माइक्रोब्लैडिंग गोदने की एक तकनीक है। इस तकनीक में आँखों के पास वाली त्वचा के ऊपरी परत में अर्द्ध-स्थायी रूप से रंगों को भरा जाता है। इस कार्य को एक विशेष उपकरण के सहारे किया जाता है, जो कई छोटे-छोटे सुइयों के द्वारा निर्मित होती है। यह भौंहों के मानक गोदने की प्रक्रिया से काफ़ी भिन्न है क्योंकि यह स्थायी नहीं होता और ना ही इसमें हाथों का अधिक प्रयोग किया जाता है।[1]
आमतौर पर माइक्रोब्लैडिंग का प्रयोग भौंहों के आकार को बदलने और उनमें रंग भरने के लिए किया जाता है। इसमें त्वचा के ऊपरी परत में रंग भरा जाता है, जिस कारण यह पारंपरिक गोदने की तकनीक के तुलना में अधिक तेजी से फीका पड़ जाता है। माइक्रोब्लैडिंग को भौंहों की कढ़ाई, माइक्रोस्ट्रोकिंग, भौंहों का 3डी रूपांतरण और नैनोब्लैडिंग के रूप में भी जाना जाता है।
प्राचीन अभिलेखों से पता चलता है कि त्वचा में बारीक चीरा लगाकर रंग भरने की तकनीक हजारों साल पुरानी है। हालांकि भौंहों के लिए इस तकनीक का उपयोग करने का चलन सर्वप्रथम एशिया में उभरा। 2005 तक यह तकनीक सिंगापुर और कोरिया में विशेष रूप से लोकप्रिय हो गई, जिसके बाद 2010 तक इसकी लोकप्रियता यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी फैल गई। 2015 आते-आते माइक्रोब्लैडिंग ने यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के सौन्दर्य प्रसाधन बाज़ार में अपनी विशेष जगह बना ली।[2][3]
माइक्रोब्लैडिंग की रूपरेखा निर्धारित करने के लिए पहले कलाकार अपने ग्राहक के भौंहों के स्थान को मापते हैं और एक स्केच बनाते हैं, जिसके बाद हाथों से भौंहों की मोटाई को एक आयाम दिया जाता है। भौंहों को और अधिक निखारने के लिए माइक्रो शेडिंग का भी प्रयोग किया जा सकता है।[4]