा उठाना एक महत्वपूर्ण कार्य है, जिसके लिए स्थानीय सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है। अगर इसके लिए ठेका देने की विधि और फिर ठेका देने का काम दोनों एक ही व्यक्ति या संगठन करता है, तो इसमें भ्रष्टाचार की सम्भावना अधिक है। अगर ठेका देने के नियम एक परिषद निर्धारित करता है और एक अलग से चुने हुए महापौर को ठेका देने का काम उस विधि के अनुसार करना हो, तो इस से जनता को नियमों व ठेका प्रक्रिया की जानकारी पारदर्शिता से मिलती है।[3]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Kathy Hayes; Semoon Chang (July 1990). "The Relative Efficiency of City Manager and Mayor–Council Forms of Government". Southern Economic Journal. 57 (1): 167–177. doi:10.2307/1060487. JSTOR 1060487.
  2. George C. Edwards III; Robert L. Lineberry; Martin P. Wattenberg (2006). Government in America. Pearson Education. pp. 677–678. ISBN 0-321-29236-7.
  3. Saffell, Dave C.; Harry Basehart (2009). State and Local Government: Politics and Public Policies (9th ed.). McGraw Hill. p. 237. ISBN 978-0-07-352632-4.