राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 | |
---|---|
An Act to provide for preventive detention in certain cases and for matters connected therewith. | |
शीर्षक | Act No. 65 of 1980 |
प्रादेशिक सीमा | भारत |
द्वारा अधिनियमित | Parliament of India |
अनुमति-तिथि | 27 December 1980 |
शुरूआत-तिथि | 27 December 1980 |
संकेत शब्द | |
Central Government, State Government, detention order, foreigner | |
स्थिति : प्रचलित |
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, (अथवा एनएसए अथवा रासुका) देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है।[1] यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को गिरफ्तारी का आदेश देता है।[2]
यह कानून सरकार को संदिग्घ व्यक्ति की गिरफ्तारी की शक्ति देता है।
अगर सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने की शक्ति दे सकती है। सरकार को ये लगे कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ा कर रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है। साथ ही, अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है। इस कानून के तहत जमाखोरों की भी गिरफ्तारी की जा सकती है। इस कानून का उपयोग जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है।
अगर सरकार को ये लगे कि कोई व्यक्ति अनावश्यक रूप से देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तारी की नौबत आ रही है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है।
कानून के तहत किसी व्यक्ति को पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर, आवश्यकतानुसार, तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है। एकबार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है। अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है। जब तक राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी बारह दिन से ज्यादा समय तक नहीं हो सकती है। अगर यह अधिकारी पांच से दस दिन में जवाब दाखिल करता है तो इस अवधि को बारह की जगह पंद्रह दिन की जा सकती है। अगर रिपोर्ट को राज्य सरकार स्वीकृत कर देती है तो इसे सात दिनों के भीतर केंद्र सरकार को भेजना होता है। इसमें इस बात का जिक्र करना आवश्यक है कि किस आधार पर यह आदेश जारी किया गया और राज्य सरकार का इसपर क्या विचार है और यह आदेश क्यों जरूरी है।
सीसीपी, 1973 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है, उसकी गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।
गिरफ्तारी के आदेश का नियमन किसी भी व्यक्ति पर किया जा सकता है। उसे एक जगह से दूसरी जगह पर भेजा जा सकता है। हां, संबंधित राज्य सरकार के संज्ञान के बगैर व्यक्ति को उस राज्य में नहीं भेजा जा सकता है।
गिरफ्तारी के आदेश को सिर्फ इस आधार पर अवैध नहीं माना जा सकता है कि इसमें से एक या दो कारण (1) अस्पष्ट हो (2) उसका अस्तित्व नहीं हो (3) अप्रसांगिक हो (4) उस व्यक्ति से संबंधित नहीं हो
इसलिए किसी अधिकारी को उपरोक्त आधार पर गिरफ्तारी का आदेश पालन करने से नहीं रोका जा सकता है। गिरफ्तारी के आदेश को इसलिए अवैध करार नहीं दिया जा सकता है कि वह व्यक्ति उस क्षेत्र से बाहर हो जहां से उसके खिलाफ आदेश जारी किया गया है।
अगर वह व्यक्ति फरार हो तो सरकार या अधिकारी, 1) वह व्यक्ति के निवास क्षेत्र के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट को लिखित रूप से रिपोर्ट दे सकता है। 2) अधिसूचना जारी कर व्यक्ति को तय समय सीमा के अंदर बताई गई जगह पर उपस्थित करने के लिए कह सकता है। 3) अगर, वह व्यक्ति उपरोक्त अधिसूचना का पालन नहीं करता है तो उसकी सजा एक साल और जुर्माना, या दोनों बढ़ाई जा सकती है।
1. इस अधिनियम के उद्देश्य से केंद्र सरकार और राज्य सरकारें आवश्यकता के अनुसार एक या एक से अधिक सलाहकार समितियां बना सकती हैं। 2. इस समिति में तीन सदस्य होंगे, जिसमें प्रत्येक एक उच्च न्यायालय के सदस्य रहे हों या हो या होने के योग्य हों. समिति के सदस्य सरकार नियुक्त करती हैं। 3. संघ शासित प्रदेश में सलाहकार समिति के सदस्य किसी राज्य के न्यायधीश या उसकी क्षमता वाले व्यक्ति को ही नियुक्त किया जा सकेगा, नियुक्ति से पहले इस विषय में संबंधित राज्य से अनुमति लेना आवश्यक है।
1. इस कानून के तहत गिरफ्तार किसी व्यक्ति को तीन सप्ताह के अंदर सलाहकार समिति के सामने उपस्थित करना होता है। साथ ही सरकार या गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को यह भी बताना पड़ता है कि उसे क्यों गिरफ्तार किया गया। सलाहकार समिति उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर विचार करता है या वह नए तथ्य पेश करने के लिए कह सकता है। सुनवाई के बाद समिति को सात सप्ताह के भीतर सरकार के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करना होता है। 2. सलाह बोर्ड को अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ लिखना होता है कि गिरफ्तारी के जो कारण बताए गए हैं वो पर्याप्त हैं या नहीं। 3. अगर सलाहकार समिति के सदस्यों के बीच मतभेद है तो बहुलता के आधार निर्णय माना जाता है। 4. सलाहकार बोर्ड से जुड़े किसी मामले में गिरफ्तार व्यक्ति की ओर से कोई वकील उसका पक्ष नहीं रख सकता है और सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट गोपनीय रखने का प्रावधान है।
1. अगर सलाहकार बोर्ड व्यक्ति की गिरफ्तार के कारणों को सही मानता है तो सरकार उसकी गिरफ्तारी को उपयुक्त समय, जितना पर्याप्त वह समझती है, तक बढ़ा सकती है। 2. अगर समिति गिरफ्तारी के कारणोंydh को पर्याप्त नहीं मानती है तो गिरफ्तारी का आदेश रद्द हो जाता है और व्यक्ति को रिहा करना पड़ता है।
अगर, गिरफ्तारी के कारण पर्याप्त साबित हो जाते हैं तो व्यक्ति को गिरफ्तारी की अवधि से एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। समया अवधि पूरा होने से पहले न तो सजा समाप्त की जा सकती है और ना ही उसमें फेरबदल हो सकता है।
1. गिरफ्तारी के आदेश को रद्द किया जा सकता है या बदला जा सकता है (अ) इसके बावजूद, कि गिरफ्तारी केंद्र या राज्य सरकार के आदेश के उसके अधीनस्थ अधिकारी ने की है। (आ) इसके बावजूद कि ये गिरफ्तारी केंद्र या राज्य सरकार के आदेश के हुई हो। 2.