यरलुंग त्संगपो महान घाटी (Yarlung Tsangpo Grand Canyon), जिसे त्संगपो तंग घाटी (Tsangpo Canyon या Tsangpo Gorge) भी कहते हैं, दक्षिणी तिब्बत में यरलुंग त्संगपो नदी (जो भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहलाती है) द्वारा बनाई गई एक बहुत ही बड़ी तंग घाटी है। कुछ स्रोतों के अनुसार यह दुनिया की सबसे गहरी तंग घाटी है और, अमेरिका के ग्रैन्ड कैन्यन से ज़रा लम्बी होने से, विश्व की सबसे बड़ी तंग घाटियों में से एक भी है।[1] ब्रह्मपुत्र (उर्फ़ यरलुंग त्संगपो) नदी पश्चिमी तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास शुरु होकर १,७०० किमी पूर्व को दौड़ती है और दक्षिणपूर्वी तिब्बत में पेई गाँव के पास पहुँच कर इस गहरी यरलुंग त्संगपो महान घाटी में प्रवेश करती है जो नमचा बरवा पर्वत के इर्द-गिर्द एक खाई की तरह मुड़ी हुई है और जिसके बाद ब्रह्मपुत्र दक्षिण की तरफ़ भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य की ओर निकल पड़ती है। कुल मिलाकर यरलुंग त्संगपो महान घाटी १५० कि॰मी॰ लम्बी है। पेई गाँव में घाटी की शुरुआत पर नदी २,९०० मीटर की ऊँचाई पर है जो ऊपरी घाटी के अंत तक १,५०० मीटर तक गिर चुकी होती है। ऊपरी घाटी के अंत में पो त्संगपो नदी यरलुंग त्संगपो से आ मिलती है। इस से आगे निचली घाटी में नदी १,५०० मीटर के स्तर से भारत की सरहद तक पहुँचते हुए ६६० मीटर तक गिर जाती है।
जब नदी नमचा बरवा और ग्याला पेरी पर्वतों के बीच से निकलती है तो नमचा बरवा के चरणों में खाई की गहराई ५,००० मीटर है। अपने १५० कि॰मी॰ के विस्तार में खाई की औसत गहराई २,२६८ मीटर (७,४४० फ़ुट) है। अपने सबसे गहरे बिन्दु पर घाटी की गहराई ६,००९ मीटर (१९,७१४ फ़ुट) है, जो की निर्देशांक 29°46′11″N 94°59′23″E / 29.769742°N 94.989853°E पर स्थित है। यह पृथ्वी की सबसे गहरी तंग घाटियों में से एक है।[2]
१९५० के दशक में चीन ने तिब्बत पर क़ब्ज़ा कर लिया और इस क्षेत्र को बंद कर दिया। १९९० के दशक में चीनी सरकार ने कुछ पर्यटकों को यहाँ आने-जाने की अनुमति देनी शुरु की और 'यरलुंग त्संगपो महान घाटी प्राकृतिक आरक्षित क्षेत्र' की घोषणा कर दी। लेकिन साथ-ही-साथ चीनी प्रशासन ने यहाँ जलविद्युत परियोजना बनाने के मनसूबे तैयार किये जिनके अन्तर्गत इस नदी का कुछ पानी सरोवरों में रोका जाएगा और कुछ जल नहरों के ज़रिये भारत से अलग दिशा में चीन के अन्य हिस्सों में भेजा जाएगा। अनुमान है कि इससे ४०,००० मेगावॉट बिजली बनाई जा सकती है। भारत ने नदी प्रवाह को रोकने की किसी भी योजना का सख़्त विरोध किया है क्योंकि इस से भारत के पूर्वोतर राज्यों में कृषि और अन्य आर्थिक, प्राकृतिक और वातावरण-सम्बन्धी मुश्किलें उत्पन्न हो सकती हैं। भारतीय रक्षा-विशेषज्ञों को इस बात की भी चिन्ता है कि युद्ध की स्थिति में अचानक ऐसे बाँधों को खोलकर चीन मनचाहे समयों में पूर्वोत्तर भारत को बाढ़ का शिकार भी बना सकता है।[3][4]