सम्पादकीय कार्टूनिस्ट शेखर गुरेरा (पूरा नाम : चंद्रशेखर गुरेरा) एक भारतीय कार्टूनिस्ट [1] हैं। इन्हें दैनिक पाकेट कार्टून के माध्यम से भारत के राजनीतिक एवं सामाजिक परिवेश पर चंद शब्दों में गुदगुदाती हुई सटीक टिप्पणियों के लिए जाना जाता है। इनके दैनिक कार्टून अंग्रेजी, हिन्दी और क्षेत्रीय भाषा के दैनिक समाचार पत्रों: द पायनियर, पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, हिंदसमाचार एवं जगबानी में प्रकाशित होते हैं। इन्होंने अपने कार्टून जीवन की शुरुआत १९८४ में बतौर स्नातक कर रहे विज्ञान के एक छात्र, फ्रीलांसर के रूप में की थी।
शेखर गुरेरा का जनम ३० अगस्त १९६५ को मोगा, पंजाब, भारत में हुआ। १९८६ में मुलतानी मल मोदी कालेज, पटियाला, पंजाब से विज्ञान में स्नातक डिग्री प्राप्त की। गुड़गाँव (हरियाणा) स्थानांतरित होने के बाद १९९० में ललितकला महाविद्यालय, नई दिल्ली से एप्लाइड आर्ट्स में एक डिग्री प्राप्त की।[2]
गुरेरा का पहला कार्टून १९७३ में एक पुरस्कार के संबंधित खबर के दौरान वीर प्रताप समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ था। स्कूली शिक्षा के दौरान चित्रकला बतौर रुचि जारी रखी, जबकि विज्ञानं में स्नातक विद्यार्थी रहते पहला कार्टून (बतौर फ्रीलांसर पेशेवर कार्टूनिस्ट) अक्टूबर १९८४ के दौरान पंजाब केसरी में प्रकाशित हुआ।[3]
२०१८ : बतौर गुरूग्राम के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट, नगर निगम गुरूग्राम ने शेखर गुरेरा को स्वच्छ सर्वेक्षण २०१८ के लिए अधिकारिक तौर पर कार्टूनों के लिए ब्रांड एम्बेस्डर घोषित किया गया। बतौर स्वैच्छिक सहायता, बनाए गए कार्टूनों में गुरेरा ने स्वच्छता और स्वच्छ भारत अभियान सहित कचरा अलग-अलग करने, खुले में शौच नहीं जाने, विभिन्न स्वच्छता पहलुओं जैसे प्लास्टिक का उपयोग ना करने और अपने आसपास सफाई का ध्यान रखने का संदेश देते विषयों पर कार्टून बनाये। इन कार्टूनों को मीडिया एवं होर्डिंग इत्यादि सहित प्रचार के अन्य माध्यमों द्वारा प्रसारित किया गया। [11][12]
१९९९ : कारगिल कार्टून्स (कार्टूनों के एक संग्रह और कार्टून प्रदर्शनी की शृंखला) अभियान में भारतीय सेना के साथ उनके सामूहिक एकता की निशानी के रूप में विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों के कार्टूनिस्टों ने, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सीमा की ओर जा रहे सेना के जवानों का मनोबल बढ़ाने के एक सार्थक पर्यास हेतु मौके पर ही कैरीकेचर बना, उन्हें भेंट किये। तत्पश्चात समाचार पत्रों में प्रकाशित कारगिल युद्ध सम्बन्धी कार्टूनों की एक प्रदर्शनी जो नई दिल्ली सहित जयपुर, चंडीगढ़, पटना और इंदौर में आयोजित की गयी[13]
२००१ : डेढ़ दशक तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बतौर साप्ताहिक कॉलम (Future Lens / भविष्य की तस्वीर) जो कि नेट के द्वारा देश ही नहीं विदेश में भी बेहद लोकप्रिय रहा। इस कृति में खेल, फिल्म, राजनीती एवं अन्य जगत से जुडी लोकप्रिय सेलेब्रिटी को लेकर दिखाया जाता रहा कि आज से ३० वर्ष बाद वो कैसे दिखेंगी। कंप्यूटर की डिजिटल तकनीक के माध्यम से पेंट की गई ये कृतियाँ हूबहू तस्वीर का आभास देती है। [14][15]
२००५ एवं २०१६ : राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद(NPC) के कैलेंडर के लिए कार्टूनों की एक शृंखला
२०१७ : इंडियन कार्टून गैलरी, बेंगलुरु में ७ से २८ जनवरी, २०१७ तक एकल कार्टून प्रदर्शनी जो भारतीय कार्टून संस्थान (Indian Institute of Cartoonists) द्धारा आयोजित की गई थी! [16][17]
२०१८ : मध्यप्रदेश राज्य सरकार एवं भारत सरकार के सहयोग से इंदौर में संयुक्त राष्ट्र संघ क्षेत्रीय विकास केंद्र (UNCRD) के तत्वाधान में 8वां 3R (Reduce, Recycle, Reuse) फोरम के आयोजन के दौरान शहरी विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी पुस्तक जीवन शैली में सरंक्षण : भारतीय विरासत जिसमें विभिन आयामों को रेखाचित्रों की एक श्रंखला के माध्यम से दर्शाया गया! (अप्रैल९-१२, २०१८) [18]
१९८२ : बतौर ११वीं कक्षा के एक छात्र थे (उम्र: १७), जब कॉलेज के वार्षिकोत्सव समारोह के एक मौके पर ८वी लोकसभा के अध्यक्ष बलराम जाखड़ (मुख्य अतिथि), का मौके पर ही रेखा चित्र बनाने पर मंच पर ही आपको समानित करते हुए श्री जाखड़ ने आपको कल का शोभा सिंह की टिपण्णी कर गौरविंत किया [22]
१९९४ : साप्ताहिक सन्डे मेल के एक अंक में डॉ॰ रोहनीत सिंह फोर, जोकि एक लम्बे समय से व्यक्तिगत और पेशेवर रूप से आपको जानते भी हैं, ने कार्टून करियर के शुरुआत के दिनों से लेकर, आपकी कार्टून शैली आदि के बारे विस्तार से चर्चा की है[23]
१९९७ : द हिन्दू के एक अंक में सुचित्रा बहल ने आपसे एक साक्षात्कार में हिज ओन मैन की सम्पादकीय टिपण्णी की है[24]
१९९८ : द स्टेटसमैन के एक अंक में कार्टून नेटवर्क नामक आवरण लेख में आपने उत्कृष्ट कार्टून कला के लिए तीन प्रमुख विद्याओं की अनिवार्यता पर फोकस किया है : एक कलाकार की संवेदनशीलता, एक पत्रकार का तेज दिमाग और एक व्यंग्यकार की गहरी निगरानी[25]
२०२१ : कार्टूनिस्ट काक द्वारा अपने संस्मरण में की गई एक टिपण्णी : कार्टूनिस्ट ही बनने के लिए बेशक मुझे स्वयं के लिए तय करने में बीस साल लगे थे परन्तु जब मैंने शेखर गुरेरा की रेखाएं देखी, रेखाओं में दम देखा, उसी वक़्त मैंने उनके पिताजी को जो स्वयं भी एक बड़े प्रतिष्ठान के साथ इंजीनियर थे एवं अपने पुत्र के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई ही करवा रहे थे को शेखर को कार्टूनिस्ट ही बनाने के लिए राय दी, जिसे मैं अपने जीवन की एक उपलब्धि ही मानता हूँ कि मैंने अपने सुझाव से कार्टून जगत को एक अच्छा कार्टूनिस्ट दिया![26]