विजय दास

विजया दास के सम्मान में बना तीर्थ

विजया दास (कन्नड़: ವಿಜಯದಾಸರು) (१६८२-१ ७५५) १८वीं शताब्दी में कर्नाटक, भारत की हरिदास परंपरा के एक प्रमुख संत और द्वैत दार्शनिक परंपरा के विद्वान थे। गोपाल दास, हेवलांकट्टे गिरिम्मा, जगन्नाथ दास और प्रसन्न वेंकट दास जैसे समकालीन हरिदास संतों के साथ, उन्होंने कन्नड़ भाषा में लिखे गए देवर नामा के भक्तिमय गीतों के माध्यम से दक्षिण भारत में माधवाचार्य के दर्शन के गुणों का प्रचार किया।[1] कन्नड़ वैष्णव भक्ति साहित्य का एक अभिन्न अंग, हिंदू भगवान विष्णु की स्तुति में इन रचनाओं को दशर पदगलु (दासों की रचना) कहा जाता है।[2]] इन रचनाओं को विशेष रूप से कीर्तन, सुलादि, उगभोग और पद के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उन्हें संगीत वाद्ययंत्र की संगत में गाना आसान था, और वे भक्ति और एक पवित्र जीवन के गुणों से सम्बंधित थे।।[3]

सन्दर्भ

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  1. Rao, Madhusudan C.R. "Sri Vijaya DasaRu". Haridasas of Karnataka. www.Dvaita.org. मूल से 6 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-06-14., p1
  2. Narasimhacharya (1988), p25
  3. Kamat, Jyotsna. "Jaina, Veerashaiva and Brahmanical Epics". History of Kannada literature. Kamat's Potpourri. मूल से 6 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-06-14.

ग्रन्थसूची

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  • Sri Vijayadasara Seva Trust. "Sri Vijaya Dasara Seva Trust". Official Chippagiri Sri Vijayadasara Seva Trust. मूल से 19 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-04-14.
  • Rao, Madhusudana. "Sri Vijaya Dasaru". Haridasas of Karnataka. मूल से 6 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-06-14.
  • R. Narasimhacharya, History of Kannada Literature, 1988, Asian Educational Services, New Delhi, Madras,1988 ISBN 81-206-0303-6.
  • Hrishikesh. "Sri Vijaya Dasaru". Vijaya Dasaru Life. मूल से 19 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2011-03-07.