संगणक विज्ञान के सन्दर्भ में मृदु संगणन (Soft computing) का अर्थ संगणन की दृष्टि से कठिन एवं जटिल समस्याओं का ऐसा हल देना जो पूर्णतः ठीक नहीं हो किन्तु सरल हो। मृदु संगणन का प्रादर्श (मॉडल) मानव मस्तिष्क के कार्य करने के ढंग से मिलता-जुलता है।
'मृदु संगणन' का आबिर्भाव १९९० के बाद हुआ। इसके पूर्व के संगणन का दृष्टिकोण पूर्णतः ठीक-ठीक (exact) समाधान देने का था जो केवल सरल समस्याओं के लिये ही सम्भव हो पाता था। किन्तु जीवविज्ञान, आयुर्विज्ञान, मानवशास्त्र, प्रबन्धन एवं इसी तरह के अनेकानेक क्षेत्रों में आने वाली समस्याओं के लिये इनमें कोई समाधान नहीं था। मृदु संगणन का उद्देश्य ऐसे ही जटिल, अस्पष्ट, अनिश्चित, आंशिक सत्यता वाली समस्याओं का कम मूल्य में (कम समय, कम मेमोरी आदि) मोटा (approximate) किन्तु उपयोगी हल प्रदान करता है।
फजी लॉजिक, न्यूरल कंप्युटिंग, जेनेटिक कंप्युटिंग, प्रोबेबलिस्टिक रीजनिंग परस्पर विरोधी नहीं हैं बल्कि पूरक हैं। उदाहरण के लिये आजकल 'न्यूरोफजी प्रणाली' (neurofuzzy systems) नामक पद्धति बहुत प्रचलित हो रही है।