शाहिद | |
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निर्देशक | हंसल मेहता |
लेखक | समीर गौतम सिंह, अप्रुवा असरानी, हंसल मेहता |
निर्माता |
अनुराग कश्यप सुनील बोहरा रोनी स्क्रूवाला सिद्धार्थ राय कपूर शैलेश आर सिंह |
अभिनेता |
राजकुमार राव तिग्मांशु धूलिया केके मेनन प्रबल पंजाबी विवेज घमंडे मोहम्मद ज़ीशन अय्यूब |
छायाकार | अनुज धवन |
संपादक | अप्रुवा असरानी |
संगीतकार | करण कुलकर्णी |
निर्माण कंपनी |
अनुराग कश्यप फ़िल्म्स |
वितरक | यूटीवी मोशन पिक्चर्स |
प्रदर्शन तिथियाँ |
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लम्बाई |
123 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
शाहिद[1] एक अनुराग कश्यप निर्मित एवं हंसल मेहता निर्देशित जीवनी आधारित २०१३ की हिन्दी फ़िल्म है। यह एक वकील और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता, शाहिद आज़मी, जिनकी २०१० में मुम्बई में हत्या कर दी गई थी[2][3] के जीवन पर आधारित फ़िल्म है। फ़िल्म का प्रथम प्रदर्शन २०१२ के टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में सितम्बर २०१२ में 'सिटी टू सिटी' प्रोग्राम में किया गया।[4][5][6] फ़िल्म के वितरण अधिकार यूटीवी मोशन पिक्चर्स के पास हैं और इसे १८ अक्टूबर २०१३ को जारी किया गया।[7]
अप्रैल 2014 में 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में हंसल मेहता को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक तथा राजकुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला।[8]
शाहिद अंसारी (राजकुमार राव) को मुंबई पुलिस ने जब 1992 के बम धमाकों में कथित तौर पर आतंक फैलाने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया जाता है।। इस घटना में शाहिद को नजदीक से जानने वाला हर कोई हैरान होता है। गरीब फैमिली के शाहिद का कसूर क्या था, इसका पता तो खुद उसे और उसके परिवार तक को नहीं था। पुलिस कस्टडी में दिल दहला देने वाली यातनाओं को सहने के बाद जेल जाने के बाद शाहिद की मुलाकात वॉर साब (केके मेनन) से हुई। वॉर साब से मिलने के बाद शाहिद को महसूस हुआ कि बेगुनाह होने के बावजूद जेल में बंद अकेला वही नहीं है। उस जैसे सैकड़ों और भी हैं, जिन्हें पुलिस ने सिर्फ शक के आधार पर थर्ड डिग्री टॉर्चर देने के बाद जेल में बंद कर रखा है। यहीं रहकर शाहिद ने कानून की पढ़ाई पूरी की और बाहर आकर वकालत की पढ़ाई जारी रखते हुए करने इसकी डिग्री लेने के बाद मशहूर वकील मेमन (तिग्मांशु धूलिया) के साथ वकालत शुरू की। शाहिद की वकालत का मकसद उन बेगुनाहों को जेल से बाहर निकालना था, जिन्हें पुलिस ने सिर्फ शक के आधार पर बंद कर रखा था। अल्पसंख्यक समुदाय के उन तमाम लोगों की क़ानूनी मदद करता है जो ग़लत आरोपों में जेल में डाल दिए गए हैं। शाहिद ने वकालत को उन गरीब बेगुनाहों को न्याय दिलाने का जरिया बनाया जिनके पास क़ानूनी लड़ाई के लिए पैसा नहीं है। शाहिद ने 2006 में घाटकोपर बस धमाके के आरोपी आरिफ पान वाला को बरी कराया, तो सरकारी वकील (विपिन शर्मा) से जबर्दस्त बहस के बाद अदालत से 26/11 के आरोपी फहीम अंसारी को भी बरी कराया। इसी दौरान शाहिद की मुलाकात मरियम (प्रभलीन संधु) से हुई जो अपनी पुश्तैनी जायदाद को हासिल करने के लिए बरसों से मुकदमा लड़ रही थीं। कुछ मुलाकातों के बाद शाहिद और मरियम नजदीक आए और साथ रहने लगे। साथ ही वह अपनी वकालत जारी रखता है लेकिन धार्मिक कट्टरपंथियों को 'शाहिद' के तौर तरीके रास नहीं आते। उसे धमकियां मिलती हैं कि वो अपनी 'हरकतों' से बाज़ आए लेकिन शाहिद पुलिस ज़्यादतियों का शिकार हुए लोगों की लगातार मदद करता रहता है।
फिर एक दिन कुछ लोग उसकी हत्या कर देते हैं।
"इस फिल्म में शाहिद आजमी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को निहायत ही संवेदनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। फिल्मकार किसी का भी पक्ष नहीं लेता, वह केवल मानवीय करुणा को प्रस्तुत करता है।"
"शाहिद की भूमिका में राजकुमार यादव ने अत्यंत स्वाभाविक अभिनय किया है। ‘काई पो छे’ में जो प्रतिभा की चिंगारी उन्होंने दिखाई थी, वह इस फिल्म में शोला बन गई है। वह इतना संयत व नपातुला है कि बरबस युवा दिलीपकुमार की याद दिलाता है। उसके पारदर्शी चेहरे पर पात्र की यातना व आनंद दोनों ही आपके दिल को छू लेते हैं।" |
— जय प्रकाश चौकसे, दैनिक भास्कर[11] |
फ़िल्म समीक्षकों ने फिल्म को अच्छा बताया है। नवभारत टाइम्स पर चन्द्रमोहन शर्मा ने इस फ़िल्म को 5 में से 3.5 सितारे देते हुए लिखा है - "अगर रियल लाइफ किरदार पर बनी फिल्में पसंद हैं, तो शाहिद आपको पसंद आएगी।"[12] बीबीसी हिन्दी पर कोमल नाहटा फ़िल्म को तीन सितारे देते हुए लिखते हैं, "कुल मिलाकर 'शाहिद' एक बेहद सुलझी हुई फ़िल्म है। लेकिन इसकी अपील बहुत सीमित है।" दैनिक भास्कर ने पांच में से चार सितारे देते हुए फ़िल्म की तारीफ की। आजतक समाचार ने पांच में से साढ़े चार सितारे देते हुए सभी से फ़िल्म जरूर देखने की सलाह दी।[13]
|publisher=
(मदद)
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(मदद)