शिव दयाल सिंह

श्री सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज
परम पुरूश पूरन धनी हुज़ूर स्वामी जी महाराज
धर्म राधा स्वामी , संत मत
अन्य नाम: हुज़ूर स्वामी जी महाराज
वरिष्ठ पदासीन
क्षेत्र आगरा उत्तरप्रदेश
उपाधियाँ राधास्वामी मत के संस्थापक
काल 1861 - 1878
उत्तराधिकारी बाबा जयमल सिंह जी महाराज और हुज़ूर राय सालिगराम जी, बाबा गरीब दास जी [1]
वैयक्तिक
जन्म तिथि अगस्त 25, 1818
जन्म स्थान पन्नी गली,आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

1. माता-पिता: सेठ दिलवाली सिंह जी (पिता), माता महा माया जी (माँ)

2. दादा: श्री दीवान श्याम लाल जी

3. जीवनसाथी: माता राधा जी (नारायणी देवी)

4. बच्चे: कोई नहीं

5. भाई: दो; सेठ प्रताप सिंह जी, सेठ राय बिंद्राबन जी

6. बहन: बीबी सरधो जी

7. माता राधा जी की मृत्यु: 1 नवंबर 1894

Date of death जून 15, 1878 (60 वर्ष)
मृत्यु स्थान पन्नी गली,आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

श्री सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज (25 अगस्त 1818 - 15 जून 1878) राधास्वामी संप्रदाय की शिक्षाओं का प्रारम्भ करने वाले पहले गुरु थे। उनका जन्म नाम श्री सेठ शिव दयाल सिंह जी था।

उनका जन्म 25 अगस्त 1818 में आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत में जन्माष्टमी के दिन हुआ। आप के पिता जी का नाम सेठ दिलवाली सिंह जी और माता जी का नाम माता महा माया जी था। पाँच वर्ष की आयु में उन्हें पाठशाला भेजा गया जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी, अरबी, संस्कृत और गुरमुखी सीखी। उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया। उनके माता-पिता हाथरस, भारत के संत तुलसी साहब के अनुयायी थे।[2][3][4] आप के दो भाई सेठ प्रताप सिंह जी और सेठ राय बिंद्राबन जी थे, जो कि आप से उम्र में छोटे थे।

छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के लाला इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी (माता राधा जी) से हुआ। सेठ शिव दयाल सिंह जी महाराज स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए। वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई। उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फारसी अध्यापक की नौकरी कर ली। उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। वे अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए। [3][5]

उन्होंने 5 वर्ष की आयु से ही कथित सुरत शब्द योग का साधन किया। 1861 में उन्होंने वसंत पंचमी (वसंत ऋतु का त्यौहार) के दिन सत्संग आम लोगो के लिए जारी किया।

स्वामी जी महाराज ने अपने दर्शन का नाम "सतनाम अनामी" रखा। इस को राधास्वामी के नाम से जाना गया। "राधा" का अर्थ "सुरत" और स्वामी का अर्थ "आदि शब्द या मालिक", इस प्रकार अर्थ हुआ "सुरत का आदि शब्द या मालिक में मिल जाना." स्वामी जी महाराज द्वारा सिखायी गई यौगिक पद्धति "सुरत शब्द योग" के तौर पर जानी जाती है।

स्वामी जी महाराज ने अध्यात्म और सच्चे 'नाम' का भेद वर्णित किया है।

उन्होंने 'सार-वचन' पुस्तक को दो भागों में लिखा जिनके नाम हैं:[6][7]

  • 'सार वचन वार्तिक' (सार वचन गद्य)
  • 'सार वचन छंद बंद' (सार वचन पद्य)

'सार वचन वार्तिक' में स्वामी जी महाराज के सत्संग हैं जो उन्होंने 1878 तक दिए। इनमें इस मत की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ हैं। 'सार वचन छंद बंद' में उनके पद्य की भावनात्मक पहुँच बहुत गहरी है जो उत्तर भारत की प्रमुख भाषाओं यथा खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा, राजस्थानी और पंजाबी आदि विभिन्न भाषाओं की पद्यात्मक अभिव्यक्तियों का सफल और मिलाजुला रूप है।

उनका निधन जून 15, 1878 को आगरा, भारत में हुआ। इनकी समाधि दयाल बाग, आगरा में बनाई गई है जो एक भव्य भवन के रूप में है।

स्वामी जी महाराज ने बाबा जयमल सिंह जी महाराज को पंजाब के लिए, हुज़ूर राय सालिगराम जी और माता राधा जी को आगरा के लिए तथा बाबा गरीब दास जी को दिल्ली के लिए अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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  1. "Santmat-meditation.net: स्वामी जी महाराज के उत्तराधिकारी". मूल से 3 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2009.
  2. "तुलसी साहब और उनकी शिक्षाएँ". मूल से 25 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अक्तूबर 2009.
  3. "Radhasoamisatsang.org: स्वामी जी महाराज का जीवन और शिक्षाएँ". मूल से 17 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2009.
  4. "Angelfire.com: स्वामी जी महाराज का जीवन और शिक्षाएँ". मूल से 24 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2009.
  5. "Radhaswamidinod.org: स्वामी जी महाराज का जीवन और शिक्षाएँ". मूल से 8 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2009.
  6. "Radhasoamisatsang.org: स्वामी जी महाराज की पुस्तकें". मूल से 17 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2009.
  7. "Radhaswamidinod.org: स्वामी जी महाराज की पुस्तकें". मूल से 8 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2009.