लोहाघाट | |||||||
— नगर — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | ![]() | ||||||
राज्य | उत्तराखण्ड | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
७,९२६ (२०११ के अनुसार [update]) | ||||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
४.५ कि.मी² • १७८८ मीटर | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: almora.nic.in |
निर्देशांक: 29°25′00″N 80°06′00″E / 29.4167°N 80.1000°E
लोहाघाट भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के चम्पावत जनपद में स्थित एक प्रसिद्ध शहर, नगर पंचायत और हिल स्टेशन है। मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण चारों ओर से छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा यह नगर पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। जनपद मुख्यालय से 13 किमी उत्तर की ओर टनकपुर-तवाघाट राष्ट्रीय राजमार्ग में लोहावती नदी के किनारे देवीधार, फोर्ती, मायावती, एबटमाउंट, मानेश्वर, बाणासुर का किला, झूमाधूरी आदि विशेष धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों के मध्य स्थित होने से इस नगर की सुन्दरता और बढ़ जाती है। जनपद का यह मुख्य शहर जहां से ग्रामीण क्षेत्रों को आवागमन होता है, प्रमुख व्यापारिक स्थल भी है। इसलिए इसे जनपद चम्पावत का हृदयस्थल कहा जाता है। देवदार वनों से घिरे इस नगर की समुद्रतल से ऊँचाई लगभग ५५०० फ़ीट है।
वाराह पुराण में इस स्थान को लोहार्गल कहा गया है। भगवान वाराह ने कहा है कि हिमालय में लोहार्गल नाम का एक गुप्त क्षेत्र है जो पांच योजन तक विस्तृत है। एक समय इस पवित्र स्थल पर दानवों ने आक्रमण कर दिया, तब वाराह भगवान ने ब्रह्मा, रुद्र स्कंद, मरुद्गण, आदित्य, चन्द्रमा, बृहस्पति तथा अन्य देवताओं को इस स्थान पर सुरक्षित कर सुदर्शन चक्र से निशाचरों का संहार किया। भगवान वाराह इस क्षेत्र की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं कि "इस स्थान पर प्रतिष्ठित उनकी मूर्ति का जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक दर्शन करता है वह उनका भक्त बन जाता है। जो मनुष्य तीन रात्रि यहां निवास करता है वह कई हजार वर्षों तक स्वर्ग का सुख भोगता है, इसलिए सिद्धि चाहने वाले मनुष्यों को लोहार्गल क्षेत्र में आगमन करना चाहिए। भक्ति में रत रहने वाला जो व्यक्ति यहां प्राण त्यागता है वह स्वर्गलोक से भी आगे मेरे धाम में स्थान प्राप्त करता है।"[1] ब्रिटिश काल में लोहाघाट को लोहूघाट कहा जाता था।
कत्यूरी शासनकाल से ही लोहाघाट अच्छी स्थिति में रहा है। कत्यूरी राज में लोहाघाट सुई नाम से जाना जाता था, और यहाँ स्थानीय रौत राजा शासन करते थे।[2] कुमाऊँ के राजा सोमचन्द (७००-७२१) ने अपने फौजदार कालू तड़ागी की सहायता से स्थानीय रौत राजा को परास्त कर इस क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया। १२वीं शताब्दी में चन्द राजाओं ने यहाँ बाणासुर किले का निर्माण करवाया था।
सन् १७९० में अन्य क्षेत्रों की तरह यह क्षेत्र भी ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियंत्रण में आया और सन् १९४७ तक ब्रिटिश शासकों के अधीन रहा। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता से अंग्रेज बहुत प्रभावित थे। अंग्रेजों ने लोहाघाट को अपना आवास बनाया। यहां पर सेना की एक टुकड़ी रखी। फर्नहिल और चनुवांखाल की भूमि चाय एवं फलोत्पादन के लिए हेन्सी एवं श्रीमती हौस्किन को लीज पर दी गई।[3] पश्चात हेन्सी की भूमि को ‘टलक’ नामक अंग्रेज को हस्तान्तरित की गई जिसे ‘टलक स्टेट’ कहा जाने लगा।[4]
लोहाघाट में कतिपय अंग्रेजों के बसने के पश्चात वर्तमान चिकित्सालय परिसर के निकट बैरकें बनाई गई, ब्रिटिश सेना को सन् १९३९ में हवालबाग से लाकर लोहाघाट में स्थाई छावनी बनाई गई।[5] उस स्थान पर वर्तमान में राजकीय इण्टर कालेज है चांदमारी नामक इस स्थान पर युद्धाभ्यास किया जाता था। सन् १८४६ के जन विद्रोह के कारण यहां से सैनिक छावनी हटा दी गई।[6]
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात लोहाघाट में विकास के युग का सूत्रपात हुआ। इस क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, राजस्व, कानूनी, भूमि बंदोबस्त, मार्ग निर्माण आदि के लिए प्रयास किये गये। लोहाघाट को काली कुमाऊँ सब डिविजन का मुख्यालय बनाया गया। उसी समय का बना कारागार जनपद चम्पावत की अस्थाई जेल है। सन् १९५० में टनकपुर-तवाघाट मार्ग के निर्माण से लोहाघाट के विकास में गति आई। अल्मोड़ा जनपद के इस परगने को सन् १९६० में पिथौरागढ़ जनपद सृजन के पश्चात् १९७२ में पिथौरागढ़ में सम्मिलित कर लिया गया। सन् १९९७ में चम्पावत जनपद की स्थापना के पश्चात यह जनपद का प्रमुख नगर है।[7]
माह | जनवरी | फरवरी | मार्च | अप्रैल | मई | जून | जुलाई | अगस्त | सितम्बर | अक्टूबर | नवम्बर | दिसम्बर | वर्ष |
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औसत उच्च तापमान °C (°F) | 12.6 (54.7) |
14.4 (57.9) |
18.8 (65.8) |
24 (75) |
26.5 (79.7) |
26.1 (79) |
23.3 (73.9) |
23.0 (73.4) |
22.6 (72.7) |
21.2 (70.2) |
17.5 (63.5) |
14.3 (57.7) |
20.36 (68.63) |
दैनिक माध्य तापमान °C (°F) | 7.6 (45.7) |
8.9 (48) |
13.1 (55.6) |
17.6 (63.7) |
20.2 (68.4) |
20.9 (69.6) |
19.7 (67.5) |
19.5 (67.1) |
18.6 (65.5) |
16.1 (61) |
12.2 (54) |
9.0 (48.2) |
15.28 (59.53) |
औसत निम्न तापमान °C (°F) | 2.6 (36.7) |
3.5 (38.3) |
7.4 (45.3) |
11.2 (52.2) |
14.0 (57.2) |
15.8 (60.4) |
16.1 (61) |
16.0 (60.8) |
14.6 (58.3) |
11.0 (51.8) |
6.9 (44.4) |
3.8 (38.8) |
10.24 (50.43) |
औसत वर्षा मिमी (इंच) | 62 (2.44) |
46 (1.81) |
58 (2.28) |
31 (1.22) |
64 (2.52) |
177 (6.97) |
390 (15.35) |
318 (12.52) |
195 (7.68) |
95 (3.74) |
9 (0.35) |
25 (0.98) |
1,470 (57.86) |
स्रोत: Climate-Data.org[8] |
२९.४१६७ डिग्री उत्तर के अक्षाशों और ८०.१००० डिग्री पूर्व के देशान्तरों पर स्थित लोहाघाट नगर समुद्र तल से १७८८ मीटर (५८६९ फ़ीट) की ऊंचाई पर लोहावती नदी के तट पर बसा हुआ है।[9] यह नगर राष्ट्रीय राजमार्ग ९ पर चम्पावत से १३ किमी, और पिथौरागढ़ से ६२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
लोहाघाट की जनसंख्या | |||
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जनगणना | जनसंख्या | %± | |
१९८१ | 2,530 | ||
१९९१ | 3,891 | 53.8% | |
२००१ | 5,829 | 49.8% | |
२०११ | 7,926 | 36.0% | |
source:[10] |
लोहाघाट नगर पंचायत की जनगणना भारत २०११ द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक ७,९२६ की आबादी है, जिनमें से ४,२६१ पुरुष हैं जबकि ३,६६५ महिलाएं हैं। ०-६ की आयु वाले बच्चों की जनसंख्या ९२१ है जो लोहाघाट (एनपी) की कुल आबादी का ११.६२% है। लोहाघाट नगर पंचायत में, महिला लिंग अनुपात ९६३ के औसत औसत के मुकाबले ८६० है। इसके अलावा लोहाघाट में बाल लिंग अनुपात उत्तराखंड राज्य औसत ८९० की तुलना में लगभग ६९३ है। लोहाघाट शहर की साक्षरता दर ७८.८२% की औसत औसत से ९२.३१% अधिक है। लोहाघाट में, पुरुष साक्षरता लगभग ९५.९६% है जबकि महिला साक्षरता दर ८८.१७% है। २००१ में नगर की जनसंख्या ५,८२८ थी।[11]
१० दिसम्बर १९५९ को टाउन एरिया की मान्यता मिलने के बाद १२ जुलाई १९७२ को इसे नोटिफाइड एरिया तथा ०४ जून १९९४ को नगर पंचायत की श्रेणी में आने तक निरन्तर यहाँ की जनसंख्या में वृद्धि होती रही। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग आकर यहां बसने लगे। १८७२ में इस नगर की जनसंख्या मात्र ९८ थी जो सन् १९६० में लगभग १००० हो गई। यदि आधिकारिक नगर क्षेत्र के बाहर बसे उपनगरों को भी जोड़ दिया जाए, तो वर्तमान में लगभग २० हजार की आबादी इस नगर में निवास करती है।[12]
शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सड़कों की सुविधा होने से यह नगर जनसंख्या के साथ-साथ व्यापारिक मंडी के रूप में विकसित हो रहा है। व्यापारिक दृष्टि से नगर का महत्वपूर्ण स्थान है, ग्रामीण क्षेत्रों के स्थानीय उत्पाद यहां आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।[13]
जिला सांख्यिकी हस्तपुस्तिका २०१७ के अनुसार लोहाघाट नगर में १२ जूनियर बेसिक स्कूल, ७ सीनियर बेसिक स्कूल, २ हायर सेकण्डरी स्कूल (१ बालक / १ बालिका), और १ महाविद्यालय है।[14]
यहां के स्थानीय मेलों का नजारा अद्भुत होता है। मंदिरों में मंदिरों में आयोजित मेलों में श्रद्धा, संस्कृति के साथ-साथ भाईचारे का भी समन्वय होता है। नगर के मध्य स्थित हथरंगिया में कालू सय्यद बाबा की मजार है, जो सामुदायिक सद्भावना की अनूठी मिसाल है; सभी धर्मों के लोग यहाँ गुड़-चना चढ़ाकर मनौतियां मांगते हैं। लोहावती नदी के संगम स्थल पर शिवालय की महिमा से आस्थावान नागरिक भलीभांति परिचित हैं। सांस्कृतिक धरोहर के रूप में यहां की रामलीला प्रसिद्ध है। खेलों के प्रति भी युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है; यहां का फुटबाॅल मैच इस नगर की पहचान है।[15]
निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर में स्थित है, जो सड़क मार्ग से लगभग ९० किमी दूर है। पिथौरागढ़ से करीब ५ किमी दूर नैनी सैनी हवाई अड्डा है , जो निकटतम हवाई अड्डा है।
पहाड़ी क्षेत्र में स्थित होने के कारण बसें ही यहाँ आवागमन का मुख्य साधन हैं। लोहाघाट में उत्तराखण्ड परिवहन निगम का एक डिपो है, जिसमें ४२ बसें हैं। इस डिपो की स्थापना १९८३ में हुई थी।[16] डिपो से प्रतिदिन १० रूटों के लिए १७ बसों का संचालन होता है। इसमें दिल्ली के लिए पांच, देहरादून तीन, बरेली दो, टनकपुर से हरिद्वार के लिए दो और काशीपुर, हल्द्वानी, नैनीताल, ऋषिकेश व पोंटा साहिब के लिए एक-एक बस का संचालन होता है।[17]
यह बाणासुर के किले के लिए प्रसिद्ध है, जिसे १२वीं शताब्दी में चंद राजाओं ने बनवाया था।[18][19]
अपने अनूठे सौन्दर्य और सामुदायिक समरसता से परिपूर्ण यह शहर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। चारों ओर से मन्दिरों, ऐतिहासिक स्थलों से घिरे देवदार वृक्षों की छाया के मनोरम और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण दृश्यों का 'मासूक' सहित कई फिल्मों में फिल्मांकन हुआ है। नगर के सौन्दर्य को देवदार के जंगलों ने और भी सुन्दरता दी है।[20] लोहाघाट नगर के निकट ही मायावती आश्रम नाम से एक छोटा सा पर्यटन स्थल है। जहां स्वामी विवेकानंद जी उत्तराखंड भ्रमण के समय आए थे। वर्तमान में भी यहां से प्रबुद्ध भारत नामक पत्रिका का प्रकाशन होता है। यहाँ के घने जंगलो में अनेक वन्य जीव पाये जाते हैं।
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