वैज्ञानिक एवं इन्वे़̮न्श्न् अनुसंधान परिषद् | |
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चित्र:CSIR-LOGO.gif | |
स्थापना | १९४२ |
अध्यक्ष | भारत के प्रधानमंत्री |
महा निदेशक | शेखर मांडे[1] |
कर्मचारी | १७,४३२[2] |
बजट | १७५० करोड़ |
अवस्थिति | अनुसंधान भवन, रफ़ी मार्ग नई दिल्ली-११० ००१ |
जालस्थल | www.csir.res.in |
वैज्ञानिक एवं इन्वे़̮न्श्न् अनुसंधान परिषद(सीएसआईआर) भारत का सबसे बड़ा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास संस्थान है।[2] हालांकि इसका वित्तीय प्रबंधन भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा होता है, फिर भी ये एक स्वायत्त संस्था है। इसका पंजीकरण भारतीय सोसायटी पंजीकरण धारा १८६० के अंतर्गत हुआ है।[3]
वैज्ञानिक तथा इन्वे़̮न्श्न् अनुसंधान परिषद् राष्ट्रीय संस्थानों/प्रयोगशालाओं का एक बहुस्थानिक नेटवर्क है जिसका मैंडेट विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त अनुसंधान तथा उपयोगी फोकस अनुसंधान करना है।
इसकी स्थापना १९४२ में हुई थी। इसकी ३९ प्रयोगशालाएं एवं ५० फील्ड स्टेशन भारत पर्यन्त फैले हुए हैं। इसमें १७,००० से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। वतर्मान में ३९ अनुसंधान संस्थान हैं जिनमें पाँच क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएं शामिल हैं। इनमें से कुछेक संस्थानों ने अपने अनुसंधान क्रियाकलापों को और गति प्रदान करने के लिए प्रायोगिक, सर्वेक्षण क्षेत्रीय केन्द्रों की भी स्थापना की है तथा वतर्मान में 16 प्रयोगशालाओं से सम्बद्ध ऐसे 39 केन्द्र कायर्रत हैं।
सीएसआईआर की गिनती विश्व में इस प्रकार के 2740 संस्थानों में 81वें स्थान पर होती है।(सितंबर २०१४)[4]
सीएसआईआर ने गोमूत्र आसवन के लिए आरएसएस समर्थित गौ विज्ञान विज्ञान केंद्र,[5] के साथ मिलकर एंटी-इनफेक्टिव और एंटी-कैंसर एजेंटों और पोषक तत्वों पर एंटीऑक्सिडेंट और जैव-बढ़ाने वाले गुणों के लिए शोध किया।[6][7] संयुक्त राज्य अमेरिका पेटेंट व्यापार चिह्न कार्यालय द्वारा प्रदान किए गए पेटेंट (कोई 6410059 और नंबर 6896907) नहीं हैं। इन पेटेंटों को एक "भारतीय नवाचार" दिया गया है जिसने साबित किया है कि गोमूत्र एंटीबायोटिक्स, एंटी-फंगल एजेंट और कैंसर विरोधी दवाओं को भी अधिक प्रभावी बना सकता है। ये पेटेंट CSIR के नाम पर हैं।[8] इसका मतलब यह नहीं है कि अमेरिकी पेटेंट कार्यालय खोजों को मान्यता देता है या मान्य करता है। इसका सीधा सा मतलब है कि वे अपने ऊपर सीएसआईआर के अधिकारों को पहचानते हैं। गोमूत्र के औषधीय गुणों और गायों के मूत्र (और अन्य जानवरों नहीं) के स्पष्ट चिकित्सीय लाभों के ऐसे दावों की वैधता अभी भी एक बहस का मुद्दा है। यह सर्वविदित है कि यह पेटेंट नहीं है, लेकिन जानवरों के अध्ययन और मानव में नैदानिक परीक्षणों से परिणाम है जो प्रभावशीलता को प्रमाणित करते हैं। कोई पशु अध्ययन नहीं है और मानव नैदानिक परीक्षण और पंचगव्य (गाय का गोबर, गोमूत्र और गाय का दूध) कोशिकाओं की रेखाओं (इन विट्रो) पर भी कठोरता से परीक्षण नहीं किया गया है। दावा किए गए चिकित्सा लाभों के लिए कोई सहकर्मी-समीक्षा और समर्थन वाले वैज्ञानिक आधार नहीं हैं और इस प्रकार इन्हें छद्म विज्ञान के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[9][10]