वर्णात्मक नीतिशास्त्र (अंग्रेज़ी: descriptive ethics), जिसे तुलनात्मक नीतिशास्त्र (अंग्रेज़ी: comparative ethics) भी कहा जाता हैं, नैतिकता के बारे में लोगो की आस्थाओं का अध्ययन हैं।[1] वर्णात्मक नीतिशास्त्र निर्देशात्मक या मानदण्डक नीतिशास्त्र से अलग हैं, जो उन नीतिशास्त्रीय सिद्धान्तों का अध्ययन करता हैं, जो ये निर्देशित करते हैं कि लोगों को कैसे कार्य करना चाहिये। और, वर्णात्मक नीतिशास्त्र मेटा-नीतिशास्त्र से भी अलग हैं, जो इसका अध्ययन करता हैं कि नीतिशास्त्रीय शब्द और सिद्धान्त असल में किसे सन्दर्भित करते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में माने हुएँ निम्न प्रश्नों के उदाहरण, क्षेत्रों के बीच के अन्तर को दर्शाते हैं :
वर्णात्मक नीतिशास्त्र व्यक्तियों की या लोगों के समूहों की अभिवृत्तियों के एक अनुभवजन्य संशोधन का रूप हैं। अन्य शब्दों में, यह दार्शनिक या सामान्य नीतिशास्त्र का विभाग हैं, जिसमें घटना को वर्णित करने के ध्येय से नैतिक निर्णयन प्रक्रिया का अन्वेषण शामिल हैं। वर्णात्मक नीतिशास्त्र पर काम करने वालों का लक्ष्य लोगों की कुछ चीजों के बारे में मान्यताओं का अनावरण करना होता हैं, जैसे की, मूल्य, कौनसे कार्य सही और गलत हैं, और नैतिक अभिकर्ताओं की कौनसी विशिष्टताएँ गुणवान हैं।
वर्णात्मक नीतिशास्त्र के भीतर संशोधन, लोगों के नैतिक आदर्शों की अथवा समाज किन कार्यों को विधि या राजनीति में पुरुस्कृत या दण्डित करते हैं, इनकी भी जाँच कर सकता हैं। उल्लेखनीय यह हैं कि संस्कृति पीढ़ीगत होती हैं, न की स्थैतिक। अतः, एक नई पीढ़ी अपनी नैतिकताओं का समुच्चय लेकर आएगी और वह नीतिशास्त्र बन जाएगा। अतः वर्णात्मक नीतिशास्त्र इस बात का पर्यवेक्षण करेगा कि नीतिशास्त्र अभी तक अपने स्थान पर हैं या नहीं।
मूल्य सिद्धांत या तो मानदण्डक या वर्णात्मक हो सकता हैं, पर आम तौर पर वर्णात्मक होता हैं।