रोजा | |
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निर्देशक | मणि रत्नम |
लेखक | मणि रत्नम |
निर्माता | के बालाचंदर |
अभिनेता |
अरविन्द स्वामी मधू पंकज कपूर नास्सर जनगराज |
संगीतकार | ए॰ आर॰ रहमान |
वितरक | कविथालाया प्रोडक्शन |
प्रदर्शन तिथियाँ |
15 अगस्त, 1992 |
लम्बाई |
137 मिनट |
भाषा | तमिल |
रोजा (अर्थ: गुलाब) 1992 की भारतीय तमिल भाषा की रूमानी थ्रिलर फिल्म है जिसे मणिरत्नम द्वारा लिखित और निर्देशित किया गया है।[1] इसमें अरविन्द स्वामी और मधू मुख्य भूमिका में हैं। यह तमिलनाडु के एक गांव की एक साधारण लड़की की कहानी है। वह जम्मू-कश्मीर में एक गुप्त मिशन के दौरान आतंकवादियों द्वारा अपने पति का अपहरण कर लिए जाने के बाद उसे ढूंढने के लिए अथक प्रयास कर रही है।[2]
श्रीनगर में, एक कश्मीरी आतंकवादी वसीम खान को कर्नल रायप्पा के नेतृत्व वाली एक टीम ने पकड़ लिया है। दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में, 18 वर्षीय रोजा (मधू) साधारण गाँव की लड़की है। उसका जन्म और पालन-पोषण तेन्कासी ज़िले के सुंदरपांडियापुरम में हुआ। रोजा की हार्दिक इच्छा है कि उसकी बहन शेनबागम का विवाह रॉ में काम करने वाले क्रिप्टोलॉजिस्ट ऋषिकुमार (अरविन्द स्वामी) के साथ हो। उसके और उसके परिवार को पता नहीं है लेकिन शेनबागम को अपने मामा के बेटे से प्यार है। जब ऋषि अकेले में शेनबागम से बात करना चाहता है, तो वह यह बताने के लिए पर्याप्त साहस जुटा लेती है। वह उससे विनम्रतापूर्वक उसके माता-पिता के सामने उसे अस्वीकार करने के लिए कहती है, जिसके लिए वह मान जाता है। सभी को आश्चर्यचकित करते हुए, ऋषि रोजा से शादी करने का अनुरोध करता है। शेनबागम के प्रेम संबंध से अनजान होने के कारण, रोजा ऋषि के प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार नहीं होती। लेकिन फिर भी बाद में वह ऋषि से शादी कर लेती है और युगल जोड़ा मद्रास में रहने के लिए चले जाता है। जबकि शेनबागम अपने ममेरे भाई से शादी कर लेती है।
प्यार पनपता है और जोड़े के लिए थोड़े समय के लिए जीवन आनंदमय हो जाता है। इस बीच, अपने प्रमुख की बीमारी के कारण, ऋषि को सैन्य खुफिया जानकारी को रोकने के लिए बारामूला में एक सेना संचार केंद्र में नियुक्त किया गया जाता है। यह जोड़ा खुद को एक खूबसूरत लेकिन विदेशी जगह में अपने को पाता है। रोजा की दुनिया तब उलट-पुलट हो जाती है जब आतंकवादियों द्वारा ऋषि का अपहरण कर लिया जाता है। उनका एजेंडा कश्मीर को भारत से अलग करना और अपने नेता वसीम खान को न्यायिक हिरासत से मुक्त कराना है। अपने पति को बचाने के लिए रोजा राजनेताओं और सेना से मदद की गुहार लगाते हुए दर-दर भटकती रहती है। भाषा की बाधा मामले को और भी जटिल बना देती है: वह उनकी भाषा नहीं बोल सकती और वे उसकी भाषा नहीं बोल सकते। इस बीच, वसीम ख़ान के सहयोगी लियाक़त के नेतृत्व में आतंकवादियों के एक समूह द्वारा बंदी बना लिया गया ऋषि आतंकवादियों को कश्मीर की मुक्ति के लिए उनके गलत उद्देश्य के बारे में समझाने की कोशिश करता है। लियाक़त की बहन उस पर थोड़ी दया दिखाती है। शुरुआत में जब रोजा की कोशिशें नाकाम हो जाती है। क्योंकि भारत सरकार मीडिया में ऋषि की रिहाई के लिए आतंकियों से किसी भी तरह की बातचीत करने से इनकार कर देती है।
सभी गीत पी॰ के॰ मिश्रा द्वारा लिखित; सारा संगीत ए॰ आर॰ रहमान द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "छोटी सी आशा – संस्करण 1" | मिनमिनी | 4:57 |
2. | "रुक्मणि रुक्मणि" | बाबा सहगल, श्वेता शेट्टी | 6:04 |
3. | "रोजा – संस्करण 1" | एस॰ पी॰ बालसुब्रमण्यम, के॰ एस॰ चित्रा | 5:06 |
4. | "ये हसीं वादियाँ ये खुला आसमां" | एस॰ पी॰ बालसुब्रमण्यम, के॰ एस॰ चित्रा | 5:20 |
5. | "रोजा – संस्करण 2" | हरिहरन, के॰ एस॰ चित्रा | 5:04 |
6. | "छोटी सी आशा – संस्करण 2" | मिनमिनी | 1:06 |
7. | "भारत हमको जान से प्यारा है" | हरिहरन | 3:11 |
इसी फ़िल्म से ए॰ आर॰ रहमान ने फ़िल्मी संगीतकार के रूप में शुरुआत की थी। यह फ़िल्म जारी होने के बाद बेहद सफल रही थी। मूल रूप से तमिल में जारी फ़िल्म को बाद में हिन्दी में डब करके सिनेमाघरों में जारी किया गया था। इसका संगीत भी डब किया गया था। संगीत और फ़िल्म दोनों ही हिन्दी में भी सफ़ल रहे।[3]
अपनी पहली ही फ़िल्म से ए॰ आर॰ रहमान को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इसके "छोटी सी आशा" गीत के असल तमिल बोलों को लिखने वाले गीतकार को भी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।[4]