वारुणी का सामान्य अर्थ मदिरा से लिया जाता है। हिन्दू पुराणोमें वर्णित समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर निकली मदिरा को वारुणी कहा गया।[1] आख्यानों के अनुसार यह देवी के रूप में समुद्र से निकली मदिरा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। इसे देवता वरुण की पत्नी के रूप में माना जाता है और अन्य नाम वरुणानी भी उद्धृत किया जाता है।[2]
चरकसंहिता में इसे मदिरा के एक प्रकार के रूप में बताया गया है और यक्ष्मा रोग के उपचारार्थ इसे औषधि के रूप में बताया गया है।[3] कुछ जगहों पर इसे ताल अथवा खजूर के रस से निर्मित मदिरा के रूप में बताया गया है।[4]
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