संबन्ध स्वामी चोलकालीन तमिलनाडु के नवयुवक शैव कवि थे। संबंदर के अन्य नाम अलदै पिल्लैयर, पलरावोयार, मुतमिलविरहर, सम्बन्दर इत्यादि हैं। संबंदर, शैववाद के शक्तिशाली समर्थक थे। उन्होंने उपदेश दिया कि मुक्ति सत्पुत्र मार्ग से प्राप्त हो सकती है। भक्ति द्वारा ही भगवान के चरणकमल तक पहुँचा जा सकता है जो सर्वोच्च है एव सुख-दु:ख तथा अच्छे बुरे से ऊपर है।
संबन्ध स्वामी | |
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[[Image:|225px]] संबन्ध स्वामी तमिलनाडु राज्य के कवि थे और शिव के भक्त थे। |
संबंदर की रचनाओं की प्रसिद्धि एक हजार गीतों से है जो तीसरी तिरुमुरै में विभक्त है। इसके अंतर्गत केवल 348 तेवरम् हैं। संबंदर के तेवरम् अपने उपमा सौंदर्य, अर्थ एवं माधुर्य के कारण बेजोड़ हैं। संबंदर के जीवन तथा रचनाओं के संबंध में पर्याप्त जानकारी सुंदरार और अप्पार के तेवरमों में और सेक्किलर तथा नंबियंदर नंबी की रचनाओं में मिलती है।
प्रसिद्ध नालवारों में एक संबंध स्वामी का जन्म 7वीं शती ईसा के मध्य में तमिलनाडु राज्य के सिरकली में हुआ था। तीन वर्ष की बाल्यावस्था में जब उनके पिता मंदिर के तालाब में स्नान कर रहे थे, वे चिल्लाए "अम्मे अप्पा" इसपर भगवान शिव प्रगट हुए और पावर्ती ने दिव्य बालक को दूध पिलाया तथा शिवज्ञान प्रस्तुत किया। पिता की वापसी पर बालक ने अपना पहला "तेवरम" गाया।
अपने पिता के कंधों पर बैठकर संवंदर ने दक्षिण भारत के पवित्र स्थलों की यात्रा की। मार्ग में वे तेवरम् गाते और चमत्कार दिखाते चलते थे। इस प्रकार तिरुकोलक्का में उन्हें स्वर्ण मजीरा प्राप्त हुआ, तिरुनेलवोइल में उन्हें मोती की पालकी तथा छत्र प्राप्त हुआ। तिरुपचिलचिरमम् में उन्होंने मुखिया की पुत्री को रोग से मुक्त किया। तिरुमहल में उन्होंने सर्पदंश से मृत एक व्यापारी को पुनर्जीवित किया, तिरुवोइमूर में भगवान को प्रकट कर दिखाया; मदुरै में पांड्य राजा का भयंकर रोग ठीक किया। मदुरै में उन्होंने जैनों को चुनौती दी और उन्हें पराभूत किया।
नल्लुपेरुमनम में संबंदर ने नंबियंदर नंबि की पुत्री से विवाह किया। वैकासी मूल दिवस पर केवल सोलह वर्ष की उम्र में जब उन्होंने गाना गाया, तब एक दैवी ज्वाला दृष्टिगोचर हुई जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ प्रविष्ट हुए।
का. सुब्रमनिया पिल्लै और सी. शिवज्ञानम पिल्लै के मूल्यवान शोधकार्यों द्वारा हमें संबंदर वर्षा उनके काल के संबंध में और भी अधिक बातें ज्ञात हुई हैं।