भगवान श्री विट्ठल के भक्त को वारकरी कहते हैं तथा इस संप्रदाय को वारकरी सम्प्रदाय कहा जाता है। [1]
'वारकरी' शब्द में 'वारी' शब्द अंतर्भूत है। वारी का अर्थ है यात्रा करना, फेरे लगाना। जो अपने आस्था स्थान की भक्तिपूर्ण यात्रा पुन: पुन: करता है, उसे वारकरी कहते हैं। सामान्यत: उनकी वेशभूषा इस प्रकार होती है : धोती, अंगरखा, उपरना तथा टोपी। इसी के साथ कंधे पर भगवा रंग की ध्वजा, गले में तुलसी की माला, हाथ में वीणा तथा मुख में हरि का नाम लेते हुए वह वारी के लिए निकलता है। वारकरी मस्तक, गले, छाती, छाती के दोनों ओर, दोनों भुजाएं , कान एवं पेटपर चन्दन लगाता है।