यूसुफ जुलेखा (يوسف زلیخا) यूसुफ और जुलेखा (बाइबल में पोतीपर की पत्नी के रूप में जाना जाता है और जिसका नाम वहां नहीं दिया गया है) की कुरान में दी गई कहानी है। इसे मुसलमानों द्वारा बोली जाने वाली कई भाषाओं, विशेष रूप से फारसी और उर्दू में अनगिनत बार दोहराया जा चुका है। इसका सबसे प्रसिद्ध संस्करण फारसी में जामी (1414-1492), की रचना हफ्त औरंग ("सात सिंहासन") में था। कहानी तो कई विस्तारण है, और एक सूफी व्याख्या करना भी सक्षम हैैैै I
यह कहानी तमाम कवियों की रचना का हिस्सा बनी है। संभवतः इसे सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप में फारसी कवि नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी (1414-1492 ई.) ने अपनी रचना हफ्त अवरंग में रचा. महमूद गामी (1750-1855 ई.) ने कश्मीरी में इस कथा को निबद्ध किया है। हाफिज बरखुरदार (1658–1707) ने पंजाबी में इनकी गाथा को निबद्ध किया है. शेख निसार ने अवधी में इस पर काव्य रचा है, जिसमें माना जाता है कि उन्होंने 1790 ई. में 57 वर्ष की आयु में केवल सात दिनों में इसकी रचना की थी. इन्हीं की कहानी पर हिंदी में कवि नसीर ने 1917-18 ई. में प्रेमदर्पण की रचना की. शाह मुहम्मद सगीर ने चौदहवीं सदी में बांग्ला में इस कथा को रचा. फिरदौसी, अमीर खुसरो, फरीद से लेकर बुल्लेशाह तक ने अपनी कविताओं में इन्हें याद किया है.