शंकराचार्य धर्मसम्राट पद, शिव अवतार भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित सत्य सनातन धर्म के आधिकारिक मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो कि बौद्ध पंथ में दलाईलामा एवं ईसाई रिलीजन में पोप कि तरह मानव निर्मित नहीं बल्कि स्वयं ईश्वर अवतार द्वारा स्थापित है। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। यह उपाधि आदि शंकराचार्य, जो कि शिव अवतार, हिन्दू दार्शनिक एवं संपूर्ण कलियुग के धर्मगुरु थे एवं जिन्हें हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में जाना जाता है, के नाम पर है। उनका जन्म कालड़ी, केरला में हुआ था, उन्हें जगद्गुरु के तौर पर मान्यता प्राप्त है एक उपाधि जो हर युग मे एक ऋषि को प्राप्त होती है। सत्ययुग में वामन, त्रेतायुग में सर्व गुरू ब्रम्हर्षि वशिष्ठ थे, द्वापर के सर्वगुरू वेदव्यास थे। भगवान कृष्ण ही सर्वकालिक अखिल गुरू हैं। उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा हेतु भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किये तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया। उनसे शास्त्रार्थ में पराजित श्री मंडन मिश्र पहले शंकराचार्य थे। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है। यह पद हिन्दू धर्म का सर्वोच्च गौरवमयी पद माना जाता है।
चार मठ निम्नलिखित हैं जिन पर चयन भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा प्रदत्त मठाम्नाय महानुशासन संविधान ग्रंथ अनुसार होता है।
इन चार मठों के अतिरिक्त भी भारत में कई अन्य जगह शंकराचार्य पद लगाने वाले मठ मिलते हैं जो वैदिक ईश्वरीय परम्परानुसार नहीं बल्कि स्वैच्छिक मानव निर्मित हैं। पद लोलुप लोगों ने अपने मठ स्थापित कर लिये एवं अपने नाम के आगे भी शंकराचार्य उपाधि लगाने लगे। परन्तु वास्तविक शंकराचार्य उपरोक्त चारों मठों पर महानुशासन आसीन को ही माना जाता है।