लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा |
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जन्म |
नवम्बर, 1864 आहतगुडी, नगाँव, असम, भारत |
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मौत |
26 March 1938 डिब्रूगढ, असम, भारत |
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जाति |
असमिया |
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पेशा |
लेखक, उपन्यासकार, नाटककार, कवि, सम्पादक, व्यंगकार |
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जीवनसाथी |
प्रज्ञासुन्दरी देवी |
लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा ( १८६४-१९३८) आधुनिक असमिया साहित्य के पथ-प्रदर्शक कहे जाते हैं। कविता, नाटक, गल्प, उपन्यास, निबन्ध, रम्यरचना, समालोचना, प्रहसन, जीवनी, आत्मजीवनी, शिशुसाहित्य, इतिहास अध्ययन, सांवादिकता आदि दृष्टियों से बेजबरुवा का योगदान अमूल्य है।
असमिया साहित्य में उन्होंने कहानी तथा ललित निबंध के बीच के एक सहित्य रूप को अधिक प्रचलित किया। बेजबरुआ की हास्यरस की रचनाओं को काफी लोकप्रियता मिली। इसीलिए उसे "रसराज" की उपाधि दी गई।
बेजबरुवा का साहित्यिक जीवन कोलकाता में शिक्षा प्राप्ति के समय से ही आरम्भ हो गया था।
- मोर जीवन सोँवरण (प्रथम खण्ड, १९४५)[1]
- मोर जीवन सोँवरण (द्बितीय खण्ड, १९६१)[1]
- डाङरीया दीननाथ बेजबरुवार संक्षिप्त जीवन चरित
- श्रीश्री शंकरदेव
- श्रीश्री शंकरदेव आरु श्रीश्री माधवदेव
- तत्त्बकथा
- श्रीकृष्णकथा
- भगवत् कथा
- सुरभि
- साधुकथार कुँकि
- जोनबिरि
- केहोँकलि
- मेकुरीर जीयेकर साधु
- बान्दर आरु शियाल
- औ-कुँवरी
- ढोँराकाउरी आरु टिपचीचराइ
- एजनी मालिनी आरु एजोपार फुल
- बुधियक शियाल
- बाघ आरु केँकोरा
- तेजीमला
- बुढ़ा-बुढ़ी आरु शियाल
- दीघल ठेङीया
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- गंगाटोप
- नुमलीया पो
- सरबजान
- एटा शिङरा माछर कथा
- एटा बली मानुह
- चिलनी जीयेकर साधु
- तुला आरु तेजा
- कटा योवा नाक,खारणी दि ढाक
- तीखर आरु चुटिबाइ
- चम्पावती
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- जरदगव रजार उपाख्यान
- पानेशै
- जोँवाइर साधु
- कुकुरीकणा
- भेकुलीर साधु
- तावैयेकर साधु
- लटकन
- लखिमी तिरोता
- दुइ बुधियक
- कांचनी
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- ककादेउता आरु नातिलरा
- जुनुका
- बाखर
- कामत कृतित्ब लभिबर संकेत
धेमेलीया नाटक (प्रहसन)
- लितिकाइ
- नोमल
- पाचनि
- चिकरपति निकरपति
नाटर कुकि
- गदाधर रजा
- बारेमतरा
- ह-य-ब-र-ल
- हेमलेत
- मङला
बुरंजीमूलक नाटक
- चक्रध्बज सिंह
- जयमती कुँवरी
- बेलिमार
- कृपाबर बरुवार काकतर टोपोला
- कृपाबर बरुवार ओभतनि
- बरबरुवार बुलनि
- बरबरुवार भावर बुरबुरणि (प्रथम खण्ड)
- बरबरुवार भावर बुरबुरणि (द्बितीय खण्ड)
- बरबरुवार चिन्तार शिलगुटि
- बरबरुवार साहित्यिक रहस्य
- कृपाबर बरुवार सामरणि
- असमीया भाषा आरु साहित्य
- पत्रलेखा
- काँहुदी आरु खारलि
- सम्पादकर च'रा