शरण रानी (९ अप्रैल १९२९ - ८ अप्रैल २००८) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विद्वान और सुप्रसिद्ध सरोद वादक थीं[1][2]। गुरु शरन रानी प्रथम महिला थीं जिन्होंने सरोद जैसे मर्दाना साज को संपूर्ण ऊँचाई दी। वे प्रथम महिला थीं जो संगीत को लेकर पूरे भूमंडल में घूमीं, विदेश गईं, जिन्हें सरोद के कारण विभिन्न प्रकार के सम्मान मिले और सरोद पर डॉक्टलरेट की उपाधियों से नवाज़ा गया। वे प्रथम महिला थीं जिन्होंडने पंद्रहवीं शताब्दी के बाद बने हुए वाद्य यंत्रों को न केवल संग्रहीत किया बल्कि राष्ट्री य संग्रहालय को दान में दे दिया। उन्होंने यूनेस्को के लिए रिकार्डिग भी की। इसलिए पं॰ नेहरू ने उन्हें 'सांस्कृतिक राजदूत' और पं॰ ओंकार नाथ ठाकुर ने 'सरोद रानी' का खिताब दिया था।
दिल्ली में पैदा हुई सरोद साम्राज्ञी ने उस्ताद अलाउद्दीन खां और उस्ताद अली अकबर खां जैसे गुरुओं से सरोद की शिक्षा ग्रहण की थी। वह मैहर सेनिया घराने से ताल्लुक रखती थीं। पद्मभूषण से अलंकृत शरण रानी ने कई रागों की रचना की थी। वाद्य संगीत तथा सरोद वादन के क्षेत्र में वह देश की पहली महिला कलाकार थीं, जिन्होंने अमेरिका तथा ब्रिटेन की संगीत कंपनियों के साथ रिकार्डिंग कीं। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उन्हें ‘भारत की सांस्कृतिक दूत’ कहा करते थे। शरण रानी ने "दि डिवाइन सरोद : इट्स आ॓रिजिन एंटिक्विटी एंड डेवलपमेंट इन इंडिया सिंस बीसी सेकेंड सेंचुरी" किताब लिखी थीं। वे दुर्लभ वाद्यों का संग्रह करती थीं। उन्होंने ‘शरण रानी बाकलीवाल वीथिका’ की स्थापना भी की जिसमें ४५० शास्त्रीय संगीत के वाद्यों को प्रदर्शित किया गया है।
संगीत के प्रति समर्पण के कारण उन्हें १९६८ में पद्मश्री, १९७४ में साहित्य कला परिषद, १९८६ में संगीत नाटक अकादमी, २००० में पद्मभूषण[3] व २००४ में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। १९९२ में उन्होंने सरोद के उद्भव, इतिहास व विकास पर किताब भी लिखी।[4] उन्हें सरकार की ओर से ‘राष्ट्रीय कलाकार’, ‘साहित्य कला परिषद पुरस्कार’ और ‘राजीव गांधी राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। उनकी वीथिका से चार वाद्य लेकर वर्ष १९९८ में डाक टिकट भी जारी किए गए थे।
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]