संसदीय विधेषधिकार, उन कुछ विशेषाधिकारों को कहा जाता है जिनका, संसदों और राष्ट्रीय विधायिकाएं, दुनिया भर में विशिष्ट रूपसे आनंद लेते हैं, जो उनके अधिकार, स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इन विशेषाधिकारों की स्थापना विभिन्न देशों में मुख्य रूप से विधि, रीति-रिवाज अथवा संवैधानिक अनुच्छेद के आधार पर की जाती है। समय समय पर जहाँ कुछ की पुष्टि की गई है, वहीँ अन्य गौण हो चुके विशेषाधिकारों को कानूनन समाप्त किया जाता रहा है। संसदीय विशेषाधिकारों का मूल उद्देश्य विधायकों को अपने विधायी कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों या बयानों के लिए नागरिक या आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षित रखना है। वेस्टमिंस्टर प्रणाली से प्रभवित शासन व्यवस्थाओं में ऐसा विशेषाधिकार सबसे विशिष्ट रूप से पाया जाता है, जहाँ यह संकल्पना, प्राचीन संसदीय रीति-रिवाज़ से अंग्रेजी संसद में उबरी थी।
संसदीय विशेषाधिकारों का मूल उद्देश्य विधायकों को अपने विधायी कर्तव्यों के दौरान किए गए कार्यों या बयानों के लिए नागरिक या आपराधिक दायित्व से प्रतिरक्षित रखना है। हालाँकि विभिन्न देशों में क़ानून के अनुसार, संसदीय विशेषाधिकार भिन्न हो सकते हैं, अथवा विशेअशाधिकारों पर सीमाएँ अलग अलग हो सकती हैं, मगर मोटे तौरपर निम्न बिंदुओं को हर देश में पाया जाता है:
ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों के ऊपर कुछ प्राचीन विशेषाधिकार निहित और संरक्षित हैं। दोनों सदनों द्वारा दावा किया गया सबसे महत्वपूर्ण विशेषाधिकार है बहस में बोलने की स्वतंत्रता: सदन में कही गयी किसी भी बात पर संसद के बाहर किसी भी अदालत या अन्य संस्था में पूछताछ नहीं किया जा सकता है। एक और विशेषाधिकार है गिरफ्तारी से स्वतंत्रता: पूर्वतः, सभी सांसद राजद्रोह, गुंडागर्दी या शांति भंग करने को छोड़कर किसी भी कानूनी अपराध के लिए गिरफ्तारी से प्रतिरक्षा थे लेकिन अब आपराधिक आरोपों को भी इस विशेषाधिकार के दायरे से बाहर कर दिया गया है।[1] यह प्रतिरक्षा संसदीय सत्र के दौरान और सत्र के 40 दिन पहले या बाद तक लागू रहता है। दोनों सदनों के सदस्यों को अब ज्यूरी पर सेवा से विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है।[2]
दोनों सदनों के पास अपने विशेषाधिकार के उल्लंघन को दंडित करने की शक्ति भी है। संसद की अवमानना- उदाहरण के लिए, किसी समिति द्वारा जारी किए गए एक उप-सदस्य की अवज्ञा- को भी दंडित किया जा सकता है। हाउस ऑफ लॉर्ड्स किसी भी व्यक्ति को किसी भी निश्चित अवधि के लिए कारावास में डाल सकता है, लेकिन हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा कारावास में भेजे गए व्यक्ति को छूट पर मुक्त किया जा सकता है।[3] दोनों सदनों में से किसी के द्वारा भी लगाए गए दंड को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है, यहाँ तक कि मानवाधिकार अधिनियम भी इनपर लागू नहीं होता है।[4]
ये अधिकार किसी विधि या संधि के ज़रिये नहीं आते हैं, हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा संप्रभु से मिले निहित अधिकार के आधार पर इन विशेषाधिकारों का दावा किया जाता है। जबकि हाउस ऑफ कॉमन्स को यह अधिकार हाउस ऑफ लॉर्ड्स से मिलता है, जिसकी पुष्टि, प्रतिवर्ष कॉमन्स के सभापति लॉर्ड्स की स्वीकृति द्वारा किया करते हैं। प्रत्येक नई संसद की शुरुआत में सभापति लॉर्ड्स कक्ष में जाकर निचले सदन के "निस्संदेह" विशेषाधिकारों और अधिकारों की पुष्टि करने के लिए संप्रभु के प्रतिनिधियों से अनुरोध कर यह अधिकार प्राप्त करते हैं। यह परंपरा राजा हेनरी अष्टम के ज़माने से चली आ रही है।
भारतीय विधि में संसदीय विशेषाधिकार का प्रावधान वेस्टमिंस्टर प्रणाली के प्रभाव से है, जिसके आधार पर भारतीय विधायी प्रक्रिया आधारित है। भारतीय संविधान संघ और राज्य दोनों स्तरों पर, विधायिका के सदनों के कामकाज की स्वतंत्रता के लिए प्रावधान प्रदान करता है। संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदनों के विशेषाधिकारों से संबंधित है और अनुच्छेद 194 राज्य विधानमंडल के सदनों के विशेषाधिकारों से संबंधित है। दोनों अनुच्छेदों की शब्दावली सामान्य है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 इस प्रकार है:[5][6]
105. संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार आदि-
- इस संविधान के उपबंधों और संसद की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद में वाक्-स्वातंत्र्य होगा।
- संसद में या उसकी किसी समिति में संसद के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरूद्ध संसद के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
- अन्य बातों में संसद के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ ऐसी होंगी जो संसद, समय-समय पर, विधि द्वारा,परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक वही होंगी जो संविधान (चवालीसवाँ संशोधन)
अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं।
- जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद के सदस्यों के संबंध में लागू होते हैं।
20 जून, 1979 को लागू हुए संविधान के चव्वालिसवें संशोधन तक, विशेषाधिकारों को उसी तरह से कहा गया था जैसा कि इस संविधान के प्रारंभ होने से ठीक पहले हाउस ऑफ कॉमन्स द्वारा किया गया था।[7][8]
हालाँकि संयुक्त राज्य में एक संसदीय प्रणाली के बजाय अध्यक्षीय प्रणाली मौजूद है, फिरभी, अमेरिकी वीडियो के अंतर्गत अमेरिकी कांग्रेस क्र सदस्यों के लिये भी संसदीय विशेषाधिकार के सामान अधिकार पाए जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान का अनुच्छेद एक में मौजूद भाषण या वाद-विवाद का खंड, कांग्रेस-सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार के समान विशेषाधिकार प्रदान करता है। साथ ही कई अमेरिकी राज्य अपने राज्य विधायिकाओं के लिए समान प्रावधान प्रदान करते हैं।