विष्णुपुराण के अनुसार पृथ्वी का वर्णन इस प्रकार है। यह वर्णन श्रीपाराशर जी ने श्री मैत्रेय ऋषि से किया था। उनके अनुसार इसका वर्णन सौ वर्षों में भी नहीं हो सकता है। यह केवल अति संक्षेप वर्णन है।
यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। वे द्वीप एस प्रकार से हैं:-
ये सातों द्वीप चारों ओर से क्रमशः खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। जम्बुद्वीप इन सब के मध्य में स्थित है।[1]
इस द्वीप के स्वामि भव्य वीरवर थे। इनके सात पुत्रों : जलद, कुमार, सुकुमार, मरीचक, कुसुमोद, मौदाकि और महाद्रुम के नाम संज्ञानुसार ही इसके सात भागों के नाम हैं। मठ्ठे का सागर अपने से दूने विस्तार वाले शाक द्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां भी सात पर्वत, सात मुख्य नदियां और सात ही वर्ष हैं।[2]
उदयाचल, जलाधार, रैवतक, श्याम, अस्ताचल, आम्बिकेय और अतिसुरम्य गिरिराज केसरी नामक सात पर्वत हैं।[3]
सुमुमरी, कुमारी, नलिनी, धेनुका, इक्षु, वेणुका और गभस्ती नामक सात नदियां हैं।[4]
जलद, कुमार, सुकुमार, मरीचक, कुसुमोद, मौदाकि और महाद्रुम। यहां वंग, मागध, मानस और मंगद नामक चार वर्ण हैं।[5]
यहां अति महान शाक वृक्ष है, जिसके वायु के स्पर्श करने से हृदय में परम आह्लाद उत्पन्न होता है। वस्तुतः शाक आज के पालक सम था। यह द्वीप अपने ही बराबर के दुग्ध (दूध) से भरे समुद्र से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह सागर अपने से दुगुने विस्तार वाले पुष्कर द्वीप से घिरा है।[6]
भविष्यपुराण आदि पुराणो में एक कथा आती है जो महाभारत काल से संबंधित है। उसमें बताया गया है कि जब भगवान कृष्ण के पुत्र को कुष्ठ रोग का स्राप मिला तब भगवान नें शाकद्वीप से अट्ठारह सूर्यांश दिव्य ब्राह्मणों को सपरिवार जम्बूद्वीप के भरतखण्ड में अपने राज्य द्वारिका ले आए जिन्होंने साम्ब की चिकित्सा की। तत्पश्चात वे ब्राह्मण मगध (बिहार) आ गए। वह प्रकाण्ड संस्कृत के ज्ञानी थे तथा चिकित्सक भी थे। आज उन्हीं अट्ठारह परिवारों के वंशज को शाकद्वीपीय ब्राह्मण कहते हैं।[7]