मैत्रेय परियोजना एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वर्ष 1990 से सक्रिय है[1], यह परियोजना भारत तथा अन्य जगहों पर मैत्रेय बुद्ध की प्रतिमायें स्थापित करने के उद्देश्य से कार्यरत है। आरम्भिक योजनाओं के अनुसार इस परियोजना द्वारा कुशीनगर अथवा बोधगया में मैत्रेय बुद्ध की 500 फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित की जानी थी। बाद में कुछ बदलाव किये गए और अब दोनों स्थानों पर कम ऊँचाई की मूर्तियाँ स्थापित करने का लक्ष्य है।
तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग सम्प्रदाय द्वारा महायान की परम्पराओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाई गयी एक फाउंडेशन द्वारा इस परियोजना को आरम्भ किया गया था।
भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी हिस्से में स्थित कुशीनगर नामक स्थान, जहाँ गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ और जो एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है, पर इस परियोजना के तहत विशाल प्रतिमा स्थापित करने के लक्ष्य से शिलान्यास किया जा चुका है। 13 दिसंबर 2013 को उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए लगभग 275 एकड़ (111 हे॰) ज़मीन परियोजना को हस्तांतरित करने की घोषणा की। यह भूमि वर्तमान परिनिर्वाण मंदिर, जहाँ बुद्ध को महापरिनिर्वाण हुआ माना जाता है, और रामभर स्तूप, जहाँ बुद्ध के अंतिम अवशेष स्थापित हैं, से कुछ ही दूरी पर है।
इसी दिन, तत्कालीन मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव ने परियोजना की आधारशिला रखी।[2][3] हालाँकि, स्थल पर कार्य वर्तमान (2017) में अभी भी शुरू नहीं हो पाया है।[4]
परियोजना की रपटों के अनुसार 1990–2008 के दौरान लगाए अनुमानों के अनुसार US$110 लाख का निवेश किया जाना था।[6]
वहीं, बोधगया में मूर्ती स्थापित करने हेतु वित्त की व्यवस्था का ज़िम्मा निता इंग ने लिया था।[7]
परियोजना के आरम्भ से ही इसकी काफी आलोचनाएँ की गयीं,[8][9][10][11][12][13] जिसमें राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण क़ानून के तहत अनिवार्य रूप से[1] तकरीबन 660 एकड़ (2.7 कि॰मी2) खेत, मकान और निजी जमीन को अधिग्रहीत किया जाना भी शामिल था; यह जमीन परियोजना को सरकार की और से पट्टे पर दी जानी थी ताकि यहाँ मूर्ति स्थापन के साथ ही, "कैथड्रल युक्त लैंडस्केप पार्क, विहार, दीक्षास्थल, गेस्ट हाउस, पुस्तकालय और "फ़ूड हाल"..." का निर्माण किया जा सके।[14] पीटर केज, परियोजना के डाइरेक्टर और सीईओ, ने कई बार इन आलोचनाओं का उत्तर दिया।[1][15][16]
स्थानीय लोगों द्वारा शांतिपूर्ण धरने के 1,262वें दिन, अगस्त 2010 में, उत्तर प्रदेश के कैबिनेट सचिव ने आश्वासन दिया कि सरकार इस परियोजना को सहायता उपलब्ध कराने पर पुनर्विचार करेगी।[17]
20 नवम्बर 2012 को अखबारों में यह खबर छपी कि मैत्रेय परियोजना वापस चली गयी, इससे स्थानीय किसानों के हर्षित होने की ख़बरें भी प्रकाशित की गयीं।[18]
अंततः अगस्त 2016 में इस परियोजना के लिए 200 एकड़ जमीन का पट्टा हुआ और परियोजना के स्थानीय चेयरमैन भंते कबीर के अनुसार प्रतिमा स्थापन के "...अलावा चैरिटेबुल अस्पताल, कॉलेज भी खोले जाएंगे। ये सेवाएं स्थानीय लोगों के लिए होंगी।" और उन्होंने यह भी बताया कि "...परियोजना का मुख्य लक्ष्य बुद्ध के उपदेशों को विश्व फलक पर विस्तृत करने के साथ कुशीनगर का समग्र विकास करना है।"[19]
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