IPC 354 | 354A | 354B | 354C | 354D-- IPC 354जो कोई भी किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, अपमान करने के इरादे से या यह जानते हुए कि वह उसकी लज्जा को भंग कर देगा, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जो हो सकता है पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना 1 के लिए भी उत्तरदायी होगा ।
1 आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 और पढ़े Archived 2022-12-29 at the वेबैक मशीन
महिलाओं से छेड़छाड़ भारत में और कभी-कभी पाकिस्तान और बांग्लादेश[1] में पुरुषों द्वारा महिलाओं के सार्वजनिक यौन उत्पीड़न, सड़कों पर परेशान करने या छेड़खानियों के लिए प्रयुक्त व्यंजना है, जिसके अंग्रेज़ी पर्याय ईव टीज़िंग में ईव[2] शब्द बाइबिलीय संदर्भ में प्रयुक्त होता है।
यौन संबंधी इस छेड़छाड़ की गंभीरता, जिसे युवाओं में अपचार[3] से संबंधित समस्या के रूप में देखा जाता है, वासनापरक सांकेतिक टिप्पणियां कसने, सार्वजनिक स्थानों में छूकर निकलने, सीटी बजाने से लेकर स्पष्ट रूप से जिस्म टटोलने तक विस्तृत है।[4][5][6] कभी-कभी इसे निर्दोष मज़े के विनीत संकेत के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिससे यह अहानिकर प्रतीत होता है जिसका अपराधी पर कोई परिणामी दायित्व नहीं बनता है।[7] कई नारीवादियों और स्वैच्छिक संगठनों ने सुझाव दिया है कि इस अभिव्यंजना को और अधिक उपयुक्त शब्द द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए. उनके अनुसार, भारतीय अंग्रेज़ी भाषा में शब्द ईव-टीज़िंग के अर्थगत मूल पर विचार करने से यह स्त्री की लुभाने वाली प्रकृति को इंगित करता है, जहां मोहने का दायित्व महिला पर ठहरता है, मानो पुरुषों की छेड़छाड़पूर्ण प्रतिक्रिया अपराधमूलक होने के बजाय स्वाभाविक है।[8][9]
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ ऐसा अपराध है जिसे प्रमाणित करना बेहद मुश्किल है, चूंकि अपराधी अक्सर महिलाओं पर हमले के सरल तरीक़े ढूंढ़ लेते हैं, हालांकि कई नारीवादी लेखकों ने इसे "छोटे बलात्कार" का नाम दिया है,[10] और सामान्यतः यह सार्वजनिक स्थलों, सड़कों और सार्वजनिक वाहनों में घटित होता है।[11]Eve teasing... (छेड़खानी) या छोटा बलात्कार!
ईव टीचिंग जिसे की हम साधारण भाषा में छेड़छाड़ के रूप में समझ सकते हैं! छोटे प्रकार का बलात्कार भी कहते हैं! समानता देखा जाए तो आजकल जो हो रहे अपराध के आंकड़ों के हिसाब से 35% असामाजिक तत्व 32% छात्र और 33% संख्या अधिक उम्र वाले की होती है यानी छेड़छाड़ करने वालों की निश्चित उम्र नहीं होती है!
यह बात हम हद तक सही कह सकते हैं कि पुरुषों में महिलाओं को देखकर जलन का नजरिया बन जाता है और वे अपनी सेक्सुअलिटी एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं और वे ही पुरुष ऐसे घटिया विचार मन में लाते हैं और ऐसे ही लोग महिलाओं को नीचे दबाने के नियत से उसे गलत तरीके से उनके बॉडी को टच करते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं या भद्दे कमेंट करते हैं! तो उन्हे सबके सामने कोर्ट में पेसाब से नहलाने महिलाओं का हक बनता हैं।
दुख की बात तो यह है कि हम भारतीय समाज में रहकर भी अपनी सभ्यता संस्कृति का मजाक बनाने में हम खुद ही दोषी होते हैं महिलाएं बदनामी से डरती है उसे लगता है कि समाज में उनका नाम खराब हो जाएगा किसी बड़े घराने या छोटे घर के हो वह कोर्ट कचहरी जाने से डरते हैं या इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहते हैं और इसे आसानी से टाल देते हैं और कहीं ना कहीं यह बात बड़े हादसे को निमंत्रण देने का कारण बन जाता है! लेकिन इव टीजिंग नॉर्मल मामला नहीं है इससे समाज में बढ़ावा नहीं देना चाहिए क्योंकि आपका मौन बड़े हादसे को निमंत्रण दे सकता है इसीलिए हम सभी को मिलकर इसे दूर करने में सहभागिता दिखानी चाहिए, क्योंकि एक महिला अगर इसका जवाब देने के लिए आगे बढ़ती है तो उनका मनोबल गिराना नहीं चाहिए बल्कि इस eve teasing नामक गंदगी को दूर करने में योगदान देना चाहिए ताकि सामने वाला बंदा ऐसा सोचे कि उनके मन में डर बैठ जाए! कोई किसी को देखकर सीटी बजाता है या गंदे या भद्दे कमेंट करता है या ऑटो ड्राइवर की कोई सवारी ढोने वाला व्यक्ति ही क्यों ना हो अगर सही जगह ना ले जाकर कहीं दूर जगह छोड़ता है या रास्ते में बुलाने की कोशिश करता है तो यह भी गलत और दंडनीय अपराध के अंतर्गत आता है!
इससे जुड़े एक और शब्द है 'स्टॉकिंग' जिसमें चोरी छुपे नजर रखना आता है जैसे कोई आपको कुछ दिन से चोरी से आपके ऊपर नजर रखता है और आपका पीछा करता है तो संदेह होने पर सतर्क रहें और संदिग्ध की पहचान करने की कोशिश करें!
हम इव टीजिंग से कैसे बचे -
1. अपने आसपास के स्थिति एवं वहां के माहौल के बारे में जाने तथा नजर रखें और हमेशा अलर्ट रहने की कोशिश करें!
2. घर से बाहर निकलने पर चाहे सड़क हो या पब्लिक प्लेस आसपास ध्यान दें व सतर्क रहें ऐसा करने पर व्यक्ति की पहचान कर पाएंगे एवं बचाव भी होगा!
3. अपने मनोबल को मजबूत रखने की कोशिश करें डरे नहीं ना ही किसी को खुद का डरने का आभास होने दें!
4. अगर कहीं अकेले हो जाए और एहसास हो कि कोई पीछा कर रहा है या आपको परेशान करने की कोशिश कर रहा है या करने वाला है तो घबराएं नहीं और वहां से कोशिश करें कि जल्द से जल्द निकल जाए बिना घबराए हुए अपने वास्तविक चाल ढाल से ही आगे बढ़ जाय!
5. कभी-कभी पलट कर जवाब देना जरूरी होता है तो कभी आपके लिए नुकसानदेह भी हो सकता है इसीलिए अपने मनोबल को गिरने ना दे अगर भीड़-भाड़ वाले जगह या थोड़ी दूर पर आसपास आदमी दिखे तो उस वक्त कॉन्फिडेंट से उसे जवाब दें और उन्हें वार्निंग दे यह तभी करें जब आप कंफर्टेबल महसूस कर रहे हो या नहीं उसे बोल पा रहे हो तो इशारों में चिल्ला दें जैसे वह आदमी वहां खड़ा है उसने ऐसा पहनावा पहना हुआ है या व्यक्ति जो व्यक्ति टोपी पहना है या कुछ भी हो इशारों में ही हल्ला कर उनका पहचान कर शोर मचाने की कोशिश करें मदद कीजिए!
6. अपने पास फोन हो तो फोन में इमरजेंसी स्पीड डायल नंबर रखें इससे आपके फैमिली को आप troubles location और culprit के बारे में बता सकते हैं या फैमिली के अलावा एक सो नंबर पर डायल कर पुलिस को बुला सकती हैं या अपने स्टेट कि महिला हेल्पलाइन नंबर डायल करके भी आप सहायता ले सकते हैं! इसमे कुछ निम्नलिखित है - आप इसे इन्टरनेट के माध्यम से भी नंबर भी उपलब्ध कर सकते हैं -
All india women in Distress - 181
National commission for women - 011-26942369/26944754
National Human Right Commission-011-23385368/9810298900
1. उत्तरप्रदेश महिला हेल्प लाइन नंबर - 6306511708
1098/112
2. बिहार महिला हेल्प लाइन - 18003456247
0612-2320047, 221418
3. हरियाणा बाल एवं महिला हेल्प लाइन - 0124-2335100
4. मध्य प्रदेश महिला कमिशन - 0755-2661813/2661802
महिला थाना - 0731-2434999
इसके संबंध में कुछ मार्गदर्शक पुस्तिकाओं में महिला पर्यटकों को सुझाव दिया जाता है कि रूढ़िवादी कपड़े पहनने से छेड़खानियों से बचा जा सकता है, हालांकि भारतीय महिला और रूढ़िवादी पोशाक पहनने वाली विदेशी महिलाएं, दोनों ने छेड़छाड़ की रिपोर्टें दर्ज करवाई हैं।7. अपने स्मार्टफोन में जरूर सेफ्टी ऐप रखें जो कि प्ले स्टोर पर आसानी से उपलब्ध हैं जैसे कि-
1.Himmat
2.Raksha
3. Safety pin
4. Women safety
5. . Shake to safety
6. Be safe
7. Smart 24X7
8. Nirbhaya
9. Spot N save
10. Eye watch women
इन सभी ऐप में आई एम safe से बटन बनाया गया है इस पर प्रेस करने पर अपने पेरेंट्स को डेस्टिनेशन तक सही सलामत सूचना दे दी जा सकती है!
8. आज कल महिलाओं के लिए self defences से जुड़े करतब सिखाये जाते हैं हो सके तो प्रशिक्षण ले!
9. या कहीं जा रहे हो तो अपने पर्स मे हमेशा छोटा हथियार के रूप मे सिप्टी पिन, छोटा सा चाकू या कैची साथ रखे और कुछ available हो ना हो पेपर स्प्रे अनिवार्य रूप से रखे!
10. अगर कोई हाथ पकड़ता है या आपको गलत टच करने की कोशिश करता है तो कोशिश करें कि उस व्यक्ति की उंगली पकड़ मे आ जाए और जोर से घुमा दे इससे उस व्यक्ति को इतना दर्द होगा जितना कि गर्दन टूटने पर दर्द होता है!
11. अगर उस आरोपी के ऊपर प्रहार कर रहें हो तो उनके नाजुक अंगों पर वार करें जिससे वो तत्काल के लिए बेहोश हो जाए!
जयमाला सोनी
पूर्णिया (बिहार)
हालांकि 1960 के दशक में इस समस्या ने जनता और मीडिया का ध्यान आकर्षित किया,[12][13] आगामी दशकों में, जब अधिक महिलाओं ने कॉलेज जाना और स्वतंत्र रूप से काम करना शुरू किया, यानी जब पारंपरिक समाज में पुरुषों ने उनके मार्गरक्षक के रूप में साथ जाना बंद किया, यह समस्या चिंताजनक स्तर तक बढ़ गई।[14] जल्द ही भारत सरकार को इस जोख़िम पर अंकुश लगाने के लिए न्यायिक और क़ानून प्रवर्तन, दोनों दृष्टि से सुधारोपाय लागू करने पड़े और पुलिस को इस समस्या के प्रति संवेदनशील बनाने के प्रयास किए गए तथा पुलिस ने छेड़खानी करने वालों को घेरना शुरू किया। इस प्रयोजन के लिए सामान्य वेशभूषा में महिला पुलिस अधिकारियों की तैनाती विशेष रूप से प्रभावी रही है,[15] विभिन्न राज्यों में किए गए अन्य उपायों में शामिल हैं विभिन्न शहरों में महिलाओं के लिए हेल्पलाइन की स्थापना, महिला पुलिस स्टेशन और पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ़ विशेष कक्षों की स्थापना.[16]
इसके अलावा, इस अवधि के दौरान महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों के प्रति जनता के बदलते रवैये की वजह से, यौन उत्पीड़न के मामले जैसी छेड़खानियों की घटनाओं को रिपोर्ट करने के लिए आगे आने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि दृष्टिगोचर हुई. साथ ही, छेड़छाड़ की घटनाओं की गंभीरता में भी बढ़ोतरी हुई, कुछ मामलों में एसिड फेंकने जैसी घटनाएं सामने आईं, जिसके फलस्वरूप तमिलनाडु जैसे राज्यों ने महिलाओं के साथ छेड़छाड़ को ग़ैर जमानती अपराध घोषित किया। महिला संगठनों की संख्या और महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई, विशेषकर इस अवधि में दुल्हन जलाने की रिपोर्टों में बढ़ोतरी देखी गई। महिलाओं के प्रति हिंसक घटनाओं में वृद्धि का मतलब क़ानून निर्माताओं द्वारा महिलाओं के अधिकारों के प्रति पहले के निरुत्साही नज़रिए को त्यागना है। आगामी वर्षों में ऐसे संगठनों ने, 'दिल्ली महिलाओं के साथ छेड़छाड़ निषेध विधेयक 1984' सहित महिलाओं को हिंसक छेड़खानियों से बचाने के लिए परिकल्पित क़ानून को पारित करने के लिए समर्थन जुटाने में प्रमुख भूमिका निभाई.[14]
1998 में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप चेन्नई की एक छात्रा सारिका शाह की मृत्यु, दक्षिण भारत में समस्या का सामना करने के लिए कड़े क़ानूनों को सामने ले आई.[17] इस मामले के बाद, लगभग आधा दर्जन आत्महत्या की रिपोर्टें दर्ज हुईं, जिसके लिए महिलाओं के साथ छेड़खानी की वजह से उत्पन्न दबाव को उत्तरदायी ठहराया गया।[14] 2007 में, एक छेड़खानी के मामले की वजह से दिल्ली के कॉलेज की छात्रा पर्ल गुप्ता की मौत हुई. फरवरी 2009 में, एम.एस. विश्वविद्यालय (MSU) वडोदरा से छात्राओं ने चार युवा लोगों की परिवार और समुदाय विज्ञान विभाग के पास पिटाई की, जब उन्होंने एस.डी. हॉल छात्रावास में निवास करने वाली छात्राओं पर भद्दी टिप्पणियां कसीं.[18]
प्रतिशोध और समाज में बदनामी के डर से कई मामलों की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती हैं। कुछ मामलों में पुलिस, अपराधियों को सार्वजनिक अपमान के बाद मुर्ग़ा सज़ा देकर छोड़ देते हैं।[19][20] 2008 में, दिल्ली की एक अदालत ने महिला के साथ छेड़खानी करते हुए पकड़े गए एक 19 वर्षीय युवा को अपने अभद्र आचरण के परिणामों का विवरण देते हुए स्कूल और कॉलेजों के बाहर युवाओं को 500 परचे बांटने का आदेश दिया.[21]
परंपरागत रूप से, भारतीय सिनेमा ने आम नाच-गाने के साथ, प्रेम प्रसंग की शुरूआत के तौर पर महिलाओं के साथ छेड़खानियों को दर्शाया, जो हमेशा गाने के अंत तक नायक के प्रति नायक के समर्पण से ख़त्म होता है। और युवक परदे पर प्रदर्शित इस अचूक नमूने का अनुकरण करते हुए देखे जाते हैं, जो सड़कछाप प्रेमियों को जन्म देता है जिसका फ़िल्मी संस्करण (सैफ़ अली ख़ान अभिनीत) रोडसाइड रोमियो (2007) में देख सकते हैं।[11] इसका एक और दर्शाया जाने वाला लोकप्रिय नज़ारा है कि जब महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले युवक किसी लड़की को छेड़ते हैं, तो नायक वहां पहुंचता है और उनकी पिटाई करता है, जैसा कि तेलुगू फ़िल्में "मधुमासम" और "मगधीरा" और हिन्दी फ़िल्म "वान्टेड" में देख सकते हैं। आजकल यह समस्या भारतीय टेलीविज़न धारावाहिकों में भी दिखाई जाने लगी है।
हालांकि भारतीय क़ानून में 'ईव-टीज़िंग' (महिलाओं के साथ छेड़छाड़) शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है, पीड़ितों द्वारा आम तौर पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 294 (ए) और (बी) का आश्रय लिया जाता है, जो युवती या महिला के प्रति अश्लील इशारों, टिप्पणियों, गाने या कविता-पाठ करने के अपराध में दोषी पाए गए व्यक्ति को अधिकतम तीन महीनों की सज़ा देती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 292 स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है कि महिला या युवती को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरें, क़िताबें या पर्चियां दिखाने वाले, पहली बार दोषी पाए गए व्यक्ति को दो वर्षों के लिए सश्रम कारावास की सज़ा देते हुए, 2000 रु. का जुर्माना वसूला जाए. अपराध दोहराने पर, जब प्रमाणित हो, तो अपराधी को पांच साल के लिए कारावास सहित 5000 रु. का जुर्माना लगाया जाएगा. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा के अधीन महिला या युवती के प्रति अश्लील हरकत, अभद्र इशारे या तीखी टिप्पणियां करने वाले पर एक वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा या जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते हैं।[22][23]
भारतीय दंड संहिता (IPC)की धारा 354-A , धारा 354-D में महिला के प्रति अश्लील इशारों , अश्लील टिप्पणियों , पिछा करने पर कठोर कारावास की सज़ा या जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते हैं।
'राष्ट्रीय महिला आयोग' (NCW) ने संख्या 9 महिलाओं के साथ छेड़छाड़ (नया क़ानून) 1988 का भी प्रस्ताव रखा है।[8]
'निडर कर्नाटक' या 'निर्भय कर्नाटक', कई व्यक्तियों और 'वैकल्पिक क़ानूनी मंच', 'ब्लैंक नॉइज़' 'मरा', 'संवादा' और 'विमोचना' जैसे समूहों का गठबंधन है। 2000 के दशक में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं में वृद्धि के बाद, उसने जनता के बीच कई जागरूकता अभियान चलाए, जिनमें शामिल है 'टेक बैक द नाइट' और 2003 में बेंगलूर में प्रवर्तित सार्वजनिक कला परियोजना जिसका शीर्षक है द ब्लैंक नॉइज़ प्रॉजेक्ट.[24] महिलाओं से छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ़ एक ऐसा ही कार्यक्रम 2008 में मुंबई में आयोजित किया गया।[25]
भारत में महिलाओं के लिए सबसे ख़तरनाक शहर दिल्ली में,[26] महिला और बाल विकास विभाग ने 2010 में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए शहर को तैयार करने हेतु एक संचालन समिति की स्थापना की.[27]
मुंबई में महिलाओं के लिए विशेष रेलगाड़ियां शुरू की गईं ताकि कामकाजी महिलाएं और शहर में पढ़ाई करने वाली युवतियां बिना किसी छेड़खानी से डरे, कम से कम अपनी लंबी यात्रा सुरक्षित रूप से तय कर सकें. 1995 के बाद से, यात्रा करने वाली महिलाओं की दुगुनी संख्या के साथ, इस प्रकार की सेवाओं की भारी मांग रही है।[28]. आज बड़े शहरों की सभी स्थानीय रेलगाड़ियों में "महिलाओं के लिए विशेष" डिब्बे मौजूद हैं। अन्य रेलगाड़ियों में, महिलाओं को ए.सी. कोच में यात्रा की सलाह दी जाती है, क्योंकि ये कोच महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले आर्थिक रूप से ग़रीब और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों से मुक्त होते हैं।