लखीमपुर Lakhimpur | |
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लखीमपुर का दृश्य | |
निर्देशांक: 27°56′42″N 80°46′44″E / 27.945°N 80.779°Eनिर्देशांक: 27°56′42″N 80°46′44″E / 27.945°N 80.779°E | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | लखीमपुर खीरी ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 1,51,993 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | अवधी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 262701 |
दूरभाष कोड | +91-5872 |
वाहन पंजीकरण | UP-31 |
वेबसाइट | kheri.nic.in |
लखीमपुर (Lakhimpur) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के लखीमपुर खीरी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। पास ही खीरी का शहर स्थित है।[1][2]
पहले इस जगह को "लक्ष्मीपुर" के नाम से जाना जाता था। पुराने समय में यह खर के वृक्षों से घिरा हुआ था। अत: खीरी नाम खर वृक्षों का ही प्रतीक है। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गोला - गोकरनाथ(छोेटी काशी), देवकाली, लिलौटीनाथ और फ्रांग मंदिर(ई॰ १८६०-१८७०) आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध है। क्षेत्रफल की दृष्टि(लगभग ७६८० वग॔ किलोमी॰) से यह जिला उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला हैं।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। गोला गोकरन नाथ को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। रावण ने भगवान शिव से यह प्रार्थना की वह उनके साथ लंका चले और हमेशा के लिए लंका में रहें। भगवान शिव रावण की इस बात से राजी हो गए। लेकिन उनकी यह शर्त थी कि वह लंका को छोड़कर अन्य किसी और स्थान पर नहीं रहेंगे। रावण इस बात के लिए तैयार हो गया और भगवान शिव और रावण ने लंका के लिए अपनी यात्रा आरंभ की थी। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग पर रावण के अगूठे का निशान वर्तमान समय में भी मौजूद है। प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में चेती मेले का आयोजन किया जाता है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। शारदा नगर मार्ग पर स्थित लिलौटी नाथ लखीमपुर से नौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल के दौरान द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वशथामा ने की थी। कुछ समय के पश्चात् यहां के पुराने राजा मेहवा ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। मंदिर में स्थित शिवलिंग अत्यंत अद्भुत है। क्योंकि प्रतिदिन शिवलिंग के कई बार रंग बदलते हैं। इसके अतिरिक्त यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि अश्वशथामा अमर है और प्रतिदिन मंदिर का द्वार खुलने से पहले उसमे भगवान शिव पर पूजा अर्चना कर जाते है। प्रत्येक वर्ष जुलाई माह में प्रत्येक दिन और हर महीने में आने वाली अमावस्या को मेले का आयोजन किया जाता है।
लखीमपुर से सीतापुर मार्ग पर स्थित लखीमपुर से १२ किलोमीटर की दूरी पर ऑयल शहर फ्रॉग मंदिर के लिए काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण १८७० ई. में करवाया गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह मंदिर मेढ़क के आकार में बना हुआ है। मंदिर में दो प्रवेश द्वार है। जिसका प्रमुख द्वार पूर्व दिशा की और दूसरा दक्षिण दिशा की ओर खुलता है।मंदिर के ऊपर लगा हुआ छत्र स्वर्ण से निर्मित है। जिसमें नटराज जी की नृत्य करती मूर्ति चक्र के अन्दर मंदिर के शीर्ष पर विद्यमान है। जोकि सूर्य की दिशा के अनुसार घूर्णन करता है। जोकि विस्मय कारी है।
मैगलगंज लखीमपुर जिले का एक कस्बा है। जो लखीमपुर से करीब 54 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह नेशनल हाईवे 24 पर स्थित है।यहां के गुलाब जामुन प्रदेश भर में मशहूर है। मैगलगंज के दक्षिण में गोमती नदी के तट पर बाबा पारसनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है यहां महाभारत काल का मंदिर है इस मंदिर में 6 शिवलिंग है 5 शिवलिंग की पूजा पांच पांडव करने आते हैं और एक शिवलिंग की पूजा अश्वत्थामा करते हैं जो कि द्रोणाचार्य के पुत्र हैं गोमती नदी दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहती है यह शुभ माना जाता है और मंदिर के पश्चिम सिद्ध बाबा का स्थान है मंदिर के दक्षिण कुछ टूटी हुई मूर्तियां रखी है जो यहां के पूर्वजों ने बताया है मूर्तियां मोहम्मद गोरी ने तोड़ी है जब उसने मंदिर पर आक्रमण किया तो यहां सांप और बिच्छू उसकी सेना लोहा लिया और उसकी सेना को खत्म कर दिया। मैगलगज के गुलाब जामुन बहुत मशहूर हैं यहां की धनपाल मिष्ठान भंडार जो कि लगभग 1935 से भी पुरानी यहां के गुलाब जामुन अंग्रेजों ने भी खाए हैं।
देवकाली शिव मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भगवत गीता के अनुसार राजा परीक्षित ने अपने बेटे के जन्म पर नाग यज्ञ का आयोजन किया था। सभी सांप यज्ञ मंत्र की शक्ति से उस हवन कुंड में कूद पड़े। इस यज्ञ के पश्चात् उस क्षेत्र में कभी कोई सांप नहीं पाया गया। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की पवित्र धरती इस जगह पर किसी सांप को यहां आने नहीं देती है। इस मंदिर का नाम भगवान ब्रह्मा की पुत्री देवकाली के नाम पर रखा गया है। क्योंकि उन्होंने इस स्थान पर कड़ी तपस्या की थी।
यह भोलेनाथ मंदिर गोमती नदी के किनारे बना है यहां श्रावण मास में मेला लगता है यहां पर लगभग हर समय सृद्धालुओ द्वारा रामचरितमानस पाठ कराये जाते हैं मनोकामना पूर्ण करने वाले सृद्धालुओ ने यहां कई धर्मशाला बनवाये हैं। इस्के निकट 6 किमी प्रति kasba mohommdi kheri है।
१ फ़रवरी सन १९७७ ईस्वी को दुधवा के जंगलों को राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया। सन १९८७-८८ ईस्वी में किशनपुर वन्य जीव विहार को दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में शामिल कर लिया गया तथा इसे बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना के समय यहां बाघ, तेंदुए, गैण्डा, हाथी, बारहसिंगा, चीतल, पाढ़ा, कांकड़, कृष्ण मृग, चौसिंगा, सांभर, नीलगाय, वाइल्ड डाग, भेड़िया, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी, हिस्पिड हेयर, रैटेल, ब्लैक नेक्ड स्टार्क, वूली नेक्ड स्टार्क, ओपेन बिल्ड स्टार्क, पैन्टेड स्टार्क, बेन्गाल फ़्लोरिकन, पार्क्युपाइन, फ़्लाइंग स्क्वैरल के अतिरिक्त पक्षियों, सरीसृपों, उभयचर, मछलियाँ व अर्थोपोड्स की लाखों प्रजातियां निवास करती थी। कभी जंगली भैसें भी यहां रहते थे जो कि मानव आबादी के दखल से धीरे-धीरे विलुप्त हो गये। इन भैसों की कभी मौंजूदगी थी इसका प्रमाण वन क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों पालतू मवेशियों के सींघ व माथा देख कर लगा सकते है कि इनमें अपने पूर्वजों का डी०एन०ए० वहीं लक्षण प्रदर्शित कर रहा है। मगरमच्छ व घड़ियाल भी आप को सुहेली जो जीवन रेखा है इस वन की व शारदा और घाघरा जैसी विशाल नदियों में दिखाई दे जायेगें। गैन्गेटिक डाल्फिन भी अपना जीवन चक्र इन्ही जंगलॊ से गुजरनें वाली जलधाराओं में पूरा करती है। इनकी मौजूदगी और आक्सीजन के लिए उछल कर जल से ऊपर आने का मंजर रोमांचित कर देता है।
सूरथ भवन(राजमहल) सिंगाही नगर पंचायत तहसील निघासन जिला मुख्यालय से 66 किमीo दूर तराई क्षेत्र में स्थित खूबसूरत महलों में से एक है। इस महल वास्तुकला काफी खूबसूरत है। यह महल लगभग नौ एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर एक प्राचीन काली माता मंदिर स्थित हैजोकि आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। राजमहल में बिना अनुमति के प्रवेश नहीं किया जा सकता है।
यह गुरूद्वारा खीरी जिले के बाबापुर में स्थित है। गुरूद्वारा कौड़ियाला घाट साहिब घाघरा नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि इस स्थान पर सिखों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी ने १५१४ ई. में शिविर लगाया था व गुरूवाणी के प्रभाव से एक कुष्ठ रोगी को रोग से मुक्त किया था। इस पुराने गुरूद्वारे में एक विशाल कमरा और पवित्र कुण्ड भी स्थित है, यहाँ प्रत्येक अमावस्या के दिन मेला लगता है,तथा लंगर भी सिक्ख समुदाय के द्वारा कराया जाता है। यहां पर हर समुदाय के लोग अमावस्या के दिन जाते है तथा वहां बने पवित्र कुंड में स्नान करते है कहा जाता है कि उस कुंड में स्नान करने मात्र से चर्म रोगों में फायदा हो जाता है। लोगों को फायदा होने पे नमक और झाड़ू चढ़ाया जाता है।
सबसे निकटतम हवाई अड्डा अमौसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, लखनऊ है। यह जगह खीरी से 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
खीरी रेल मार्ग द्वारा आसानी से लखनऊ, सीतापुर,बरेली,पीलीभीत,गोंडा आदि द्वारा पहुंचा जा सकता है।
यह स्थान सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली, शाहजहांपुर,सीतापुर,मैगलगंज,हरदोई,बरेली और भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। पीलीभीत बहराइच राष्ट्रीय राजमार्ग 730 भी यहा से गुजरता है।
यातायात के विभिन्न साधनों की सुविधा जिले में मिलती है। मुख्य रूप से बस और रेल यातायात सुविधाओं के जरिए लखीमपुर पहुंचा जा सकता है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मात्र 135 किमी की दूरी पर यह शहर लखीमपुर स्थित है। लखीमपुर खीरी जनपद के पलियाकलां में हवाई पट्टी होने के चलते कुछ घरेलु उड़ाने से भी पहुंचा जा सकता है , लेकिन पलिया से बस की सहायता से सड़क मार्ग के जरिए जिले के बाकी हिस्सों में पहुंचा सकता है।