माहली

महली बिहारी समूह है। इनका निवास स्थान मुख्यतः झारखण्ड के अलावा ये पश्चिम बंगालबिहार, में रहते है।[1] महली की अपनी मातृभाषा महली पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी है और कम आबादी होना इसकी मूल कारण है ।[2] ये बांग्ला, और हिन्दी भाषा का भी प्रयोग करते हैं। झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, और बिहार में इन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल किया गया है।

संस्कृति

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माहली के समाज मे मुख्य व्यक्ति इनका मांझी होता है। मदिरापान तथा नृत्य इनके दैनिक जीवन का अंग है। अन्य आदिवासी समुहों की तरह इनमें भी जादू टोना प्रचलित है। ये बांस के कार्य करते हुए देखे जाते है। माहली की अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिडकीयां नहीं होती हैं। माहली मारांग बुरु की उपासना करतें हैं ये पूर्वजो द्वारा जो परम्परा पीढ़ीयों से चली आ रही है उसको मानते है ये धर्म पूर्वी लोग होते है।

ये संथाली, मुंडारी और सादरी भाषा बोलते  हैं।[3] उनकी अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत और नृत्य हैं।

माहली के सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है| दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी।

माहली के सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के पैटर्न -- पितृसत्तात्मक, पति पत्नी के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है| विवाह अनुष्ठानों में पूरा समुदाय आनन्द के साथ भाग लेते हैं। लड़का और लड़की का जन्म आनन्द का अवसर हैं | माहली मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है। ==

सन्दर्भ

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  1. Pant, Niranjan; Verma, R. K. (2010). Tanks in Eastern India: A Study in Exploration (अंग्रेज़ी में). IWMI. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-92-9090-731-2.
  2. "Mahali | Ethnologue Free". Ethnologue (Free All) (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-08-16.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जनवरी 2019.