वैमानिक शास्त्र, संस्कृत पद्य में रचित एक ग्रन्थ है जिसमें विमानों के बारे में जानकारी दी गयी है। इस ग्रन्थ में बताया गया है कि प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में वर्णित विमानरॉकेट के समान उड़ने वाले प्रगत वायुगतिकीय यान थे।
इस पुस्तक के अस्तित्व की घोषणा सन् 1952 में जी आर जोसयर (G. R. Josyer) द्वारा की गयी। इसका एक हिन्दी अनुवाद 1959 में प्रकाशित हुआ जबकि संस्कृत पाठ के साथ अंग्रेजी अनुवाद 1973 में प्रकाशित हुआ।
इसमें कुल ९ अध्याय और ३०००० श्लोक हैं। सुब्राय शास्त्री जी के अनुसार इस ग्रंथ के मुख्य जनक रामायणकालीन महर्षि भरद्वाज थे।
भरद्वाज ने 'विमान' की परिभाषा इस प्रकार की है-
वेग-संयत् विमानो अण्डजानाम्
( पक्षियों के समान वेग होने के कारण इसे 'विमान' कहते हैं।)
इस ग्रन्थ में विमानचालक (पाइलॉट) के लिये ३२ रहस्यों (systems) की जानकारी आवश्यक बतायी गयी है। इन रहस्यों को जान लेने के बाद ही पाइलॉट विमान चलाने का अधिकारी हो सकता है। ये रहस्य निम्नलिखित हैं-