शीला दीक्षित
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राज्यपाल, केरल
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कार्यकाल 11 मार्च 2014 - 25 अगस्त 2014 | |
पूर्व अधिकारी | निखिल कुमार |
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मुख्यमंत्री, दिल्ली
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कार्यकाल 1998-2013 | |
पूर्व अधिकारी | श्रीमती सुषमा स्वराज |
उत्तराधिकारी | अरविंद केजरीवाल |
जन्म | 31 मार्च 1938 कपूरथला, पंजाब, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 20 जुलाई 2019 दिल्ली, भारत |
राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
जीवन संगी | विनोद दीक्षित |
संतान | 2 |
शीला दीक्षित (३१ मार्च १९३८ – २० जुलाई २०१९) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थीं, जो १९९८ से २०१३ तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही। इसके अतिरिक्त ११ मार्च २०१४ से २५ अगस्त २०१४ तक वह भारत के केरल राज्य की राज्यपाल,[1][2] १९८४ से १९८९ तक कन्नौज से सांसद, और १० जनवरी २०१९ से अपनी मृत्यु तक दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष रही।
दीक्षित १५ साल के अंतराल के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य की मुख्य मंत्री थी। वे दिल्ली की दूसरी महिला मुख्य मंत्री थीं, तथा देश की पहली ऐसी महिला मुख्यमंत्री थीं जिन्होंने लगातार तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला। इनको 17 दिसंबर 2008 में लगातार तीसरी बार दिल्ली विधान सभा के लिये चुना गया था। 2013 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। केरल के राज्यपाल श्री निखिल कुमार के त्यागपत्र देने के पश्चात् उनकी नियुक्ति इस पद पर की गई थी, हालाँकि, उन्होंने २५ अगस्त को ही इस पद से त्यागपत्र दे दिया। 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांगेस पार्टी की मुख्यमंत्री पद लिये उम्मीदवार घोषित की गई थीं, परन्तु बाद में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। इसके पश्चात १० जनवरी २०१९ को उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष घोषित किया गया। उनका निधन शनिवार 20 जुलाई, 2019 को दिल्ली के एस्कोर्ट अस्पताल में हो गया।
शीला दीक्षित (विवाह पूर्व: कपूर) का जन्म ३१ मार्च १९३८ पंजाब के कपूरथला नगर में एक पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली के कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल से ली। बाद में स्नातक और कला स्नातकोत्तर की शिक्षा मिरांडा हाउस कालेज से ली।[3]
१९७० के दशक की शुरुआत में, दीक्षित यंग वीमेन एसोसिएशन की अध्यक्ष थीं और तब उन्होंने दिल्ली में कामकाजी महिलाओं के लिए दो बड़े छात्रावासों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। १९७८ से १९८४ के बीच, वह कपड़ा निर्यातकर्ता संघ (गार्मेंट्स एक्स्पोर्टर्स एसोसियेशन) के कार्यपालक सचिव पद पर भी रही।
१९८४ के आम चुनावों में दीक्षित ने उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, जिसमें उन्होंने लोक दल प्रत्याशी छोटे लाल यादव को ६१,८१५ मतों से पराजित किया।[4] कन्नौज में उनके द्वारा किये गए प्रमुख विकास कार्यों में हरदोई को जिले से जोड़ने के लिए गंगा नदी पर पुल का निर्माण, तिर्वा में दूरदर्शन रिले सेंटर की स्थापना, टेलीफोन एक्सचेंज का मैनुअल से आटोमेटिक में परिवर्तन, तथा लाख बहोसी पक्षी विहार एवं मकरंदनगर में विनोद दीक्षित अस्पताल का निर्माण इत्यादि शामिल हैं।[5]
संसद सदस्य के कार्यकाल में, इन्होंने लोक सभा की एस्टीमेट्स समिति के साथ कार्य किया, और भारत की स्वतंत्रता के चालीसवें वर्ष और जवाहरलाल नेहरू शताब्दी के कार्यान्वयन के लिए कार्यान्वयन समिति की अध्यक्षता भी की। उन्होंने पांच साल (१९८४-१९८९) के लिए महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके अतिरिक्त १९८६-१९८९ के दौरान वे तत्कालीन राजीव गांधी मंत्रिपरिषद का हिस्सा भी रहीं - उन्होंने पहले संसदीय मामलों की राज्य मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया।[6]
१९८९ में हुए आम चुनावों में दीक्षित को अब जनता पार्टी के प्रत्याशी छोटे लाल यादव के हाथों ५३,८३३ मतों से हार का सामना करना पड़ा था।[7] तत्प्श्चात, अगस्त १९९० में, दीक्षित और उनके ८२ सहयोगियों को उत्तर प्रदेश में २३ दिनों के लिए राज्य सरकार द्वारा जेल में डाल दिया गया, जब उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ एक आंदोलन का नेतृत्व किया। १९९८ में दीक्षित को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।[8] उसी वर्ष हुए आम चुनावों में, उन्होंने पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें भारतीय जनता पार्टी के लाल बिहारी तिवारी के हाथों ४५,३६२ मतों से पराजय का सामना करना पड़ा था।[9]
आम चुनावों में हार के बाद, दीक्षित ने १९९८ में दिल्ली के विधान सभा चुनावों की ओर रुख किया, और गोल मार्किट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जहाँ उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी, कीर्ति आज़ाद को ५,६६७ मतों से पराजित किया।[10] कांग्रेस ने उस वर्ष दिल्ली में ७० में से ५२ सीटें जीती थी, और तब शीला दीक्षित ने मदन लाल खुराना की उत्तराधिकारी के रूप में दिल्ली की छठी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। सुषमा स्वराज के बाद वह दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री थी। २००३ के विधानसभा चुनावों में भी दीक्षित ने गोल बाजार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, और भाजपा प्रत्याशी, पूनम आज़ाद को १२,९३५ मतों से पराजित कर दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल जारी रखा।[11]
२००८ के दिल्ली विधानसभा चुनावों में दीक्षित ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, और भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी, विजय जौली को १३,९८२ मतों से पराजित किया।[12] इन चुनावों में दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने दिल्ली की ७० में से ४३ सीटें जीती, और इस बदौलत दीक्षित लगातार तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी। २०१३ के दिल्ली विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी का सफाया हो गया और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में २५,८६४ मतों के अंतर से चुनाव जीता। उन्होंने ८ दिसंबर २०१३ को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, लेकिन २८ दिसंबर २०१३ को नई सरकार के शपथ ग्रहण तक दिल्ली की कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनी रही।
मार्च २०१४ में केरल के राज्यपाल श्री निखिल कुमार के त्यागपत्र देने के पश्चात दीक्षित को केरल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन पांच महीने बाद २५ अगस्त को ही उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। २०१७ के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में पहले दीक्षित को कांगेस पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार के तौर पर घोषित किया गया था, परन्तु बाद में कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी के गठबंधन के बाद उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। इसके पश्चात १० जनवरी २०१९ को उन्हें पुनः दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष घोषित किया गया। २०१९ के आम चुनावों में उन्होंने दिल्ली के उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें भाजपा प्रत्याशी मनोज तिवारी के हाथों ३.६६ लाख मतों से पराजय का सामना करना पड़ा।[13]
दीक्षित इंदिरा गाँधी स्मारक ट्रस्ट की सचिव भी थी, जो शांति, निशस्त्रीकरण एवं विकास के लिये इंदिरा गाँधी पुरस्कार प्रदान करता है, व विश्वव्यापी विषयों पर सम्मेलन आयोजित करता है। इनके संरक्षण में ही, इस ट्रस्ट ने एक पर्यावरण केन्द्र भी खोला। वह हस्तकला व ग्रामीण कलाकारों व कारीगरों के उत्थान में भी विशेष रुचि लेतीं थी। ग्रामीण रंगशाला व नाट्यशालाओं का विकास, उनका विशेष कार्य रहा।
शीला दीक्षित का विवाह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल उमा शंकर दीक्षित के पुत्र विनोद दीक्षित से हुआ था। विनोद मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के उगु गाँव से थे, और भारतीय प्रशासनिक सेवा में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। एक रेल यात्रा के दौरान हृदयाघात से उनका निधन हो गया।
दीक्षित की दो संतानें हैं, एक पुत्र व एक पुत्री। उनके पुत्र संदीप दीक्षित पूर्वी दिल्ली से १५ वीं लोकसभा के पूर्व सदस्य हैं। दीक्षित की नवंबर २०१२ में एंजियोप्लास्टी हुई थी, और उनका नियमित रूप से फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में इलाज चलता था। २०१८ में भी फ्रांस के लिले में स्थित यूनिवर्सिटी अस्पताल में उनकी हृदय की सर्जरी हुई थी।
१९ जुलाई २०१९ की सुबह दीक्षित ने सांस में परेशानी की शिकायत की, और उनका दिल भी सामान्य से तेज़ धड़क रहा था। उन्हें तुरंत एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ले जाया गया, लेकिन बीच रास्ते में ही हृदयाघात होने के कारण उनकी धड़कनें रुक गयी - भर्ती होने के बाद कुछ ही क्षणों में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।[14] उनकी स्थिति थोड़े समय के लिए स्थिर हो गई थी, हालांकि वह कई दौरों से उबर नहीं पाई। शीला दीक्षित का निधन ८१ वर्ष की आयु में २० जुलाई २०१९ को ३:५५ बजे हुआ।[15] शीला दीक्षित की पार्थिव देह को पूर्वी निजामुद्दीन स्थित उनके आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। दिल्ली सरकार ने उनकी मृत्यु पर दिल्ली में दो दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया।[16]
२००९ में, दिल्ली के लोकायुक्त (भ्रष्टाचार-विरोधी लोकपाल) ने एक भाजपा कार्यकर्ता, अधिवक्ता सुनीता भारद्वाज द्वारा दायर एक शिकायत की जांच की - कि दीक्षित ने जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के तहत केंद्र सरकार से राजीव रतन अवास योजना के लिए प्राप्त ३.५ करोड़ रुपये का राजनीतिक विज्ञापन देने के लिए दुरुपयोग किया।[17] हालाँकि, लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के दावों को खारिज कर दिया।[17][18] नवंबर २००९ में ही, दिल्ली में नाइट क्लबों में हत्या के दोषी मनु शर्मा के देखे जाने की मीडिया रिपोर्टों के सामने आने के बाद उसे पैरोल देने के कारण दीक्षित की काफी आलोचना हुई।[19] शर्मा को जेसिका लाल की हत्या के लिए जेल में डाल दिया गया था और वह आजीवन कारावास की सजा काट रहा था।
दीक्षित पर २०१० के राष्ट्रमंडल खेलों के संबंध में भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाया गया था। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कथित तौर पर खेलों के दौरान शहर में स्ट्रीट लाइटिंग के लिए आयातित उपकरणों में अनियमितताओं के लिए उन्हें दोषी ठहराया। हालाँकि दिल्ली के मुख्य सचिव पी के त्रिपाठी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली में स्ट्रीट लाइटिंग के ठेके देने में कोई भूमिका नहीं निभाई।[20] अगस्त २०१३ में लोकपाल अदालत ने २००८ के विधानसभा चुनावों से पहले एक विज्ञापन अभियान के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग करने के लिए उनके और अन्य लोगों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया,[21] लेकिन उन पर कोई धाराएं नहीं लगायी गयी।[22]
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