लेखक | आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि |
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भाषा | प्राकृत |
षट्खण्डागम (अर्थ = छ: भागों वाला धर्मग्रंथ ; प्राकृत में : 'छक्खंडागम') दिगम्बर जैन संप्रदाय का सर्वोच्च और सबसे प्राचीन पवित्र धर्मग्रंथ है। दिगंबर परंपरा के अनुसार मूल धर्मवैधानिक शास्त्र महावीर भगवान के निर्वाण के कुछ शताब्दियों के बाद ही लुप्त हो गये थे। अतः, षट्खण्डागम को आगम का दर्जा दिया गया है और इसे सबसे श्रद्धेय माना गया है। दिगम्बरों के लिए षट्खण्डागम की महत्ता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है, कि जिस दिन षट्खण्डागम पर धवला टीका को पूरा किया गया था, उस दिन को 'श्रुत पंचमी' के रूप में मनाया जाता है।
ऐसा कहा जाता कि षट्खण्डागम दिगम्बर साधु आचार्य धरसेन के द्वारा दिए गए आगम के मौखिक उपदेशों पर आधारित है। मान्यता अनुसार, शास्त्रों के घटते ज्ञान से चिंतित होकर उन्होंने दो साधुओं, आचार्य पुष्पदंत और आचार्य भूतबलि को अपने आश्रयस्थल, गिरनार पर्वत, गुजरात में स्थित चंद्र गुफा, में बुलाया। आचार्य धरसेन ने वृहद मूल पवित्र जैन ज्ञान में से उन्होंने दोनो मुनियों को याद ज्ञान संप्रेषित किया। उन्होंने आगम के पाँचवें और बारहवें अंगों के कुछ भागों का भी ज्ञान दिया। यह सारा ज्ञान दोनों साधुओं द्वारा सूत्रों के रूप में लिपिबद्ध कर लिया गया। आचार्य पुष्पदंत ने शुरुवात के १७७ सूत्र लिखे और आचार्य भूतबलि ने बाकी सूत्र लिखे। कुल लगभग ६००० सूत्र लिखे गये।
षट्खण्डागम, जैसा की नाम से ज्ञात होता है, छह भागों में विभाजित शास्त्र है। छह भाग हैं-
प्रथम तीन भाग कर्म दर्शन की व्याख्या आत्मा के दृष्टिकोण से करते हैं, जो की बंधन का कारक है एवं अंतिम तीन भाग कर्म की प्रकृति और सीमाओं की चर्चा करते हैं।
षट्खण्डागम में समुच्चय (सेट) का कांसेप्ट आया है। विभिन्न समुच्चयों पर (log2) के फलनों से संक्रिया (ऑपरेशन) इसमें देखने को मिलता है।