विवेकी राय | |
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![]() विवेकी राय | |
जन्म | 19 नवम्बर 1924 सोनवानी, ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश , भारत |
पेशा | हिंदी ललित निबन्धकारकथाकार , निबन्धकार, विद्वान, कवि |
राष्ट्रीयता | भारत |
उल्लेखनीय कामs | बबूल, सोनामाटी, मनबोध मास्टर की डायरी, फिर बैतलवा डाल पर |
खिताब | यश भारती, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा |
विवेकी राय (१९ नवम्बर सन् १९२४ - २२ नवम्बर, २०१६), हिन्दी और भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्होने ८५ से अधिक पुस्तकों की रचना की है। वे ललित निबंध, कथा साहित्य और कविता कर्म में समभ्यस्त हैं। उनकी रचनाएं गंवाई मन और मिज़ाज़ से सम्पृक्त हैं। विवेकी राय का रचना कर्म नगरीय जीवन के ताप से तपाई हुई मनोभूमि पर ग्रामीण जीवन के प्रति सहज राग की रस वर्षा के सामान है जिसमें भींग कर उनके द्वारा रचा गया परिवेश गंवाई गंध की सोन्हाई में डूब जाता है।[1] गाँव की माटी की सोंधी महक उनकी खास पहचान है।[2] ललित निबन्ध विधा में इनकी गिनती आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र और कुबेरनाथ राय की परम्परा में की जाती है।[3]
विवेकी राय का जन्म १९ नवम्बर सन १९२४ में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के भरौली ग्राम में हुआ था, जो उनका ननिहाल था। उनके जन्म के डेढ़ महीना पहले ही पिता शिवपाल राय की प्लेग की महामारी से मृत्यु हो गई थी। मां ने अपने मायके में पाला, बड़ा किया। माता का नाम जविता देवी था। उनकी आरम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव सोनवानी (गाजीपुर जिला) में हुई। मिडिल की पढ़ाई 1940 में निकटवर्ती गांव महेंद में हुई। उर्दू मिडिल भी 1941 में उन्होंने महेंद से ही पढ़े। मिडिल तक की पढ़ाई करके प्राइमरी के अध्यापक बन गए। इसके बाद स्वयंशिक्षा द्वारा व्यक्तिगत परीक्षा देकर आगे बढ़ते गए। सामने माटी का दीया था, बगल में माँ का दुलार। विवेकी पढ़ा रहे थे और पढ़ भी रहे थे।
हिंदी विशेष योग्यता 1943 में, विशारद 1944 में, साहित्यरत्न 1946 में, साहित्यालंकार 1951 में, हाईस्कूल 1953 में नरहीं (बलिया) से किया था, इंटर 1958 में, बीए 1961 में और एम.ए. की डिग्री श्री सर्वोदय इण्टर कॉलेज खरडीहां (गाज़ीपुर) 1964 में ली थी। उसी क्रम में वह 1948 में नार्मल स्कूल, गोरखपुर से हिंदुस्तानी टीचर्स सर्टिफेकेट भी प्राप्त किया। सन 1970 ई. में "स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कथा साहित्य और ग्राम्य जीवन" विषय पर काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। स्नातकोत्तर परीक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। यह अपने आप में शैक्षिक मूल्यों की प्राप्ति और प्रदेय का अनूठा उदाहरण है।
जब विवेकी राय 7वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे उसी समय से डॉ.विवेकी राय जी ने लिखना शुरू किया। गाजीपुर के एक कॉलेज़ में प्रवक्ता होने के साथ-साथ अपने गाँव के किसान बने रहे थे। डॉ. विवेकी राय गाँव की बनती-बिगड़ती जिंदगी के बीच जीते हुए और उसे पहचानते हुए चलते रहे थे। इसलिए गाँव के जीवन से सम्बंधित उनके अनुभवों का खजाना चुका नहीं, नित भरता ही गया। उनकी भाषा-शैली का एक नमूना देखिए-
विवेकी राय की प्रथम कहानी ‘पाकिस्तानी’ दैनिक ‘आज’ में 1945 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी लेखनी हर विधा पर चलने लगी जो आजीवन चलती रही। उनका रचना कार्य कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, डायरी, समीक्षा, सम्पादन एवं पत्रकारिता आदि विविध विधाओं से जुड़े रहे थे। अब तक उन सभी विधाओं से सम्बन्धित लगभग 60 कृतियाँ आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं और लगभग 10 प्रकाशनाधीन हैं।
मनबोध मास्टर की डायरी और फिर बैतलवा डाल पर इनके सबसे चर्चित निबंध संकलन हैं और सोनामाटी उपन्यास राय का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है।[4]
हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए २००१ में उन्हें महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार एवं २००६ में यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[5] उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारामहात्मा गांधी सम्मान से भी पुरस्कृत किया गया।[6][7]